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Скачать или смотреть नंदी महाराज पर ही क्यों विराजते हैं भगवान शिव, जानें क्या है पौराणिक कथा

  • सनातन सर्वोपरि
  • 2023-11-21
  • 7
नंदी महाराज पर ही क्यों विराजते हैं भगवान शिव, जानें क्या है पौराणिक कथा
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Описание к видео नंदी महाराज पर ही क्यों विराजते हैं भगवान शिव, जानें क्या है पौराणिक कथा

आप जब भी शिवालय जाते हैं तो वहां भगवान शिव तक अपनी प्रार्थना पहुंचाने के लिए नंदी महाराज के कान में जरूर कुछ कहते होंगे, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि नंदी महाराज पर ही भगवान शिव क्यों विराजते हैं। भगवान शिव को नंदी इतने प्रिय क्यों हैं। यदि नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं। दरअसल इसके पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। चलिए जानते हैं कौन सी हैं वे कथाएं।


भगवान को भोलेनाथ यूं ही नहीं कहा जाता है। कहते हैं एक लोटा जल, हर समस्या का हल। भगवान शिव को लेकर कहा जाता है कि ये अपने नाम की तरह बिल्कुल भोले हैं। वे जरा सी भक्ति से ही प्रसन्न हो जाते हैं। साथ ही उनके क्रोध से भी कोई नहीं बच सकता। देवों के देव महादेव हैं। सबसे शक्तिशाली देवों में उनकी गिनती है। इसी तरह नंदी के स्वभाव के बारे में कहा जाता है कि वे भी बेहद आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन उनके क्रोध के बारे में पूरी दुनिया परिचित है। कहा गया जैसे शिव भोलेभाले वाले देवता है वैसे ही उनका वाहन नंदी है। बैल का स्वभाव भी शिव के तरह है। बैल की शक्ति और ताकत का आप अंदाजा नहीं लगा सकते। बैल में जितनी आस्था और भरोसा देखा जाता है उसका गुस्सा भी उतना ही भयावह है।



पौराणिक कथाओं के अनुसार नंदी के जन्म के बारे में कहा जाता है कि वे ब्रहृमचारी ऋषि शिलाद के पुत्र हैं। ऋषि शिलाद वैसे तो ब्रहृचारी थे लेकिन इनकी इच्छा थी कि उनका वंश आगे बढ़े। जिसके बाद शिलाद ऋषि के मन में एक बच्चा गोद लेने का विचार आया। बच्चा गोद लेने का विचार तो बना लिया पर वे चाहते थे कि वे ऐसा बच्चा गोद लें जिस पर भगवान शिव की असीम कृपा रहे। जिसके बाद वे घोर तपस्या में लीन हो गए।


काफी लंबे समय तक कठोर और लंबी तप के बाद आखिर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने ऋषि शिलाद को साक्षात दर्शन देकर बोले मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूं। भगवान शिव ने शिलाद ऋषि से कहा, “मांगो, क्या वर मांगना चाहते हो।” ऋषि शिलाद ने अपनी इच्छा और कामना भगवान शिव के समक्ष रखी। भगवान शिव ने शिलाद को पुत्र का आशीर्वाद देकर कहा तथास्तु।

जिसके बाद वे नंदी को अपने साथ अपने घर ले आए और उसका लालन-पालन करने लगे। देखते देखते नंदी बड़ा हो गया। नंदी ने अपने पिता से कहा, “आपने मुझे स्वयं भगवान शिव के आशीर्वाद से पाया है, तो मेरे इस जीवन की रक्षा भी भगवान शिव ही करेंगे।



अपने पिता की तरह ही नंदी ने भी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। फलस्वरूप भगवान शिव प्रसन्न हुए और नंदी को बैल का मुख देकर अपना सबसे प्रिय और वाहक बनाया। इस प्रकार नंदी भगवान शिव के सबसे प्रिय वाहन बने और समाज में उन्हें पूजनीय स्थान भी मिला। यही वजह है कि भगवान शिव की आराधना से पूर्व उनके प्रिय नंदी की पूजा की जाती है। इसलिए नंदी महाराज पर ही भगवान शिव विराजते हैं।


एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार दानवों और देवताओं के बीच जब समुद्र मंथन हुआ था इस दौरान जब कालकूट विष निकला था। इस विष को शिवजी ने कण्ठ में धारण किया था। इसलिए महादेव को “नीलकण्ठ” कहा गया। इसी कथा में माना जाता है कि विषपान के समय इसकी कुछ बूंदें जमीन पर गिर गईं जिसे नंदी ने अपने जीभ से समेट लिया और नंदी के इस समर्पण भाव को देखकर शिव जी बेहद प्रसन्न हुए और नंदी को अपना सबसे बड़े भक्त बनाया लिया था। जिसके बाद से नंदी महाराज भगवान शिव के वाहन बन गए।

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