चम्बल का इतिहास|History Of Chambal|चम्बल के डाकू|Dacoits Of Chambal|चम्बल के डाकुओं का इतिहास

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चम्बल का इतिहास|History Of Chambal|चम्बल के डाकू|Dacoits Of Chambal


चम्बल के डाकुओं का इतिहास
मध्य प्रदेश का नाम सुनते ही जेहन में आते है ; चम्बल के डाकू ...
चम्बल का नाम आते ही आंखों के सामने डाकूओं एक तस्वीर उभरती हैं हाथों बन्दूक सिर पर पकड़ी जो साहूकारों व जमींदारों को लूटते थे। डाकूओं की यह तस्वीर फिल्मों ने पेश की है लेकिन बहुत कम ही लोग जाते हैं कि डाकूओं ने देश की आजादी में अहम् भूमिका निभाई। चम्बल में बसने वाले डाकू (बागी) जिन्हें पिंडारी कहा जाता था उन्होंने देश के क्रांतिकारियों को न केवल असलहा व गोला बारूद मुहैया कराया बल्कि उनको छिपने का स्थान भी दिया। चम्बल के बीहड़ों में आजादी की जंग 1909 से शुरू हुई थी। इससे पहले शौर्य, पराक्रम और स्वाभिमान का प्रतीक मानी जाने वाली बीहड़ की वादियां शान्त हुआ करती थीं। इटावा के बुजुर्ग बताते हैं कि चम्बल में रहने वालों ने क्रांतिकारियों का भरपूर साथ दिया। बीहड़ क्रांतिकारियों के छिपने का सुरक्षित ठिकाना हुआ करता था। यह फिल्मों की देन थी कि बीहड़ों में रहने वाले लोगों को हम डकैत कहने लगे, लेकिन अंग्रेज उन्हें बागी कहा करते थे। चम्बल के डकैतों को बागी कहलाना ही पसंद है। आजादी के बाद बीहड़ में जुर्म होने लगे, जो उनकी मजबूरी थी। बीहड में बसे डकैतों के पूर्वजों ने आजादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर क्रान्तिकारियों का साथ दिया लेकिन आजादी के बाद उन्हें कुछ नहीं मिला। बीहड़ों के जानकार बताते हैं कि राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में चम्बल के किनारे 450 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में बागी आजादी से पहले रहा करते थे। उन्हें ङ्क्षपडारी कहा जाता था। ङ्क्षपडारी मुगलकालीन जमींदारों के पाले हुए वफादार सिपाही हुआ करते थे, जिनका इस्तेमाल जमींदार विवाद को निबटाने के लिए किया करते थे। मुगलकाल की समाप्ति के बाद अंग्रेजी शासन में चम्बल के किनारे रहने वाले इन्हीं ङ्क्षपडारियों ने वहीं डकैती डालना शुर कर दिया और बचने के लिए अपनाया चम्बल की वादियों का रास्ता।
अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आन्दोलन में चम्बल के किनारे बसी हथकान रियासत के हथकान थाने में सन् 1909 में डकैत पंचम सिंह, पामर और मुस्कुंड के सहयोग से क्रान्तिकारी पडिण्त गेंदालाल दीक्षित ने थाने पर हमला कर 21 पुलिस कॢमयों को मौत के घाट उतार दिया और थाना लूट लिया। इन्हीं डकैतों ने क्रान्तिकारियों गेंदालाल दीक्षित, अशफाक उल्ला खान के नेतृत्व में सन 1909 में ही पिन्हार तहसील का खजाना लूटा और उन्हीं हथियारों से 9 अगस्त 1915 को हरदोई से लखनऊ जा रही ट्रेन को काकोरी रेलवे स्टेशन पर रोककर सरकारी खजाना लूटा। चम्बल के इतिहास में पंचम सिंह, पामर, मुस्कुंड के बाद नामी गिरामी दस्यु सम्राट सुल्ताना डाकू, मान सिंह मल्लाह, मलखान सिंह, दराब सिंह, माधव सिंह, तहसीलदार सिंह, लालाराम, राम आसरे तिवारी उर्फ फक्कड बाबा, निर्भय गुर्जर, रज्जन गुर्जर, पहलवान उर्फ सलीम गुर्जर, अरविंद गुर्जर, रामवीर गुर्जर, राम बाबू गरेडिया, शंकर केवट, मंगली केवट, चंदन यादव, जगजीवन परिहार के अलावा दस्यु सुन्दरियों में पुतलीबाई से लेकर फूलन देवी, कुसुमा नाइन, सीमा परिहार, मुन्नी पांडेय, लवली पाण्डे, गंगा पाण्डे, ममता विश्नोई उर्फ गुड्डी, सुरेखा, नीलम, पार्वती, सरला जाटव, रेनू यादव व सीमा जोशी जैसी सुन्दरियों का चम्बलघाटी में आतंक कायम रहा जिन्होंने अपहरण और लूट हत्याओं को अंजाम देकर चम्बल के बीहडों से लेकर गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और राजधानी दिल्ली तक अपने खौफ को बरकरार रखा।



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