Live Mahamrityunjay Mantra | महामृत्युंजय मंत्र I Mahamrityunjay Mantra 108 times I Historicgyan

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हामृत्यंजय मंत्र के जाप से मृत्यु का संकट भी टल जाता है।
शास्त्रों में भगवान शिव के कई चमत्कारिक मंत्र बताए गए हैं। इन्हीं में से एक है महामृत्युंजय मंत्र।
यह मंत्र बहुत ही शक्तिशाली माना गया है। मान्यतानुसार कहा जाता है कि यदि इस मंत्र का जाप यदि एक निश्चित संख्या में किया जाए तो बड़े से बड़ा असाध्य रोग भी टल जाता है।
इस मंत्र के विषय में पौराणिक मान्यता है कि इसके जाप से मृत्यु का संकट भी टल जाता है। सावन के माह में इस मंत्र का जाप करना बहुत ही शुभफलदायी रहता है। भगवान शिव की कृपा से यमराज भी ऐसे व्यक्ति को कोई कष्ट नहीं देते हैं।

इस मंत्र की रचना कैसे और किसके द्वारा की गई।

एक समय ऋषि मृकण्डु ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या की। अपने भक्त की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ऋषि मृकण्डु को इच्छानुसार वर संतान प्राप्त होने का वरदान दिया परंतु भगवान शिव ने ऋषि मृकण्डु को बताया कि यह पुत्र अल्पायु होगा। इसके कुछ समय पश्चात ऋषि मृकण्डु को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र के जन्म के पश्चात ऋषियों ने बताया कि इस संतान की आयु केवल 16 वर्ष ही होगी। यह सुनते ही ऋषि मृकण्डु विषाद से घिर गए। अपने पति को चिंता से घिरा हुआ देख जब ऋषि मृकण्डु की पत्नी ने उनसे दुःख का कारण पूंछा तब उन्होंने सारा वृतांत बताया। इस पर उनकी पत्नी ने कहा कि यदि शिव जी की कृपा होगी, तो यह विधान भी वे टाल देंगे। ऋषि ने अपने पुत्र का नाम मार्कण्डेय रखा और उन्हें शिव मंत्र भी दिया। मार्कण्डेय सदैव शिव भक्ति में लीन रहा करते थे। समय बीतता गया और मार्कण्डेय बड़े होते गए। जब समय निकट आया तो ऋषि मृकण्डु ने अल्पायु की बात अपने पुत्र मार्कण्डेय को बताई। इसी के साथ ही उन्होंने कहा कि यदि शिवजी चाहेंगें तो इसे टाल देंगें।

तब अपने माता-पिता के दुःख को दूर करने के लिए मार्कण्डेय ने शिव जी से दीर्घायु का वरदान पाने के लिए शिव जी आराधना शुरू कर दी। शिवजी की आराधना के लिए मार्कण्डेय जी ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठ कर इसका अखंड जाप करने लगे।

महामृत्युंजय मंत्र- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

जब मार्कण्डेय जी की आयु पूर्ण हो गई तब उनके प्राण लेने के लिए यमदूत आये परंतु उस समय मार्कण्डेय जी भगवान शिव की तपस्या में लीन थे। यह देखकर यमदूत वापस यमराज के पास गए और वापस आकर पूरी बात बताई। तब मार्कण्डेय के प्राण लेने के लिए यमराज स्वयं आये। जैसे ही उन्होंने मार्कण्डेय के प्राण लेने के लिए अपना पाश उनपर डाला, तो बालक मार्कण्डेय शिवलिंग से लिपट गए।

ऐसे में पाश गलती से शिवलिंग पर जा गिरा। यमराज की आक्रमकता पर शिव जी अत्यंत क्रोधित हो गए और अपने भक्त की रक्षा हेतु भगवान शिव यमराज के समक्ष प्रकट हो गए, तब यम देव ने विधि के नियम की याद दिलाई लेकिन शिवजी ने मार्कण्डेय को दीर्घायु का वरदान देकर विधान ही बदल दिया।
इस तरह से मार्कण्डेय ने भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते हुए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और भगवान शिव ने यमराज से उनके प्राणों की रक्षा की। यही कारण है कि महामृत्युंजय मंत्र को मृत्यु टालने वाला मंत्र कहा जाता है।


NOTE:- हमारा उद्देश्य किसी व्यक्ति, संप्रदाय या धर्म की भावनाओं को आहत करना नहीं है। ये कहानियाँ केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए हैं और हमें उम्मीद है कि इन कहानियो को इसी तरह लिया जाएगा।

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