इस अत्यंत चमत्कारी मंत्र को सुनने मात्र से ही चमत्कार श्री जिन वागीश्वरी स्तवन मुनिश्री साम्यसागरजी

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#जैन स्तवन

परिहित पण्डित मण्डल खण्डन खण्डधुरन्धर साननुते।
अवगुण शोषिणि संघविकासिनि केवलदीपसचेतकृते।।
शुभपनवध्वनिघोषप्रकाशिनि पाप विभाज्जिनि सर्वनुते,
जय जय हे कमलेश्वरवासिनि हंसनिवासिनि पूज्यगिरे।।

सहजन मानस शल्यनिवारिणि पञ्चमसंचरणस्तुरणे ।
मनहर कुंडलकंकडदर्पण दर्परिसस्मरशून्यहरे।
भव भव नाशिनि सुन्दर गर्धिणि नामसहस्र- उपास्यकृते
जय जय हे कमलेश्वरवासिनि हंसनिवासिनि पूज्यगिरे।।

जितपतिसंगतिभूतभविष्यति कालसकल्पविकल्पनशे।
कण- कण संयमसौरभसाम्यसमत्व विशुध्दविभावहरे।
सुरगुरूनिर्दयनीति निरोगनिशंकजिनालयमध्यगते,
जय जय हे कमलेश्वरवासिनि हंसनिवासिनि पूज्यगिरे।।

मदमदनातुर मारित मार्गक साम्यसुबोधकबोधिकृते,
अनुमिति जल्प सुजात सुबोध सुधारक सुज्ञ महानपते।
अशरण - आश्रय कल्प विकारविकारविरोधिनि निन्दितरे
जय जय हे कमलेश्वरवासिनि हंसनिवासिनि पूज्यगिरे।।

अयि यशवर्धिणि पुस्तकधारिणि षोडशभावसुमुक्तिभजे,
लल ललकरिणि मंगलकारिणि पध्दतिरिध्दिसुतत्तवरमे।
निज सुख सिध्द दशानितदर्शिणि सिध्दशिलाविभुसृष्टिकृते
जय जय हे कमलेश्वरवासिनि हंसनिवासिनि पूज्यगिरे।।

तन मन काय विराजित मत्सर लोभ घमंडमदान्तमते,
तरूण नराध्ययस्वशुभाशुभकर्मविपाकविखण्डकृते।
परमपिताजगदीश्वरनारदमूशलपाणिकभाषकरे।
जय जय हे कमलेश्वरवासिनि हंसनिवासिनि पूज्यगिरे।।

शिव पथ चंचल चण्ड चिरंतनचक्रचतुर्भुज शिवरते।
जय जय शीतलशीत हिमालयसिध्दजिनालयशोभरते‌।।
गुण रजनी मलयगिरिचंदन पुष्पसुगंधसुदीप्तविभे।
जय जय हे कमलेश्वरवासिनि हंसनिवासिनि पूज्यगिरे।।

विषधरदृष्टपरीषहशोषिणि जीवनहर्षविषादहरे,
त्रिभुवन जन्मजराक्षयकारिणि घातविघातविभज्जकरे।
अयि रवि मोहकषायसुरक्षिणि योगनिरोधयथार्थकृते,
जय जय हे कमलेश्वरवासिनि हंसनिवासिनि पूज्यगिरे।।

अतिशय धारिणि ब्रह्न - उपासिनि तत्वप्रकाशिनिजन्महते,
सुखदुःखनाशिनि विघ्नविनाशिनि मोक्षसुदायिनि हंसरते
हितरजनी रजनीसमवर्धिणि मुक्तिवधूनरसूरकृते।
जय जय हे कमलेश्वरवासिनि हंसनिवासिनि पूज्यगिरे।।

अशरणकृत्यविकारविनश्वर वैभव वर्धिणि चित्रहरे।
त्रिभुवनरोत्तमपादप्रदायिनि भूभवभज्जिनि सर्वनुते।।
विपुलविनायक रश्मिस्सायिनि पापपराग अमार्षनशे।
जय जय हे कमलेश्वरवासिनि हंसनिवासिनि पूज्यगिरे।।

जय जय हे हतबुध्दिविनाशिनि पापविनाशिनि दायकरे
अशरण संबलवैभववर्धिणि कर्मकलंकशकान्तमते।
हरिहरबोधिनि पण्डितमानिनि दुर्गतिदुर्विषनष्टकृते।
जय जय हे कमलेश्वरवासिनि हंसनिवासिनि पूज्यगिरे।।

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