आखिर गणपती जी को ही सबसे पहले क्यूँ पूजा जाता है भाई मेरे बात यूं के भारतीय सनातन परंपरा में, किसी भी शुभ कार्य या अनुष्ठान का आरम्भ भगवान श्री गणेश के आह्वान और पूजन के साथ होता है। शास्त्रों के अनुसार, किसी भी कार्य का शुभारंभ, चाहे वह यज्ञ हो, विवाह हो, नई यात्रा हो या दैनिक पूजा हो वो भगवान श्री गणेश जी के स्मरण और आराधना के बिना अधूरा माना जाता है क्योंकि उन्हें विघ्नहरता व ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी कहा जाता है, यह परंपरा केवल एक धार्मिक रिवाज नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहन पौराणिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक सिद्धांत निहित हैं। भगवान गणेश को 'प्रथम पूज्य' की उपाधि प्राप्त है, जिसका अर्थ है कि वे देवताओं में सर्वप्रथम पूजे जाने योग्य हैं। यह उपाधि, 'प्रथम पूज्य', उनके असाधारण ज्ञान, विवेक और परम तत्व के साथ उनके अभिन्न संबंध के कारण स्थापित हुई है। उनकी गणना हिंदू धर्म के पांच प्रमुख देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश, दुर्गा और गणेश) में होती है, गणेश जी को अनेक नामों से जाना जाता है, जिनमें 'विघ्नहर्ता' , 'मंगलकर्ता', 'बुद्धि के देवता', 'रिद्धि-सिद्धि के दाता' और 'गणपति' (गणों के ईश्वर या सेनापति) प्रमुख हैं। उनकी पूजा विशेष रूप से संकटों को टालने वाले देवता के रूप में की जाती है । प्रत्येक शुभ कार्य के पूर्व 'श्री गणेश्ञाय नमः का उच्यारण कर उनकी स्तुति में यह मंत्र बोला जाता है- वक्रतुण्ड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभः । निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥ गणेशजी विद्या के देवता हैं। साधना में उच्चस्तरीय दूरदर्शिता आ जाए, उचित-अनुचित ,कर्तव्य-अकर्तव्य की पहचान हो जाए, इसीलिए सभी शुभ कार्यों में गणेश पूज़न का विधान बनाया गया है।अब आइए जानते है के गणेशजी की ही पूजा सबसे पहले क्यों होती है और इस से जुड़ी एक पौराणिक कथा इस प्रकार है- शिवपुराण की एक कथा के अनुसार एक बार समस्त देवताओं के बीच यह विवाद उत्पन्न हुआ कि पृथ्वी पर सर्वप्रथम कौन पूजा जाने योग्य है। सभी देवता स्वयं को श्रेष्ठ बताने लगे। इस समस्या के समाधान हेतु, भगवान शिव ने एक प्रतियोगिता रखी कि जो सबसे पहले पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा करके वापस आएगा, वही 'प्रथम पूज्य' कहलाएगा इस पर सभी देवतागण अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर परिक्रमा हेतु चल पड़े साथ ही भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) अपने तेज वाहन मोर पर सवार होकर बिना विलंब किए ब्रह्मांड की परिक्रमा के लिए निकल पड़े वहीं, गणेश जी का वाहन एक छोटा मूषक (चूहा) था,जो अत्यंत धीमी गति से चलने वाला था, इसलिए गणेश जी ने अपनी तीव्र बुद्धि का प्रयोग किया। उन्होंने विनम्रतापूर्वक अपने माता-पिता, भगवान शिव और माता पार्वती, की सात बार और कहीं कहीं तीन बार लिखा आता है परिक्रमा पूर्ण की और हाथ जोड़कर खड़े हो गए। समस्त देव गण और भगवान शंकर ये सब देख कर हैरान हुये और जब शिवजी ने उनसे परिक्रमा पर ना जाकर ये सब करने का कारण पूछा, तो गणेश जी ने उत्तर दिया, के “मेरे लिए आप दोनों ही संपूर्ण ब्रह्मांड हैं” । तब शिव जी ने प्रसन्न होकर कहा कि तुमसे बढ़कर संसार में अन्य कोई इतना चतुर नहीं है। माता-पिता की तीन परिक्रमा से तीनों लोकों की परिक्रमा का पुण्य तुम्हें मिल गया, जो ब्रह्मांड की परिक्रमा से भी बड़ा है और उन्होंने गणेश को विजेता घोषित कर दिया माता-पिता की परिक्रमा करके, गणेश जी ने यह सिद्ध किया कि माता-पिता को पूरे ब्रह्मांड और समस्त लोकों में सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त है । उनका यह कार्य भौतिक दूरी तय करने से अधिक आध्यात्मिक रूप से श्रेष्ठ था इसलिए उन्हें 'प्रथम पूज्य', 'विघ्नविनाशक' और 'गणपति' का वरदान दिया और कहा के जो मनुष्य किसी कार्य के शुभारंभ से पहले तुम्हारा पूजन करेगा, उसे कोई बाधा नहीं आएगी। बस, तभी से गणेशजी प्रथम पूजनीय हो गए। लगे हाथ आपको एक बात ओर बता दूँ के गणेश का जो ये शरीर है उसका हर तत्व एक गूढ़ जीवन सिद्धांत को दर्शाता है, जिसे प्रथम पूजा के माध्यम से अपनाने का संकल्प लिया जाता है: जैसे कि गजमुख यानि के हाथी का सिर जो हाथी धैर्य, शक्ति और विशाल ज्ञान का पर्याय है । यह दर्शाता है कि भौतिक बल से कहीं अधिक श्रेष्ठता ज्ञान और विवेक की होती है। गणेश का विशाल आकार समूचे ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है और उनकी मुड़ी हुई सूंड ओंकार की आकृति की प्रतीक है । हाथी की सूंड वाचा तपस्या यानि कि वाणी नियंत्रण का संदेश देती है ।और उनके बड़े बड़े कान ये इंगित करते हैं कि व्यक्ति को ध्यानपूर्वक और अधिक सुनना चाहिए, जबकि बड़ा उदर यह बताता है कि ज्ञान और रहस्य को आत्मसात यानि कि पचाना चाहिए।और उनका एकदंत मतलब टूटा हुआ दाँत यह त्याग और द्वैत (duality) के उन्मूलन का प्रतीक है। किंवदंतियों के अनुसार गणेश जी ने इसी टूटे हुए दाँत से महाभारत की कथा लिखी थी, जो यह दर्शाता है कि ज्ञान की प्राप्ति और प्रसार के लिए बलिदान आवश्यक है । और उनका वाहन मूषक यानि चूहा जोकि तीव्र इच्छाओं, अहंकार और लालच का प्रतीक है । गणेश का मूषक पर बैठना इस बात का परिचायक है कि उन्होंने इन आंतरिक विकारों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया है। वे समदर्शी हैं, जो छोटे-बड़े, अमीर-गरीब में कोई भेद नहीं देखते
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