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Скачать или смотреть 2-जन्मशताब्दी पुस्तक माला-57(भाग -02)!! गुणों का परिष्कार ही सच्ची भक्ति !! पँ0- श्रीरामशर्मा आचार्य

  • orai Gayatri Gyan Mandir (Jalaun) UP
  • 2025-08-30
  • 18
2-जन्मशताब्दी पुस्तक माला-57(भाग -02)!! गुणों का परिष्कार ही सच्ची भक्ति !! पँ0- श्रीरामशर्मा आचार्य
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Описание к видео 2-जन्मशताब्दी पुस्तक माला-57(भाग -02)!! गुणों का परिष्कार ही सच्ची भक्ति !! पँ0- श्रीरामशर्मा आचार्य

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के प्रवचन का आम जनता पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उनके विचारों ने लाखों लोगों को प्रेरित किया है और उन्हें एक बेहतर जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने और लोगों को आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की ओर मोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने हमेशा आत्म-सुधार और नैतिक मूल्यों पर जोर दिया। उनके प्रवचन लोगों को प्रेरित करते हैं कि वे अपने भीतर की बुराइयों को दूर करें और अच्छे कर्म करें ।उनके विचारों ने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद की है। उन्होंने लोगों को एकजुट होकर काम करने और समाज की भलाई के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। उनके प्रवचन लोगों को आध्यात्मिक जागृति की ओर ले जाते हैं। वे लोगों को ईश्वर के करीब आने और अपने जीवन के उद्देश्य को समझने में मदद करते हैं।
उनके विचारों ने लोगों को मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान की है। उनके प्रवचन लोगों को तनाव और चिंताओं से निपटने में मदद करते हैं।उन्होंने परिवार और समाज में सुधार के लिए भी काम किया। उन्होंने लोगों को परिवार के महत्व को समझाया और उन्हें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान रखने के लिए प्रेरित किया।
उनके प्रवचन युवाओं को सही दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। वे युवाओं को शिक्षा, करियर और जीवन के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
उन्होंने साहित्य और संस्कृति के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कई किताबें लिखीं और विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दिए, जिससे लोगों को ज्ञान और प्रेरणा मिली।
आचार्य श्री राम शर्मा के प्रवचन का प्रभाव आज भी महसूस किया जा सकता है। उनके विचारों ने लाखों लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है और उन्हें एक बेहतर इंसान आबनने के लिए प्रेरित किया है। आइए पढ़ते हैं/सुनते हैं उन्हीं के प्रवचन:- स्वास्थ्य - सत्संग की महत्ता और चिन्तन- मनन के महत्व को भी जानना जरूरी होगा ।
स्वाध्याय, सत्संग और चिंतन-मनन — ये तीनों जीवन के आध्यात्मिक और नैतिक उत्थान के तीन स्तंभ माने जाते हैं। इन्हें अपनाने से व्यक्ति का आंतरिक विकास होता है, सोच परिष्कृत होती है और जीवन का उद्देश्य स्पष्ट होता है : आए*1. स्वाध्याय (Self-study)* अर्थ:
'स्व' का अध्ययन — अर्थात् आत्मा, विचार, और जीवन मूल्यों का अध्ययन। यह शास्त्र, संतवाणी, प्रेरक साहित्य पढ़कर किया जाता है।महत्व:आत्मबोध होता है — मैं कौन हूँ, क्या मेरा उद्देश्य है?
ज्ञान की गहराई मिलती है, जिससे अंधविश्वास मिटते हैं।
नैतिक शक्ति और आत्मबल बढ़ता है।
ग़लतियों का बोध होता है, और उन्हें सुधारने की प्रेरणा मिलती है।
आचार्य श्रीराम शर्मा जी कहते हैं:
"अध्ययन वह भोजन है जिससे मनुष्य का अंतःकरण पुष्ट होता है।"
2. सत्संग (Company of Truth or Noble Souls )!£££अर्थ:
सत् (सत्य, सद्गुण, सन्मार्ग) + संग (संपर्क, साथ) — अर्थात् श्रेष्ठ विचारों, संतजनों, आध्यात्मिक वातावरण का संग।महत्व:विचारों की दिशा बदलती है।सद्गुणों की प्रेरणा मिलती है, जैसे सेवा, प्रेम, सहनशीलता।मन शांत और निर्मल होता है।दुष्ट संगति से बचाव होता है।
कहा गया है:
"संगात् संजायते कामः।" – संग से ही इच्छा, प्रवृत्ति, आदत बनती है।
3. चिंतन-मनन (Contemplation & Reflection)* अर्थ:
पढ़े या सुने गए ज्ञान को गहराई से विचार कर आत्मसात करना। बिना चिंतन के ज्ञान केवल बोझ बन जाता है। महत्व: ज्ञान व्यवहार में उतरता है।निर्णय क्षमता विकसित होती है।
आत्मिक प्रगति का मार्ग खुलता है।मन शांत और स्थिर होता है।
स्वामी विवेकानंद कहते थे: "ज्ञान तभी सार्थक है जब वह जीवन में उतरे।"
समग्र लाभ:* क्षेत्र लाभ मानसिक शांति, स्पष्ट सोच, आत्मविश्वास
आध्यात्मिक आत्मा का बोध, प्रभु से निकटता
सामाजिक श्रेष्ठ संग, सेवा भाव, सकारात्मकता
नैतिक संयम, विवेक, धर्मबुद्धि ।आस्वाध्याय से ज्ञान मिलता है,सत्संग से प्रेरणा मिलती है,
चिंतन-मनन से वह ज्ञान व्यवहार में उतरता है।
यदि हम प्रतिदिन थोड़ा-सा समय इन तीनों को दें, तो जीवन का स्तर उच्च हो सकता है।
!!स्वाध्याय सत्संग,में कभी प्रमाद न करें!!
सदविचारों की महत्ता का अनुभव तो करते हैं ,पर उनपर दृढ़ नहीं रह पाते । जब कोई अच्छी पुस्तक पढ़ते या सत्संग प्रवचन सुनते हैं ,तो इच्छा होती है कि इसी अच्छे मार्ग पर चलें ,पर जैसे ही वह प्रसंग पलटा कि दूसरे प्रकार के पूर्व अभ्यासी विचार पुनः मस्तिष्क में अधिकार जमा लेते हैं और वही पुराना घिसापिटा कार्यक्रम चलने लगता है । इस प्रकार उत्कृष्ट जीवन बनाने की आकांछा एक कल्पना मात्र बनी रहती है । देर तक स्वार्थपूर्ण विचार मन मे रहें और थोड़ी देर सदविचारों के लिए अवसर मिले तो वह अधिक देर रहने वाला प्रभाव कम समय वाले प्रभाव को परास्त कर देगा । इसलिए उत्कृष्ट जीवन की वास्तविक आकांछा करने वालों के लिए एक ही मार्ग रह जाता है कि मन में अधिक समय तक अधिक प्रौढ़ ,अधिक प्रेरणाप्रद एवं उत्कृष्ट कोटि के विचारों को स्थान मिले ।उत्कृष्ट एवं प्रौढ़ विचारों को अधिकाधिक समय तक हमारे मस्तिष्क में स्थान मिलता रहे ,ऐसा प्रबंध यदि कर लिया जाए तो कुछ ही दिनों में अपनी इच्छा ,अभिलाषा और प्रवृत्ति उसी दिशा में ढल जाएगी और बाह्य जीवन में वह सात्विक परिवर्तन स्पष्ट द्रष्टिगोचर होने लगेगा । उसे पढ़ना /सुनना अपने अत्यंत प्रिय कामों में से एक बना लेना चाहिए । गीता में कहा गया है " न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते " अर्थात इस संसार में ज्ञान से बढ़कर और कोई श्रेष्ठ पदार्थ नहीं है । यदि हम इस संसार में सर्वश्रेष्ठ बस्तु तलाश करना चाहें तो@ अंततः " ज्ञान" को ही श्रेष्ठता प्रदान करनी पड़ेगी । ..........
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