मन में बुरे विचार आयें तो क्या करें | साधक प्रश्नोत्तरी | Question & Answer | St Sri Asaramji Bapuji

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मन में बुरे विचार आयें तो क्या करें | साधक प्रश्नोत्तरी | Question & Answer | St Sri Asaramji Bapuji

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Sant Shri Asaram Bapu Ji: दिव्य तात्त्विक सत्संग (Ahmedabad Ashram, 12th Jan 2008).

Mann mein burey vichaar aayein to sadhak kya karein? Q & A with Sant Shri Asaram Bapu Ji...

Watch Pujya Sant Shri Asaram Bapu ji answer sadhana related questions of sadhaks with His benign Grace during Uttarayan Dhyan Yog Shivir, Ahmedabad, 2008.

सत्संग के मुख्य अंश:
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सत्संग का मजा लेना, आनंद लेना, ये शुरुआत वाले साधक के लक्षण हैं, लेकिन सत्संग के तत्त्व में टिकना, ये ऊँची समझ के धनी के अंतःकरण में होता है...

बड़ी बड़ी ऊँची साधना वाले साधकों को यहाँ भ्रम घुस जाता है, कि हम सत्संग में होते हैं तो बहुत ऊँची स्थिति होती है, फिर संसार में जाते हैं तो हमारी स्थिति डावांडोल हो जाती है...

स्थिति होती है फिर बदलती है, लेकिन अच्युत ज्यों का त्यों है, उधर नज़र जानी चाहिए...

स्थिति च्युत हो जाती है, लेकिन अच्युत च्युत नहीं होता...

यह अंतःकरण की अवस्था बदलती है - सात्त्विकता आई, राजसता आई, तामसता आई - लेकिन एक ऐसा तत्त्व है जो एकरस है, अच्युत है...

आप उसी के सनातन अंश हैं...उसी में जग जायें...उसी में सावधान रहें...

ॐ ॐ अच्युताय नमः...

तो कितनी भी गिरी हुई स्थिति ज्यादा देर गिरी हुई नहीं रहेगी...

और किसी भी स्थिति में, उतार-चढ़ाव में, विक्षेप नहीं होगा...

सत्संग को आदर से सुनें...और सुने हुए सत्संग को बार बार विचार करें...

स्थिर तत्त्व और स्थिति बनने वाले अंतःकरण में भेद पता चलता है गुरु कृपा से...

गुरु कृपा हि केवलं शिष्यस्य परम मंगलं...

समर्थ रामदास ने दासबोध में लिखा कि अगर मोक्ष चाहिए, ऊँची आध्यात्मिक उन्नति चाहिए, तो (साधक को) अद्वैत ज्ञान का आश्रय लेना चाहिए...

मन में बुरे विचार आयें / विक्षेप हो तो साधक क्या करे ? पूज्य बापूजी ने दिव्य युक्ति बतायी...

आप अवस्थाओं से अपना संबंध विच्छेद मान लो...

ऐसी अवस्था रहे, ना रहे, लेकिन, फिर भी जो रहता है, उसकी तरफ सजाग हो जाओ...

तो ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर, कार्य रहे न शेष...

मेरी ऐसी स्थिति बनी रहे, मुझे आशीर्वाद दो...नहीं नहीं, इस से भी आगे जाओ...

ऐसी स्थिति बनी रहे, ऐसा हो जाये, ऐसा न हो...ये छोड़ो...

जो हो हो के बदलता है, उसको महत्त्व न दो...

और जो कभी नहीं बदलता, उसको छोड़ो मत...

तो बहुत सारी साधनाओं के गलियारे और सड़कों की यात्रा के बिना ही आप उड़ान भर के उधर तत्त्व में पहुँच जायेंगे...

विक्षेप रहित सुरक्षित रास्ते से हम आपको ले जाना चाहते हैं...

'नारायण स्तुति' पुस्तक पढ़ो, तो तुम्हारा मन (विक्षेप रूपी) गलियारों में नहीं रहेगा, नारायण तत्त्व में जल्दी जग जायेगा...
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