भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या || भजन || श्री अमरचन्द सोनी

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भजन- भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या ||
हाँ बिचारी हैं क्या, भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या
भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या
बिचारी हैं क्या......बिचारी हैं क्या-2
भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या-2

करके पत्थर की ऋषिनारी आये मेरे पास मुरारी-2
नोका बनी काठ की म्हारी इसके बारी हैं क्या,
भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या-2

मेने सुना हैं आपके-2 तो चरणों मे जाने बात क्या
छुवत सिला नारी भई तो काठ की औकात क्या।

मेरा यही रुजगार हैं तो रुजगार बिन प्रभु जात क्या
करिए कृपा करुणानिधे मुझ दीन के संग घात क्या।

मेरी बनी काठ की तरणी परसत चरण बने मुनि ग्रहणी-2
फिर क्या इससे खोटी तरणी नाथ धारी हैं क्या
भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या

हां बिचारी हैं क्या, बिचारी हैं क्या
भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या

चरनारबिंदो की शपथ-2 अब ही मंगाई ही हैं नई,
दो-चार दिन ही हैं चलाई, मानिये मेरी कहि।

झूटी नही यह सत्य हैं कि बन में सिला नारी भई,
पाहन कठिन है काठ से कैसे भरोसा हा दई।

मेरी जाव नाव उड़ाई रोव बच्चे और लुगाई-2
मेरे पास न कोडी पाई नाथ धारी हैं क्या
भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या-2

की स्वीकार विनती हु अगर-2 तो स्वीकृति प्रभु दीजिए,
पहले चरण धुलवाईये, इतना अनुग्रह कीजिए।

जब तक ना पद पंकज पखारु तो नाथ ना मन लीजिये,
लाऊ नही नैया मदइया आप कितना ही खिजिये।

ऐसा समय फेर नही आनी सारी बात करु मनमानी,-2
ये मत कहना सारंग बानी ये अनारी हैं क्या,
भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या-2

केवट के सुनकर बचन राजिवनयन मुस्का गये,
केवट-प्रभु की बात सुनकर सिय लखन सकुचा गये

केवट कुटुंभी ले कुटम्ब ओर गंग तट पर आ गये,
ये दृश्य देखन देवता ले विमान नभ पर छा गये।

ये पद ब्रह्मादिक नही जो हैं वे पद केवट मल मल धोये-2
सारे पाप जनम के धोये इसमें ख्वारी हैं क्या
भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या-2

चरणकमल रज धोय केवट नाव लायो घाट हैं,
प्रभु को बिठा बल्ली लगाकर करता चला जयकार हैं।

बोले गगन से देवता तू धन्य माँझीगर हैं,
ओर प्रभु से पहले हो गया तू भवसागर के पार हैं।

उतरे सुरसरितट हरि जाई मन मे सकुचे श्री रघुराई,
इसको क्या देवे उतराई हाथ खाली हैं क्या,
भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या-2

जान पिय की बात हिय की तो मूंदड़ी सिय ने दयी,
देने लगे केवट को प्रभु कहकर अनुच्छित ना लयी।

गंगा का मांझी सिर्फ में भवसिंधु के मांझी दयी,
करना मुझे भवपार प्रभु जी यही हैं मेरी उतराई।

करके प्रभु पद कमल प्रणाम केवट हर्ष चलत निजधाम,
जपता पथिक सिंधु जननाम सुधि बिसारि हैं क्या,
भगवन साँची कहो ना बिचारी हैं क्या-2
गायक-श्री अमरचन्द सोनी
किशनपुरा
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