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Скачать или смотреть SHIV VIVAH */क्या आप जानते हैं कहां हुआ था शिव-पार्वती विवाह?

  • Dharm Darpan
  • 2023-02-16
  • 50
SHIV VIVAH */क्या आप जानते हैं कहां हुआ था शिव-पार्वती विवाह?
Dharn DarpanShiv VivahParvatiVishnuBrahmaHimvanRajesh Tripathi
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Описание к видео SHIV VIVAH */क्या आप जानते हैं कहां हुआ था शिव-पार्वती विवाह?

यह को सर्वविदित है कि शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। माना जाता है क‌ि ज‌िस स्‍थान पर देवी पार्वती ने तपस्‍या की थी वह गौरीकुंड केदारनाथ के पास स्‍थ‌ित है। गौरीकुंड की विशेषता यह है क‌ि यहां का पानी सर्दी के मौसम में भी गर्म रहता है। तपस्‍या पूरी होने के बाद गुप्तकाशी में देवी पार्वती ने भगवान श‌िव के सामने व‌िवाह का प्रस्ताव रखा था। जब भगवान श‌िव ने व‌िवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर ल‌िया तब देवी पार्वती के प‌िता ह‌िमालय ने व‌िवाह की तैयार‌ियां शुरू कर दीं और उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज‌िले में इनका विवाह हुआ।
रुद्रप्रयाग ज‌िले का एक गांव है त्र‌िर्युगी नारायण। कहते हैं इसी गांव में भगवान श‌िव का देवी पार्वती के साथ व‌िवाह हुआ था। इस गांव में भगवान व‌िष्‍णु और देवी लक्ष्मी को समर्प‌ित एक मंद‌िर है ज‌िसे श‌िव पार्वती के व‌िवाह स्‍थल के रूप में जाना जाता है। इस मंद‌िर के प्रांगण में कई चीजें हैं ज‌‌िनके बारे में बताया जाता है क‌ि यह श‌िव पार्वती के व‌िवाह के प्रतीक हैं।
श‌िव पार्वती के व‌िवाह में ब्रह्मा जी पुरोह‌ित बने थे। व‌िवाह में शाम‌िल होने से पहले ब्रह्मा जी ने ज‌िस कुंड में स्‍नान क‌िया था वह ब्रह्मकुंड कहलता है। तीर्थयात्री इस कुंड में स्नान करके ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
श‌‌िव पार्वती के व‌िवाह में भगवान व‌िष्‍णु ने देवी पार्वती के भाई की भूम‌िका न‌िभायी थी। भगवान व‌िष्‍णु ने उन सभी र‌ीत‌ियों को न‌िभाया जो एक भाई अपनी बहन के व‌िवाह में करता है। यहां एक व‌िष्‍णु कुंड है। कहते हैं इसी कुंड में स्नान करके भगवान व‌िष्‍णु ने व‌िवाह संस्कार में भाग ल‌िया था।
यहां एक रुद्र कुंड भी है। भगवान श‌िव के व‌िवाह में भाग लेने आए सभी देवी-देवताओं ने इसी रुद्र कुंड में स्‍नान क‌िया था। इन सभी कुंडों में जल का स्रोत सरस्वती कुंड को माना जाता है।
यहां वह भी स्‍थान है जहां पर भगवान श‌िव और पार्वती व‌िवाह के समय बैठे थे। इसी स्‍थान पर भगवान श‌िव के संग ब्रह्मा जी ने भगवान श‌िव का व‌िवाह करवाया था।
यहां त्र‌िर्युगी नारायण मंद‌िर में अखंड धूनी है। भगवान श‌िव ने इसी कुंड के चारों तरफ देवी पार्वती के संग फेरे ल‌िये थे। आज भी इस कुंड में अग्न‌ि को जीव‌ित रखा गया है। मंद‌िर में प्रसाद रूप में लकड़‌ियां भी चढ़ायी जाती हैं। श्रद्धालु इस प‌व‌ित्र अग्न‌ि कुंड की राख अपने घर ले जाते हैं। कहते हैं यह वैवाह‌िक जीवन में आने वाली समस्याओं को दूर करती है।
यहां एक स्तंभ है। भगवान श‌िव को व‌िवाह में एक गाय म‌िली थी। इस स्तंभ को न‌िशानी के तौर पर जाना जाता है इसमें गाय बंधी ‌गई थी।
भगवान शिव की पत्‍नी मां पार्वती हैं और इन दोनों का जन्म जन्मांतरों का संबंध है. पुराणों में इनके विवाह की कई तरह की कथाएं हैं. लोकमान्‍यताओं के अनुसार, शिवजी ने हिमालय के मंदाकिनी क्षेत्र के त्रियुगीनारायण में पार्वती से विवाह किया था। जहां के लोग कहते हैं कि आज भी वहां अग्नि की अखंड ज्योति जल रही है। वह ज्‍योति कभी बुझती नहीं हैं। बताया जाता है कि, शिव-पार्वती उसी ज्योति के सामने विवाह बंधन में बंधे थे।
ग्रंथों में यह उल्लेख है कि पार्वती पर्वतराज हिमावत की पुत्री थीं। पार्वती का पुनर्जन्म हुआ था, पिछले जन्‍म में वह सती थीं, जिन्‍होंने शिव का अपमान होने पर आत्‍मदाह कर लिया था। नया जन्‍म होने पर पार्वती ने कठिन तपस्‍या की और शिवजी का मन जीता। जिस स्थान पर मां पार्वती ने साधना की, उसे अब गौरी कुंड कहा जाता है। समय आने पर, शिवजी ने गुप्तकाशी में पार्वती के सामने विवाह प्रस्ताव रखा था। इसके बाद दोनों का विवाह त्रियुगीनारायण गांव में मंदाकिनी सोन और गंगा के मिलन-स्थल पर संपन्न हुआ।’
कहते हैं कि इस विवाह में संत-मुनियों व शिवगणों, दैत्‍य-दानवों-भूतों सभी ने भाग लिया था। शिव-पार्वती विवाह से पहले देवताओं ने वहां पवित्र जगह स्नान भी किया था, तब वहां तीन कुंड बने, जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहा गया. इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है।
श्रद्धालु त्रियुगीनारायण जाते हैं, वे गौरीकुंड के दर्शन भी करते हैं।यहां पहुंचने के लिए केदारनाथ धाम आना होगा।
मंदिर में स्थित अखंड धूनी के संबंध में मान्यता है कि ये तीन युगों से अखंड जल रही है। इसी वजह से इसे त्रियुगी मंदिर कहते हैं। ये मुख्य रूप से नारायण यानी भगवान विष्णु और लक्ष्मी का मंदिर है लेकिन यहां शिव-पार्वती का विवाह हुआ था, इस कारण मंदिर में शिवजी और विष्णुजी के भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
त्रेता युग में देवी सती ने अपने पिता प्रजापति के दक्ष के यज्ञ कुंड में कूद कर प्राण त्याग दिए थे। इसके बाद देवी ने पार्वती के रूप में जन्म लिया था। पार्वती ने कठोर तप करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और विवाह करने का वरदान मांगा। तब भगवान विष्णु ने पार्वती और शिवजी का विवाह इसी जगह करवाया था। इस मंदिर का स्वरूप केदारनाथ धाम के मंदिर जैसा है।
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