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जब यह महल के बाहर निकलने चलने लगी तो मेल भी उसके पीछे-पीछे चलने लगे महारानी बोली कि नानाजी तुम चली और मेरा महल भी चली चली जा रहा है पीछे मुड़कर देखते तो जाओ जो ही पीछे मुड़ कर पीछे की ओर तो राजा का संपूर्ण राजराजेश्वर अचाक लुप्त हो गया अपने पति राजा के मुंह बोली बहन तो राजा की मुंह बोली बहन तो अपने पति के साथ आनंद से रहने लगी राजन नाल वे रानी का यह हाल हो गया कि दोनों कमरे खत्री ओढ़े फिरने लगे उनके भोजनालय की भी खाली होने लगी राजा नल रानी से बोले अब हमें यहां कहीं दूर जगह चलना चाहिए रानी पतिव्रता स्त्री थी उसने राजा के गया मान ली चलने लगे एक गांव में पहुंचे वहां पर बेरी के पेड़ के पेड़ लगे हुए थे राजा रानी दोनों कैसे उन्होंने पैरों को उठाया और लोहे के हो गए इस प्रकार राजा रानी जिस वस्तु को भी हाथ लगाए हुए कंकड़ पत्थर में बदल जाते थे इतने पर ही राजा रानी के आगे बढ़ गए रास्ते में उन्हें एक व्यापारी मिला राजा रानी को पहचान लिया उसने राधा रानी को भोजन के लिए आटा दिया वह आटा लेकर एक नदी के किनारे गए रानी ने भोजन बनाने लगी राजा नल स्नान करने चले गए उस नदी में मछुआरे मछली पकड़ रहे थे चोरों की राजा ने चार मछली रानी की रोटियां बनाने लगी राजा नल भोजन करने बैठे तो रोटेट की परिवर्तन हो गई और मछली उस अलका नदी में चली गई मां से चलकर राजा रानी अपनी बहन के यहां गए जब पता चला कि भाई भोजाई आए हैं तो उसने पूछा कैसे आए हो रानी ने कहा कि लटके चित्रा भूखे को कैसे आए और कैसे आते यह सुनकर उसे बड़ी लग जाए उसने राजा रानी को एक कुमार के यहां ठहरा दिया शाम को थाल सजाकर बनने से भोजाई को मिलने कुमार के घर गई और भोजाई के सामने रखा तो भौजाई ने कहा इस साल में जो कुछ भी है वह कुमार के चक्के के नीचे रख दो और चली जाओ नीचे रख कर चली गई थोड़ी देर हो गई थी क्या लाई थी रानी ने आई तो थी पर चोली में रखवा दिया राजा ने देखा तो कंकड़ पत्थर के सिवा कुछ भी नहीं था कि यह सब के कारण है मेरे लिए कंकड़ पत्थर क्यों आएगी अब वहां से चलकर एक मित्र के घर मित्रों से पता चला कि उसने उनसे पूछा कैसे आना हुआ कमरे की मांग मांग कर खाएं से आए और कैसे आए मित्र दुखी होकर कहा कोई हानि नहीं जैसे आए वैसे अच्छे आए आखिर मित्र हैं उन्होंने मेल में लेट जाओ मित्र दोनों स्वागत किया स्वादिष्ट भोजन करवाया एक कमरे में उनके लिए पलंग बिछा दिए उस कमरे में कुटी पर नौ लक्खा हार दंगा हुआ था पलंग के पार्टी की छोरियों का घड़ा रखा था आधी रात में आधी रात के समय राजा सो गए परंतु रानी रानी हार खूंटी के पास दीवार में मोर का चित्र है और धीरे-धीरे हारना चाहिए नहीं तो सवेरे उठकर चले गए चले गए दोनों चलते दूसरे राजधानी पहुंचे वहां अतिथि के और विकसित किया जाता था वह लेने गए परंतु हमेशा दर्द बंद हो चुका था वहां भी अधिकारियों ने कहा यह लोग न जाने कहां से आ भाग्य आए हैं देने के लिए कुछ भी नहीं बचा एक मुट्ठी चने दे दो उन्होंने इस प्रकार अनादर और कुछ सहित दान लेना अस्वीकार कर दिया अदालत ने की निंदा करते हुए बोले कि ऐसी कंजूसी है तो साधक देने का नाम ही क्यों करते हैं दो

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