श्री वासुपूज्य चालीसा | Shri Vasupujya chalisha | Aadinath Tv Channel

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वासुपूज्य वसु पूज्य तनुज पद
पूजूँ नित प्रति मन वचकाय
पढूं चालीसा प्रथम बालयति
जिन चरणों मे शीश नवाय

नगरी चम्पापुरी विशाल
राज्य करें वसुपूज्य भूपाल ।
रानी जयावती महादेवी,
सेवा में छप्पन सुरदेवी ।।

आषाढ़ कृष्ण षष्ठी विख्याता
सोलह स्वप्न देखती माता ।
पिता स्वप्न फल कहते उत्तम
पुत्र हमारे होंगे नरोत्तम ।।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन
चम्पापुर में प्रगटे श्री जिन

शांतिपूर्ण तरंगे आई ,
नारकियों के मन मे समाई ।।
तीन लोक में खुशियां छाई
स्वर्ग में हर्ष लहर लहराई।।

इन्द्र पधारे ऐरावत पर
गये सुमेरु प्रभु को लेकर ।।
नीर क्षीर सागर से लाकर
नव्हन करें भक्ति में भर कर ।।
केसरिया प्रभु वर्ण बताया
लक्षण पग में 'महिष' कहाया ।।

प्रथम बालयति का पद पाया।
भव्यों को भव पार लगाया।।
आयु बहत्तर लाख वर्ष की।
धनु सत्तर ऊंचाई तन की।।

जननी करती विवाह याचना
प्रभु को मुक्तिरमा चाहना ।
हुए विरक्त विषय भोगों से
उदासीन हो गए जगत से ।
ब्रह्मलोक से सुरगण आये,
प्रभुवर का वैराग्य बढ़ाये ।।

शिविका में पधराये जिनवर
जा पंहुचे उद्यान मनोहर
चतुर्दशी फाल्गुन अंधयारी
संध्या समय मुनि दीक्षा धारी

केश लोच करके सुखकारी
वन में ही तिष्ठे तपधारी ।।
महानगर गए पारण हेत
पड़गाहे नृप भक्ति समेत ।।
पंचाश्चर्य करें सब देव,
लौट गए वन में जिनदेव ।।

किया घोर तप होकर अविचल
एक वर्ष तक होकर निश्चल ।
धारा ध्यान कदम्ब वृक्ष तल
केवल ज्ञान उपाया निर्मल ।।

माघ शुक्ल द्वितिया सुखकारी
ज्ञानोत्सव करते सुर भारी ।
समवशरण की रचना प्यारी,
दिव्य ध्वनि खिरती हितकारी ।
प्रत्येक द्रव्य में गुण अनन्त है,
पर्याये तो अनन्तानन्त है ।।

सब गुण पर्यायें है भिन्न
देखो जानो रहो न खिन्न।
प्रत्येक द्रव्य सत रूपमयी है
द्रव्य कभी परतन्त्र नही है।

सब अपनी स्वभाव परिणति से
स्वतः सिद्ध हो पुरुषार्थ से ।
पर पदार्थ तो निमित्त मात्र है,
अतः यही श्रद्धान यथार्थ है ।
सुन कर भविजन हुए प्रभावित,
व्रत धारण कर हुए शांतचित्त ।।

हुआ विहार देश और प्रान्त
मिली राह -पथिक पथभ्रांत
सहस वर्ष की रही उम्र जब
आये चम्पापुरी प्रभु तब ।।

शिखर मन्दारगिरी का सुन्दर
राजमौलिका नदी के तट पर ।।
धारें प्रतिमा योग वहां पर
नाशे कर्म अघाति जिनवर ।।
शुक्ल चतुर्दशी भाद्र मास की
प्राप्ति हुई स्वाधीन वास की ।।

मायामई तन की रचना कर,
अग्नि कुमार मुकुट अवनत कर ।
पावन अग्नि को प्रगटा कर,
मोक्षकल्याणक करें हर्षाकर ।
पावन चालीसा है प्रभु का,
पढ़ें सुने कल्याण हो उनका ।।

श्री वासु पूज्य भगवान,
शक्ति दे मुझको
मैं भी पाऊं शिवथान
वर दे अरुणा को


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