शहीद गुर्जरों के परिवार के आजतक नहीं सूखे ख़ून के आंसू, 16 साल से इंसाफ़ के इंतज़ार में परिवार !

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23 मई 2008 का वो दिन जब राजस्थान में सबसे बड़ा बवाल हुआ। जब पूर्वी राजस्थान में बवाल की चिंगारी उठी और राजस्थान सहित पूरे देश में आग लगने लगी.. और जिस आग में अब तक 70 से भी ज्यादा जानें जा चुकी हैं। उस दिन राजस्थान ने पहली बार गुर्जर वर्सेज मीणा की जंग देखी.. और जंग भी ऐसी कि लोग एक-दुसरे के खून के प्यासे होने लगे। गुर्जरों को आरक्षण चाहिए था और मीणा गुर्जरों की इस लड़ाई पर ब्रेक लगाने उतर चुके थे। कौन भूल सकता है 2008 का ये खुनी खेल.. चारों तरफ आग के उठते शोले.. लाठी-डंडों के साथ एक दूसरे को मारने को उतारु गुर्जर और मीणा.. और पूर्वी राजस्थान में चप्पे-चप्पे पर राजस्थान पुलिस के साथ इंडियन आर्मी का पहरा.. जी हां.. तब हालात ऐसे बने की राजस्थान पुलिस तो दूर गुर्जर और मीणा सेना से भी नहीं संभल रहे थे। ये दिन कोई नहीं भूला.. ना वसुंधरा.. ना गहलोत और ना ही पीएम मोदी। किसे पता था कि दौसा से भड़की ये आग पूरे देश में फैल जाएगी.. और इस आग में एक साथ इतने लोग जल जाएंगे.. किसी ने अपना बेटा खोया.. किसी ने बाप.. किसी ने मां तो कितनों के पति आंदोलन की इस आग में कुर्बान हो गए। लेकिन आखिरकार 2009 में गुर्जरों का ये आंदोलन रंग लाया और विशेष पिछड़ा वर्ग यानि एसबीसी के तहत उन्हें 5 फीसदी आरक्षण मिला.. हालांकि 2008 से 9 तक आरक्षण मिलते-मिलते सरकार वसुंधरा से गहलोत की हो गई।
गुर्जरों की मेहनत 2009 में जरूर सफल हुई लेकिन फौरन ही कोर्ट ने इसपर रोक लगा दी.. नतीजा ये कि 2010 में आंदोलन फिर शुरू हुआ.. कई गुर्जर रेल रोककर ट्रैक पर बैठ गए.. इसके बाद 5 जनवरी 2011 को समझौता हुआ कि सरकार कोर्ट के आदेश के मुताबिक आरक्षण देगी, लेकिन कोर्ट का आदेश होता है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं मिल सकता। 2015 में आंदोलन फिर शुरू हुआ.. रेलवे ट्रैक जाम किया गया.. इसके बाद आर्थिक आधार पर ईबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण का विधेयक पेश किया गया। 16 अक्टूबर 2015 से 5 प्रतिशत आरक्षण मिलने लगा.. 14 महीने आरक्षण रहा और 1252 लोगों की नौकरी लगी। लेकिन 2016 में हाईकोर्ट ने 5 प्रतिशत आरक्षण रद्द कर दिया। जाहिर है इस फैसले से गुर्जर कहां शांत बैठते, 2017 में फिर से आंदोलन की चेतावनी दी गई। इसके बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट में गई, और वहां एसबीसी आरक्षण को लेकर मामला अब भी चल रहा है। कुल मिलाकर कहें तो गुर्जरों के दिल में आंदोलन की आग अब भी जल रही है और इसपर मीणाओं की भी पूरी नजर है।

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