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Скачать или смотреть sita ji aur ghaas ka tinke ka rahsaya ,रावण को देखते ही माता सीता क्यों उठा लेती थी घास का तिनका |

  • Devlok ki Kahaniyan देवलोक की कहानियां
  • 2020-08-11
  • 429
sita ji aur ghaas ka tinke ka rahsaya ,रावण को देखते ही माता सीता क्यों उठा लेती थी घास का तिनका |
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Описание к видео sita ji aur ghaas ka tinke ka rahsaya ,रावण को देखते ही माता सीता क्यों उठा लेती थी घास का तिनका |

mata sita aur ghaas ke tinke ka rahasya # ravan ko dekhte hi mata sita kyun utha lete thi ghaas ka tinka #

रावण जब सीताजी का हरण करके लंका ले गया, तब माता सीता अशोक वाटिका में वट वृक्ष के नीचे बैठकर केवल प्रभु श्रीराम का स्‍मरण और चिंतन करतीं रहती थीं। रावण बार-बार आकर सीताजी को धमकाता था लेकिन वह कुछ नहीं बोलती थीं। यहां तक कि रावण ने श्रीराम के वेश में आकर माता सीता को भ्रमित करने की कोशिश की लेकिन फिर भी सफल नहीं हुआ। रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष में पहुंचा तो मंदोदरी जो यह सब पहले से जानती थीं, बोलीं आपने तो राम का वेश भी धरा था, फिर क्या हुआ। रावण बोला, ‘जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थी।’ रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था लेकिन जगत जननी मां को आज तक कोई नहीं समझ सका फिर रावण भी कैसे समझ पाता।

लेकिन लंकापति रावण भी कहां हार मानने वाला था। उसने फिर से माता सीता के करीब आने का प्रयास किया। वह सीता मां से आकर बोला, ‘मैं तुमसे सीधे-सीधे संवाद करता हूं लेकिन तुम कैसी नारी हो कि मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर-घूर कर देखने लगती हो। क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है। रावण के इस प्रश्न को सुनकर माता सीता बिलकुल चुप हो गईं और उनकी आंखों से आसुओं की धार बह पड़ी। शायद वह मन ही मन उन खूबसूरत पलों के बारे में सोच रही होंगी जब श्रीराम से विवाह करके अयोध्‍या आईं थीं और नई-नवेली दुल्‍हन के रूप में आदर सत्‍कार हुआ था।

माता सीता का बड़े आदर के साथ ग्रह प्रवेश हुआ और उत्‍सव मनाया गया। उस वक्‍त एक परंपरा निभाई गई और उस परंपरा में उस घास का तिनके का रहस्‍य छिपा हुआ है। नववधू जब ससुराल आती है तो उसके हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है, ताकि जीवन भर परिवार के सदस्‍यों के बीच मिठास बनी रहे। इसलिए सीताजी ने उस दिन अपने हाथों से घर पर खीर बनाई और समस्त परिवार, राजा दशरथ सहित चारों
भ्राता और ऋषि संतों को परोसी। सीताजी ने जैसे ही खीर परोसना शुरू किया कि जोर से एक हवा का झोंका आया सभी ने अपनी-अपनी पत्तल संभाली। सीताजी कुछ समझ पातीं कि राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका आकर गिर गया। सीताजी ने उस तिनके को देख लिया, लेकिन अब खीर में हाथ कैसे डालें यह प्रश्न था। तब सीताजी ने दूर से ही उस तिनके को घूरकर जो देखा, तो वो तिनका जलकर राख का एक छोटा सा बिंदु बनकर रह गया। सीताजी ने मन ही मन सोचा कि अच्छा
हुआ किसी ने नहीं देखा।

लेकिन राजा दशरथ यह सब देख रहे थे। फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष में चले गए और वहां सीताजी को बुलवाया। फिर राजा दशरथ बोले, ‘मैंने आज भोजन के समय आपके चमत्कार को देख लिया था। आप साक्षात जगत जननी का दूसरा रूप हैं। लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी मत देखना। इसलिए सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थीं। सीताजी चाहतीं तो रावण को अपनी एक नजर से ही भस्‍म कर सकती थीं। लेकिन राजा दशरथ जी को दिए वचन की वजह से वह शांत रहीं।


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