आधी रात, और पड़ोस से उठी एक चीख ft.

Описание к видео आधी रात, और पड़ोस से उठी एक चीख ft.

बेज़ुबानों की आवाज़ बनें, अपनी संस्था को आर्थिक सहयोग करें: https://acharyaprashant.org/hi/contri...

आधी रात, और पड़ोस से उठी एक चीख...
(और आपके लिए एक अनूठी फ़िल्म: आचार्य प्रशांत और नन्हा मेमना विशेष रोल में)

दोपहर का समय था। सब अपने काम में व्यस्त थे। उसी बीच किसी की चीख सुनाई दी।

ध्यान दिया तो लगा जैसे आसपास कोई बच्चा ज़ोर से रो रहा है। संस्था के दो-तीन लोगों ने अपना काम रोका, भागकर बाहर ढूँढ़ने निकले कि आवाज़ आ कहाँ से रही है।

ये पहली बार नहीं हुआ था, पिछले कई दिनों से देर रात भी ऐसी ही आवाज़ आती थीं। एक गीता भाष्य सत्र में भी आचार्य जी ने इसका ज़िक्र भी किया था। हम बाहर देखने भी गए थे पर उस रात कुछ मिला नहीं था।

पर इस बार ढूँढ़ने पर पता चला कि पास ही के खंडहर मकान में बोतलों की क्रेट रखी हुई है और आवाज़ उसी के भीतर से आ रही थी।

देखा तो पता चला कि 8-10 दिन का एक मेमना उसमें बंद रखा हुआ है। और वो अपनी माँ को पुकार रहा है। लेकिन माँ वहाँ नहीं थी। माँ को और बाकी कुछ बकरियों को काफ़ी दूर बाँधकर रखा गया था।

हमने अनुमान लगा लिया कि उनको माँस के लिए बेचने के मक़सद से पाला जा रहा है। तभी पालने वाला व्यक्ति भी मकान के पीछे से निकालकर आ गया। तुरंत बोला: हाँ जी, हम पालते हैं, फिर ये कटते हैं।

संयोग की बात है कि वो भगवान महावीर जयंती का दिन था (पिछले माह, 4 अप्रैल)। अपने बोधस्थल के पास ही ये खूनी काम हमसे देखा नहीं गया। हमने कहा हम उस मेमने और चारों बकरियों को ख़रीद कर आज़ाद कर देंगे।

जब उस व्यक्ति से कहा तो वो व्यक्ति अड़ गया कि वो तो बकरियों को क़त्ल और मांस के लिए ही पाल रहा है। जब हमने और दबाव बनाया तो उसने हमसे सीधे 50,000 रुपयों की माँग रख दी।

सुनकर थोड़ा धक्का लगा, इतनी रक़म हम में से किसी के पास नहीं थी। उस व्यक्ति को फिर जैसे-तैसे मनाकर 40,000 तक लेकर आए।

लेकिन बात सिर्फ़ बकरियों की नहीं थी। हमें उस व्यक्ति को भी उस पेशे से बाहर निकालना था। उन 5-6 बकरियों को बचा कर हमारा काम पूरा नहीं होता। इसलिए 5,000 रुपए उसे ऊपर से और देने का, और साथ में उसके व उसके बेटे को रोज़गार दिलाने का वादा किया।

शर्त बस हमारी ये थी कि वो दोबारा इस काम को ना करे। और हमारे पैसों को फिर से पशुहत्या में निवेश ना करे।

लेकिन 45,000 रुपए कहाँ से आएँगे?

हमें भी नहीं पता था। इसलिए संस्था के सभी सदस्यों को एक जगह इकट्ठा किया। सबसे अपनी इच्छा-अनुसार पैसे जोड़ने को कहा। सबने हज़ार, दो-हज़ार, पाँच हज़ार तक योगदान दिया। सारे जुगाड़ लगाकर भी हम कुछ 38,000 रुपए जुटा पाए। फिर बाकी पैसे भी कुछ करके पूरे किए।

फिर उन भाईसाहब को एकमुश्त पैसे हाथ में दिए। और उनसे निवेदन किया कि अगले कुछ दिन वे बकरियों को अपने पास रखें, जब तक हम उनका किसी खुली जगह पर बंदोबस्त नहीं कर लेते।

अगले दिन जब आचार्य जी बोधस्थल पहुँचे तो वे हमारे नए दोस्तों से मिले।

उनके साथ थोड़ा समय भी बिताया और एक मस्त चुटकुला भी मारा!

3 दिन बाद एक छोटे ट्रक में बैठाकर हम उन बकरियों को देहरादून स्थित पी.एफ.ए (एक पशुकल्याण संस्था) के एनिमल शेल्टर में ले गए। सभी बकरियों को, और छोटे मेमने को, जगह मिली और एक मुक्त जीवन जीने का नया अवसर।

ये कहानी है उन 5 बेज़ुबान पशुओं की जो हमें संयोग से भगवान महावीर जयंती के दिन मिल गए। अगर उस दोपहर वो चीख हमें सुनाई नहीं दी होती तो वे मासूम भी किसी की थाली पर पहुँच चुके होते।

इंसानों को इन बेज़ुबानों की चीखें बहुत समय पहले सुनाई देनी बंद हो चुकी हैं। इसलिए आज आचार्य जी और आपकी संस्था को उनकी आवाज़ बनना पड़ रहा है।

लेकिन हमारी आवाज़ कितनी दूर तक पहुँचेगी ये बात आप पर निर्भर करता है।

आपके द्वारा किया गया योगदान हमें आम जनमानस में संवेदनशीलता जगाने का बल देता है। पर कुछ बेज़ुबानों को बचाकर बात बनेगी नहीं। हमें घर-घर तक पहुँचना होगा।

इस कार्य में आपका सहयोग अपेक्षित है।
बेज़ुबानों की आवाज़ बनें, अपनी संस्था को आर्थिक सहयोग करें: https://acharyaprashant.org/hi/contri...

Комментарии

Информация по комментариям в разработке