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कायस्थ भारत में रहने वाले हिन्दू समुदाय की एक जातियों का वांशिक कुल है। पुराणों के अनुसार कायस्थ प्रशासनिक कार्यों का निर्वहन करते हैं। कायस्थ को वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण वर्ण धारण करने का अधिकार प्राप्त है।
चित्रगुप्त की संतानों को कायस्थ कहा गया है। हालांकि, कायस्थों को ब्राह्मण के रूप में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है। परंपरागत रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र जैसे चार वर्णों में विभाजन होता है, और कायस्थों को एक अलग वर्ण के रूप में देखा गया है, जो शासकीय कार्यों और प्रशासन में विशेषज्ञ थे।
वर्ण व्यवस्था के अनुसार हिन्दुओं को ब्राह्राण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र चार वर्णों में विभाजित किया गया है। कायस्थ जाति, जो कि वास्तव में क्षत्रिय वर्ण में आती है, पर उस समय प्रश्न चिन्ह लग गया जब कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक मुकदमे में श्री श्यामाचरण सरकार द्वारा लिखित पुस्तक ‘व्यवस्था दर्पण’ के आधार पर यह घोषित कर दिया कि बंगाल के कायस्थ शूद्र हैं, क्योंकि वह अपना कुल नाम ‘वर्मा’ के स्थान पर ‘दास’ लिखते हैं और उनके यहा उपनयन संस्कार भी नहीं होता है।
लेकिन ईश्वरी प्रसाद बनाम राय हरिप्रसाद, केस में पटना हाई कोर्ट ने इस सम्बन्ध में पर्याप्त जांच पड़ताल करने, उपनिषदों व धार्मिक पुस्तकों तथा उच्चकोटि के लेखकों की पुस्तकों का गहन अध्ययन करने तथा बनारस के विद्वान ब्राह्राण से विचार विमर्श करने के उपरान्त यह निर्णय दिया कि कायस्थ जाति का वर्ण क्षत्रिय है।
श्री गोलायचन्द्र सरकार का भी गोद लेने तथा हिन्दू ला सम्बन्धी पुराणों, याज्ञवलक्य तथा मित्ताक्षर के मूल पाठों की भी निकट से जांच की। उनका विचार है कि कायस्थ क्षत्रिय हैं तथा रीति-रिवाजों के बिना देख हुए ऊची जाति की नीची जाति में अवनति नहीं की जा सकती,
पदम पुराण के उत्तराखण्ड में वर्णित है कि चित्रगुप्त की दो पतिनयों से प्राप्त 12 पुत्र यज्ञोपवीत धारण करते थे तथा उनके विवाह नाग कन्याओं से हुए थे। वे कायस्थों की बारह उपजातियों के पूर्वज थे। यह कथा कहती है कि कायस्थ चित्रगुप्त वंशी क्षत्रीय हैं और किसी भी दशा में शूद्र नहीं हैं। वे समस्त संस्कारों के अधिकारी हैं।
चित्रगुप्त’ को धर्मराज के निकट जीवों के अच्छे व बुरे कर्मों का लेखा जोखा लिखने के लिए रखा गया। उनमें आलोकिक बुद्विमता थी और वो अग्नि तथा देवताओं को चढ़ाई जाने वाली बलि के भाग प्राप्त करने के अधिकारी थे। इसी कारण से द्विज श्रेणी के लोग उन्हें अपने भोजन में से भोग लगाते हैं।
सृष्टि कर्त्ता ब्रह्माजी ने चित्रगुप्त को कहा कि तुम मेरी काया से प्रकट हुए हो इसलिए तुम कायस्थ कहलाओगे तथा संसार में चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे। तुम्हें शास्त्रों के अनुसार क्षत्रियों के रीति रिवाज तथा धर्म विधान का पालन करना चाहिए।’
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि चित्रगुप्त का राज्य सिंहासन यमपुरी में है और वो अपने न्यायालय में मनुष्यों के कर्मों के अनुसार उनका न्याय करते हैं तथा उनके कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं,
कायस्थ जो ब्रह्रााजी की काया से प्रकट हुए हैं उनकी ब्राह्राण के समान पदवी है परन्तु कलि-युग में उनके धार्मिक रीति रिवाज तथा कर्तव्य क्षत्रियों के समान होंगे।
चित्रगुप्त के बारह लड़के भानु, विभानु, विश्व भानु, बृजभान, चारु, सुचारु, चित्र, मतिमान, हिमवान, चित्रचारु, अरुण तथा अतिन्द्रीय थे। कायस्थों की 12 उपजातियां इन्हीं 12 पुत्रों से चलीं।
भानु से श्रीवास्तव,
विभानु से सूर्यध्वज,
विश्वभानु से अस्थाना,
वृजवान से बाल्मीकि,
चारु से माथुर,
सुचारु से गौड़,
चित्र से भटनागनर,
मतिमान से सक्सेना,
हिमवान से अम्बष्ठ,
चित्रचारु से निगम,
अरुण से कर्ण
तथा
अतीन्द्रीय से कुलश्रेष्ठ वंश चले।
कायस्थों ने राजवंशों की स्थापना की तथा राजा एवं राजाधिराज बने। वह रणभूमि में लड़े तथा लड़ाई में अपने बुद्वि कौशल का प्रदर्शन किया, जिसके कारण राजाओं तथा जनता से सम्मान पाया| उनके रीति रिवाज, धार्मिक अनुष्ठान तथा विवाह आदि उच्च जाति नियमों के अनुसार होते हैं। एक ही अल्ल में विवाह नहीं होते हैं तथा इसके लिए पिता तथा माता के वंशों का ध्यान रखा जाता है। एक से अधिक पति तथा पत्नी रखने पर कड़ा प्रतिबन्ध है। विधवाओं की दुबारा शादी करना पूर्ण रुप से वर्जित है। वे चित्रगुप्त की पूजा करते हैं, उपरोक्त विवेचना के अनुसार पटना हाई कोर्ट ने सन 1962 में निर्णय दिया है कि कायस्थ जाति का वर्ण क्षत्रिय है।
कायस्थ नॉन-वेज क्यों खाते हैं?
भारत के अधिकांश हिंदू समुदायों के विपरीत, कायस्थों ने मुगल सम्राटों के दरबार में मांस के प्रति इतना अधिक झुकाव विकसित कर लिया कि आज, इस समाज मे मांसाहारी भोजन अधिक व्यापक रूप से प्रचलित है |
कायस्थ जाति की कुलदेवी अम्बा माता हैं. कायस्थ समाज के लोग भगवान चित्रगुप्त की भी पूजा करते हैं.
कायस्थ जाति के लोग कलमकांडी महाजाति के हिस्सा हैं.
कायस्थ जाति के राजा टोडरमल मुगल सम्राट अकबर के नवरत्नों में शामिल थे.
अबुल फ़ज़ल के मुताबिक, बंगाल के ज़्यादातर ज़मींदार भी कायस्थ जाति के ही थे.
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