चौकीया माता मंदीर जौनपुर की स्थापना किसने किया था? सरकार का क्या मत है?

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भर या भारशिव लोगों के इतिहास की खोज करने का प्रयास किया तो पता चलता है कि ये प्राचीन नागवंशी मूल के राजा थे जो वर्तमान में जाटों के एक गोत्र के रूप में राजस्थान, हरयाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में मिलते हैं। यह गोत्र अफ़ग़ानिस्तान और मुल्तान (पाकिस्तान) में भी मिलते हैं। इनके प्राचीन इतिहास पर अनुसंधान की आवश्यकता है। दलीप सिंह अहलावत (जाट वीरों का इतिहास, पृष्ठ.241-242) ने इनके इतिहास पर थोड़ासा प्रकाश निम्नानुसार डाला है- कुषाणशक्ति के अस्त और गुप्तों के उदय से पूर्व नागशक्ति शैव धर्मानुयायी रूप से पुनः उदित हुई। इस समय ये लोग शिवजी का अलंकार नाग (सांप) अपने गले में लिपटाकर रखने लगे थे। इन नवोदित नागवंशियों ने शिवलिंग को स्कन्ध पर धारण कर शिवपूजा की एक नई परम्परा स्थापित की थी। अतः इनका नाम भारशिव प्रसिद्ध हो गया। इस नाम को स्पष्ट करनेवाला एक लेख बालाघाट में मिला है। इसका उल्लेख ‘एपिग्राफिका इण्डिया’ भाग 1 पृष्ठ 269 तथा ‘फ्लीट गुप्त इन्स्क्रिप्शन्स’ 245 में इस प्रकार किया है - “शिवलिंग का भार ढोने से जिन्होंने शिव को भलीभांति सन्तुष्ट कर लिया था, जिन्होंने अपने पराक्रम से प्राप्त की हुई भागीरथी गंगा के पवित्र जल से राज्याभिषेक कराया और जिन्होंने दश अश्वमेध यज्ञ करके अवभृथ स्नान किया था, इस प्रकार उन भारशिव महाराजाओं का राजवंश प्रारम्भ हुआ।”

भर या भारशिव लोगों के इतिहास की अधिक जानकारी के लिए मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित में प्राचीन बौद्ध स्तूप के लिए विख्यात भरहुत नामक स्थान से प्राप्त अभिलेखों का गहन परीक्षण किया जाना चाहिए। भरहुत, सतना जिला,(AS, p.666): मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड के भूतपूर्व नागोद रियासत में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। भरहुत द्वितीय- प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित बौद्ध स्तूप तथा तोरणों के लिए साँची के समान ही प्रसिद्ध है। स्तूप के पूर्व में स्थित तोरण के स्तंभ पर उत्कीर्ण लेख से ज्ञात होता है कि इसका निर्माण 'बाछीपुत धनभूति' ने करवाया था जो गोतीपुत अगरजु का पुत्र और राजा गागीपुत विसदेव का प्रपौत्र था. इस अभिलेख की लिपि से यह विदित होता है कि यह स्तूप शुंगकालीन (प्रथम-द्वितीय शती पूर्व) है और अब इसके केवल अवशेष ही विद्यमान हैं। यह 68 फुट व्यास का बना था। इसके चारों ओर सात फुट ऊँची परिवेष्टनी (चहार दीवारी) का निर्माण किया गया था, जिसमें चार तोरण-द्वार थे। परिवेष्टनी तथा तोरण-द्वारों पर यक्ष-यक्षिणी तथा अन्यान्य अर्द्ध देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तथा जातक कथाएँ तक्षित हैं। जातक कथाएँ इतने विस्तार से अंकित हैं कि उनके वर्ण्य-विषय को समझने में कोई कठिनाई नहीं होती। भरहुत और साँची के तोरणों की मूर्तिकारी तथा कला में बहुत साम्यता है। इसका कारण इनका निर्माण काल और विषयों का एक होना है। इसके तोरणों के केवल कुछ ही कलापट्ट कलकता के संग्रहालय में सुरक्षित हैं किन्तु ये भरहुत की कला के सरल सौंदर्य के परिचय के लिए पर्याप्त हैं।

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