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Скачать или смотреть भारत में प्रेस का विकास | Newspaper history | Modern history | महत्वपूर्ण समाचार पत्र |

  • Deep Study with Nikhill bishht
  • 2023-06-27
  • 42
भारत में  प्रेस का विकास | Newspaper history | Modern history |  महत्वपूर्ण समाचार पत्र |
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Описание к видео भारत में प्रेस का विकास | Newspaper history | Modern history | महत्वपूर्ण समाचार पत्र |

भारत में प्रेस का विकास– भारत का पहला समाचार-पत्र जेम्स आगस्टस हिक्की ने 1780 में प्रकाशित किया, जिसका नाम था द बंगाल गजट या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर। किंतु सरकार के प्रति आलोचनात्मक रवैया अपनाने के कारण 1872 में इसका मुद्रणालय जब्त कर लिया गया। तदन्तर कई और समाचार-पत्रों जर्नलों का प्रकाशन प्रारंभ किया गया। यथा-द बंगाल जर्नल, कलकत्ता क्रॉनिकल, मद्रास कुरियर तथा बाम्बे हैराल्ड इत्यादि। अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारी इस बात से भयभीत थे कि यदि ये समाचार-पत्र लंदन पहुंच गये तो उनके काले कारनामों का भंडाफोड़ हो जायेगा। इसलिये उन्होंने प्रेस के प्रति दमन की नीति अपनाने का निश्चय किया।
समाचार-पत्रों का पत्रेक्षण अधिनियम, 1799

अनुज्ञप्ति अधिनियम, 1857
1857 के विद्रोह से उत्पन्न हुई आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिये 1857 के अनुज्ञप्ति अधिनियम से अनुज्ञप्ति व्यवस्था पुनः लागू कर दी गयी। इस अधिनियम के तहत बिना अनुज्ञप्ति के मुद्रणालय रखना और उसका प्रयोग करना अवैध घोषित कर दिया गया। सरकार को यह अधिकार दे दिया गया कि वह किसी समाचार-पत्र को किसी समय अनुज्ञप्ति दे सकती थी या उसकी अनुज्ञप्ति को रद्द कर सकती थी। अधिनियम द्वारा सरकार को यह अधिकार भी दिया गया कि वह समाचार-पत्र के साथ ही किसी पुस्तक, पत्रिका, जर्नल या अन्य प्रकाशित सामग्री पर प्रतिबंध लगा सकती थी। यद्यपि यह एक संकटकालीन अधिनियम था तथा इसकी अवधि केवल एक वर्ष थी।
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1878 (Vernacular Press Act)

पंजीकरण अधिनियम, 1867
इस अधिनियम द्वारा मैटकॉफ के अधिनियम को परिवर्तित कर दिया गया। इस अधिनियम का उद्देश्य, प्रेस एवं समाचार-पत्रों पर प्रतिबंध लगाना नहीं, अपितु उन्हें । नियमित करना था। अब यह आवश्यक बना दिया गया कि किसी भी मुद्रित सामग्री पटक प्रकाशक तथा मुद्रण स्थान के नाम का उल्लेख करना अनिवार्य होगा। इसके अतिरिक्त प्रकाशन के एक माह के अंदर पुस्तक की एक निःशुल्क प्रति स्थानीय सरकार को देना आवश्यक था।

समाचार-पत्र अधिनियम, 1908 (The News Paper Act, 1908)
का उद्देश्य, उग्रवादी राष्ट्रवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाना था। अधिनियम द्वारा दण्डनायकों को यह अधिकार दिया कि वे किसी ऐसे समाचार-पत्र की सम्पत्ति व मुद्रणालय को जब्त कर सकते हैं, जिसमें प्रकाशित सामग्री से लोगों को हिंसा करने या हत्या करने की प्रेरणा मिलती हो।
भारतीय समाचार-पत्र अधिनियम, 1910 (The Indian Press Act, 1910)
द्वारा लॉर्ड लिटन के 1878 के अधिनियम के सभी घिनौने प्रावधानों को पुनर्जीवित कर दिया गया। इस अधिनियम के अनुसार, स्थानीय सरकारें किसी समाचार-पत्र के प्रकाशक या मुद्रणालय के स्वामी से पंजीकरण जमानत (Registration Security) मांग सकती थीं। इस पंजीकरण जमानत की न्यूनतम राशि 500 रुपये व अधिकतम राशि 2000 रुपये तय की गयी। इसके अतिरिक्त सरकार को जमानत जब्त करने एवं पंजीकरण रद्द करने का अधिकार भी दिया गया। सरकार को पुनः पंजीकरण के लिये न्यूनतम 1000 रुपये और अधिकतम 10 हजार रुपये मांगने का अधिकार था। यदि समाचार-पत्र पुनः आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करे तो उसका पंजीकरण रद्द कर उसकी सभी सम्पत्तियों तथा उसके मुद्रणालय को जब्त करने का अधिकार भी सरकार को दिया गया।

एक उग्रवादी राष्ट्रवादी नेता की छवि के कारण बाल गंगाधर तिलक को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया तथा देश से निर्वासन की सजा देकर 6 वर्ष के लिये मांडले जेल (रंगून) भेज दिया गया। पूरे राष्ट्र में तिलक की गिरफ्तारी एवं निर्वासन का विरोध हआ तथा सरकार के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन किये गये। बंबई में कपडा मिल मजदूरों तथा रेलवे कारखानों के मजदूरों ने हड़ताल कर दी तथा सरकार के विरुद्ध सड़कों पर उतर आये। रूस के साम्यवादी नेता लेनिन ने मजदूरों की इस हड़ताल का स्वागत किया और कहा कि यह हड़ताल भारत के श्रमिक वर्ग की राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का एक शुभ संकेत है।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एवं उसके पश्चात् प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सरकारी आलोचना को रोकने तथा राजनीतिक प्रदर्शनों का दमन करने के लिये भारतीयों पर अनेक कानून लागू कर दिये गये। 1921 में, तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में ‘प्रेस समिति‘ ने सरकार से 1908 एवं 1910 के अधिनियमों को रद्द करने की सिफारिश की। तत्पश्चात इन अधिनियमों को रद्द कर दिया गया।
भारतीय समाचार-पत्र (संकटकालीन शक्तियां) अधिनियम, 1931
द्वारा प्रांतीय सरकारों को सविनय अवज्ञा आंदोलन को दबाने के लिये अत्यधिक शक्तियां दे दी गयीं। 1932 में इस अधिनियम का विस्तार करके इसे आपराधिक संशोधित अधिनियम (Criminal Amendment Act) बना दिया गया। इसमें वे सभी गतिविधियां सम्मिलित कर दी गयीं, जिनसे सरकार की प्रभुसत्ता को हानि पहुंचायी जा सकती थी।

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