वहाँ सदैव सुख समृद्धि और लक्ष्मी कृपा रहती है।आज जिस घर में यह।चमत्कारी विष्णु कथा । सुनी जाती है।
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🕉️ ब्रह्म बोध प्रस्तुति: भक्ति का परम सत्य नमस्कार, ब्रह्म बोध यूट्यूब चैनल में आपका स्वागत है। आज के वीडियो का शीर्षक। माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की एक दिव्य कथा श्रद्धापूर्वक सुनिए, भक्तजनो! यह कथा है मर्यादा और प्रेम की, जो वैकुण्ठ से आरंभ होती है। क्षीर सागर के परम दिव्य वातावरण में, एक दिवस हमारे पालनहार, भगवान श्री हरि विष्णु ने अपनी शक्ति, माता लक्ष्मी से पृथ्वी लोक के अवलोकन की इच्छा व्यक्त की। माता ने तुरंत सहमति दी, किंतु जगतपति ने उन्हें एक अत्यंत गंभीर मर्यादा की डोर सौंपी: "हे प्रिय! पृथ्वी पर तुम्हें किसी भी स्थिति में उत्तर दिशा की ओर दृष्टि नहीं डालनी है। यदि इस वचन का अतिक्रमण हुआ, तो स्वयं तुम्हें भी कर्म के विधान का दंड स्वीकार करना होगा।" पृथ्वी पर पदार्पण करते ही, लक्ष्मी जी धरा के अद्भुत सौंदर्य में इतनी लीन हुईं कि क्षण भर को वह मर्यादा भूल गईं। उनकी दृष्टि उत्तर की ओर चली गई और वहाँ के पुष्पों से भरे एक अत्यंत मनमोहक बगीचे को देखकर उनका मन मोहित हो उठा। उन्होंने बिना अनुमति के एक सुमन तोड़ा और जब वे उसे विष्णु जी के चरणों में अर्पित करने गईं, तो प्रभु ने पूछा, "लक्ष्मी! क्या तुमने इस पुष्प को इसके स्वामी से पूछा है?" अपनी त्रुटि स्वीकार करते ही, श्री हरि ने कहा कि जगत में किसी के भी अधिकार का हनन अक्षम्य है। प्रायश्चित के रूप में, उन्होंने आदेश दिया कि माता लक्ष्मी तीन वर्ष तक उस अत्यंत गरीब माली के घर में एक साधारण सेवक के रूप में सेवा करें।
आज्ञा शिरोधार्य कर, धन की देवी ने तत्क्षण एक दीन, असहाय और अनाथ बालिका का रूप धरा और माली के द्वार पर दस्तक दी। माली ने अपनी दरिद्रता का वर्णन किया और बताया कि वह केवल रूखा-सूखा ही खिला पाएगा, क्योंकि उसके पास पाँच बच्चों का भार है। लक्ष्मी जी ने उसकी हर बात स्वीकार कर ली और विनम्रता से उसकी बेटी बनकर उस झोपड़ी में रहने लगीं। उनकी सेवा अद्भुत थी: निष्काम, समर्पित और दोषरहित। वह घर के सारे कार्य करतीं और बगीचे को ऐसे सँवारतीं मानो वह स्वर्ग का नंदनवन हो। धीरे-धीरे, उस घर पर भगवान की कृपा बरसने लगी। लक्ष्मी जी के चरण पड़ते ही माली के घर में अकूत बरकत होने लगी; उसके पुष्पों का व्यापार बढ़ा और दरिद्रता का साया छँटने लगा। माली, जो अब उन्हें चौथी बेटी मानता था, उन पर अपना सारा स्नेह लुटाता। एक बार जब माली गंभीर रूप से बीमार पड़ गया, तो लक्ष्मी रूपी कन्या ने अपनी दैवीय शक्ति से एक चमत्कारी बूटी लाकर उसे नया जीवन प्रदान किया।
तीन वर्ष की अवधि पूरी होते ही, भगवान श्री हरि विष्णु स्वयं माली के द्वार पर प्रकट हुए। ठीक उसी क्षण, माता लक्ष्मी ने अपने सेवक रूप को त्याग कर तेजस्वी देवी स्वरूप धारण किया। चारों दिशाओं में दिव्य प्रकाश फैल गया। माली ने जब अपने सम्मुख जगत के पालक और धन की देवी को देखा, तो वह आश्चर्य और भक्ति से विह्वल होकर चरणों में गिर पड़ा। अश्रुपूर्ण नेत्रों से उसने अपनी अज्ञानता के लिए बार-बार क्षमा माँगी। माँ लक्ष्मी ने अत्यंत वात्सल्य से उसे काका कहकर उठाया और कहा, "तुम्हारे प्रेम और आदर ने मेरे दंड की पूर्ति कर दी है। अब मैं दोषमुक्त हूँ।" प्रभु विष्णु ने तब माली को आशीर्वाद दिया कि आज से उसके घर से दरिद्रता सदा के लिए दूर हो जाएगी और वह धन, वैभव तथा सुख शांति के साथ जीवन व्यतीत करेगा। इस प्रकार, माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु उस परम भाग्यशाली भक्त को अतुलनीय आशीर्वाद देकर अपने वैकुण्ठ धाम को प्रस्थान कर गए। यह कथा हमें सिखाती है कि मर्यादा और प्रेम का पालन ही सबसे बड़ा धर्म है।कथा का सार
यह कथा मर्यादा और प्रेम के महत्व को दर्शाती है।
मर्यादा का उल्लंघन: वैकुण्ठ में, भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को पृथ्वी अवलोकन के समय उत्तर दिशा की ओर न देखने की सख्त मर्यादा दी। पृथ्वी पर आकर, माता लक्ष्मी क्षण भर के लिए यह वचन भूल गईं और उत्तर दिशा के बगीचे से बिना पूछे एक फूल तोड़ लिया, जिससे मर्यादा का उल्लंघन हुआ।
कर्म का विधान और प्रायश्चित: प्रभु विष्णु ने इस त्रुटि को 'किसी के अधिकार का हनन' बताते हुए, प्रायश्चित के रूप में माता लक्ष्मी को तीन वर्ष तक एक अत्यंत गरीब माली के घर में साधारण सेवक के रूप में सेवा करने का आदेश दिया।
निष्काम सेवा और प्रेम का फल: लक्ष्मी जी ने एक दीन बालिका का रूप धारण कर, पूर्ण समर्पण और प्रेम के साथ माली के घर की सेवा की। उनकी सेवा से माली के घर पर बरकत आई और उसकी दरिद्रता दूर हो गई। माली ने उन्हें अपनी बेटी की तरह स्नेह दिया।
दिव्य आशीर्वाद: तीन वर्ष पूरे होने पर, भगवान विष्णु प्रकट हुए। माता लक्ष्मी ने अपना दिव्य स्वरूप धारण किया। माली के प्रेम और आदर ने दंड की पूर्ति कर दी। प्रभु ने उसे आशीर्वाद दिया कि उसके घर से दरिद्रता सदा के लिए दूर हो जाएगी और वह धन-वैभव से युक्त होगा।
धन्यवाद।
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