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Скачать или смотреть "राखी का अमर बंधन: कलयुग में गरीब भाई के लिए माता सीता का दैवीय स्नेह" swami rajeshwaranand ji।

  • मंत्रमुग्ध
  • 2024-11-02
  • 13
"राखी का अमर बंधन: कलयुग में गरीब भाई के लिए माता सीता का दैवीय स्नेह" swami rajeshwaranand ji।
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Описание к видео "राखी का अमर बंधन: कलयुग में गरीब भाई के लिए माता सीता का दैवीय स्नेह" swami rajeshwaranand ji।

यह कहानी एक भक्त और भगवान के स्नेह के उस अद्भुत बंधन को दर्शाती है, जहाँ प्रेम और विश्वास की डोर स्वर्ग को भी धरती से बाँध देती है।

बहुत समय पहले की बात है। एक छोटा सा गाँव था, जहाँ एक गरीब लेकिन दिल से बहुत ही साफ और भला ब्राह्मण युवक रहता था। उसका नाम माधव था। माता-पिता बचपन में ही छोड़कर चले गए थे, और कोई बहन भी नहीं थी, जिससे उसे राखी का त्यौहार पर अकेलापन महसूस होता था। हर रक्षाबंधन पर, वह देखता कि गाँव की सभी बहनें अपने भाइयों के हाथ में राखी बांधतीं, और प्रेम से मिठाई खिलातीं। माधव के पास कोई बहन न थी, तो उसने मन ही मन देवी सीता को अपनी बहन मान लिया था। हर रक्षाबंधन पर वह अपने झोंपड़ी के बाहर एक छोटा सा दीपक जलाता और दिल से सीता माता को याद करता, मानो वह उनसे राखी बंधवाने का सपना देख रहा हो।

एक बार रक्षाबंधन का त्यौहार आने को था, और माधव ने फिर उसी भाव से सीता माता को याद किया। उसने कहा, "हे सीता माता! मैं जानता हूँ कि तुम स्वर्ग में हो, पर क्या मेरा यह प्रेम तुम्हारे पास नहीं पहुँच सकता? काश तुम मेरी बहन होतीं और इस रक्षाबंधन पर मुझे राखी बाँधने आतीं।" उसकी यह सच्ची पुकार स्वर्ग तक पहुँच गई।

सीता माता ने माधव की पुकार सुनी, और उनका हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने भगवान राम से अनुमति ली और अपने भक्त के लिए धरती पर आने का निश्चय किया। रक्षाबंधन के दिन, जैसे ही सूरज उगा, गाँव के लोग हैरान रह गए जब उन्होंने देखा कि एक सुंदर, दिव्य रथ आसमान से नीचे उतर रहा है। रथ से एक देवी के रूप में सीता माता उतरीं, जिनकी आंखों में प्रेम और करुणा की ज्योति थी। वह सीधा माधव की झोंपड़ी की ओर चल पड़ीं।

माधव, जो साधारण कपड़ों में बैठा ध्यान कर रहा था, अचानक अपने सामने सीता माता को देखकर आश्चर्यचकित रह गया। उसकी आंखों में आँसू छलक आए। सीता माता ने प्यार से उसके माथे पर हाथ रखा और कहा, "मेरे प्यारे भाई! तुम्हारा यह प्रेम मुझे स्वर्ग से यहाँ खींच लाया। आज मैं तुम्हारी बहन बनकर तुम्हें राखी बाँधने आई हूँ।"

माधव के हाथ में राखी बाँधते समय सीता माता की आँखों में भी आँसू थे। उन्होंने कहा, "तुम्हारा यह निश्छ

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