सोढ़ा परमारपंवार वंश का संपूर्ण इतिहास संपूर्ण शाखाओं व ठिकानों सहित

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सोढ़ा एक राजपूत वंश है जो सिन्ध के थारपरकर जिले में तथा गुजरात के कच्छ जिलों की मूल निवासी रही है। वर्तमान समय में पाकिस्तान में २५ हजार से ३० हजार परिवार हैं।
रतेकोट और अमरकोट रियासते सोढा राजपूतो (परमार) ने यहाँ शासन किया ये अब पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हैं। अमरकोट से पूर्व सोढा (परमार) राजपूत रतेकोट दुर्ग में रहते थे । इनका सीधा संबंध परमार साम्राज्य से है । सोढा राजपूत चक्रवर्ती महाराजा वीर विक्रमादित्य उज्जैन के वंशज हैं। जिन्होंने शको पर विजय के बाद विक्रम संवत की स्थापना की चक्रवर्ती महाराजा वीर विक्रमादित्य की 25 वीं पीढ़ी बाद छत्रपति महाराज वीर मालवा राजा भोज हुए

परमार वंश के छत्रपति महाराजा जगदेव परमार महाराजा उजंयादीप के पुत्र थे उनका राज्य उज्जैन और धारा नगर पर था । शक्ति वांकल माता महाराजा जगदेव परमार की पुत्री थी। महाराज जगदेव परमार की आठवीं पीढ़ी बाद छत्रपति महाराज बाहड़देव परमार हुए विक्रम संवत 1183 में जूना केराड़ू(राजस्थान का खजुराहो बाड़मेर)पर शासन किया । विक्रम संवत 1196 में बहाड़राव परमार ने अपने राज्य का नाम बाड़मेर कर दिया जो वर्तमान में राजस्थान में हैं। महाराजा की बीमारी के कारण मृत्यु हुई इसके बाद इनका शासन उनके पुत्र महाराजा छत्रपति चाहड़राव ने बाड़मेर से 50 कोस दूर शिवपुरी नामक स्थान की स्थापना की जिसे वर्तमान में शिव (बाड़मेर शिव विधानसभा क्षेत्र) के नाम से जाना जाता हैं। महाराजा के दो पुत्र और एक पुत्री थे । सबसे बड़ी पुत्री कल्याण कँवर जिन्हें शक्ति सच्चियाय माता के नाम से भी जाना जाता हैं(ओसियां, केराड़ू )। बड़े पुत्र सांखला राजपूत जिन्होंने पिता का राज्य जाँगूलदेश लिया और छोटे पुत्र सोढा हुए । सोढा ने विक्रम संवत 1282में सिंध के अधिकतर हिस्सों को युद्ध कर के जीत लिया और रतेकोट(कैलाश कोट) के मुगल शासक रता बादशाह को बाबा वीरनाथ जी कृपा से हराया और वो मुगल रत्ता मारा गया। इसके बाद थारपारकर और अमरकोट के किलो पर अधिकार किया। राणा सोढा के बड़े पुत्र कुँवर चाचकदेव सोढा हुए और छोटे *कुँवर दूदा जी कुँवर दूदा जी के पुत्र राणा महेंद्र सिंह सोढा हुए जिनके प्रेम प्रसंग के किस्से मूमल-महेंद्र के नाम से आ भी थार में जाने जाते है।

मूमल राठौड़ राजानन्द राठौड़ की पुत्री थी जिनका राज्य रोड़ी सीकर था । मूमल के महलों के अवशेष जैसलमेर के लोद्रवा गांव में देखे जा सकते हैं
राणा अत्यन्त दानी पुरुष थे इसलिएयोग उन्हें राणा पुकारते थे । विक्रम संवत 1296 में राणा महेंद्र की पुत्री कायलादेकँवर का विवाह धांधल जीके पुत्र *पाबूजी राठौड़ से हुआ था

पाबूजी राठौड़ को शादी के दौरान पता चलता है कि हमारे राज्य की गाय चोरी हो गयी है इसलिए मंडप से 7 फेरे न लेते हुए गठजोड़े को तलवार से काटकर युद्ध मे गए और गो रक्षा में अपने प्राण त्याग दिए।
कायलादे कंवर पाबूजी के पीछे सती हुई थी। राणा चाचकदेव के पुत्र राणा रायदेव विक्रम संवत 1303 अमरकोट और रतेकोट के गद्दी पर बैठे। अपने राज्य की गायों चोरी होने पर राणा ने केसी के हैदर खान के साथ जैसलमेर की किशनगढ़ सीमा पर युद्ध किया और जिसमे हैदर खान मारा गया और आते समय जैसलमेर महारावल ने उनका स्वागत किया और राणा ने अपनी पुत्री मैनावती का विवाह महारावल पुनपाल से करवा दिया । राणा के पुत्र राणा जेभृमसिंह हुए राणा जेभ्रम सिंह ने जम्फ चरण को खरोडो स्टेट इनायत की जिसके कविराज तेजदान देथा वर्तमान में जागीरदार है और जेभृम सिंह के पुत्र राणा जसहड़ हुए राणा जसहड़ के पुत्र राणा सोमेश्वर हुए राणा सोमेश्वर के चार पुत्र थे 1 राणा दुर्जनसाल 2राणा आशराव (राणा आसराव जिन्होंने नगर विरवाव जीतकर राज किया । 3भीम सिंह इनके दो पुत्र हुए अखा जी और नादा जी ,इन्होंने गुड़ा और नगर (बाड़मेर राजस्थान)के 48 गांव बसाए । 4तेजपाल इनमे 13 पुत्र थे इनकी जागीरी कछ गुजरात मे हैं। राणा दुर्जनसाल विक्रम संवत 1404 में अमरकोट व रतेकोट का राणा बना । राणा ने ही अमरकोट (पाकिस्तान)के पास *लाम्बा नाम का तालाब खुदवाया था राणा दुर्जनसाल का पुत्र *राणा खिंवरा विक्रम संवत 1439 में अमरकोट का राणा बना उस समय जैसलमेर राज्य के *महारावल दूदा जी थे महारावल के भाई रावल तिलोकसि वीरता के कारण प्रसिद्धि हुए। उस समय जैसलमेर पर आक्रमण हुआ और महारावल ने अमरकोट राणा खिंवरा को सहायता के लिए बुलाया उस युद्ध मे खिंवरा की सेना मुस्लिम सेना पर भारी पड़ी और राणा और महारावल दूदा जी विजय हुई । राणा की बहादुरी से प्रश्न होकर महारावल दूदा ने अपनी पुत्री का विवाह राणा खिंवरा के साथ करवा दिया । विवाह का तोरण जैसमलेर किले की सूरज प्रोल पर लटकाया गया था तोरण की रश्म पूरी करने के लिए राणा ने घोड़ी को प्रोल तक उठाया था घोड़ी के पैरो के निशान आज भी जैसलमेर के किले की सूरजपोल पर अंकित है । राणा ने 1550 घोड़े लाग के रूप में जैसलमेर में ही दान किये ,उनकी दान वीरता के किस्से मारवाड़ में राणा खींवरा के दोहों औए लोकगीतों में मिलते है। राणा के पड़पोत्र राणा हमीर सिंह हुए जिनका राज तिलक विक्रम संवत 1542 में अमरकोट में हुआ ।

राणा हमीर सिंह ने ही दिल्ली के *बादशाह हुमायूँ को शरण दी थी और *अकबर का जन्म अमरकोट के किले में हुआ और बादशाह के आक पिलाने पर भी अकबर नहीं मरा तब सगुनी स्वररूप सिंह सोलंकी के कहने पर हुमायूं ने अकबर को नही मारा। बाद में अकबर ने राणा के कर्ज को एक चिन्ह हमीराणा दाग देकर उतारा उस चुन्ह के पशुओं पर और राज्य में जजिया कर नही लिया जाता था। उस हमीराणा दाग से दागे गए पशु मुगल राज्य में नीलाम नही होते थे।
राणा हमीर में पुत्र राणा बीसा हुए जिन्होंने मारवाड़ पाली पर दो साल शासन किया बाद में अपने छोटे भाई से युद्ध कर अपना अमरकोट राज्य वापिस लिया। राणा बीसा ने ही सन 1633 में ही महाराणा प्रताप को अपना मुहता *भामाशाह मदद के लिए दिया था।

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