Mahabharat Katha : द्रौपदी का चीरहरण होता रहा लेकिन !! भगवान श्रीकृष्ण करते रहे बुलावे का इंतजार ।।
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पांडव
महाभारत में जब द्युतक्रीड़ा में पांडव कौरवों से सबकुछ हार चुके थे, जब उनके पास दांव पर लगाने के लिए कुछ नहीं रहा, तो युधिष्ठिर ने शकुनि और दुर्योधन के उकसावे में आकर द्रौपदी को दांव पर लगा दिया। दुर्योधन के आदेश पर दुशासन द्रौपदी के बाल पकड़कर उसे घसीटते हुए सभा में लेकर आया। द्रौपदी का अपमान होते देखकर सभा में बैठे किसी भी वरिष्ठजन ने इसका विरोध नहीं किया। उन्हें देखकर ऐसा लगता था, मानों सभी का विवेक मरने के साथ संवेदनाएं भी मर चुकी हो। द्रौपदी ने दुशासन से खुद को छुड़ाने का बहुत प्रयास किया लेकिन विफल रही। इस दौरान द्रौपदी बारी-बारी से सभी वरिष्ठजनों से बचाए जाने की गुहार लगा रही थी लेकिन किसी ने उसकी सहायता नहीं की
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mahabharat draupadi cheer haran story in hindi : महाभारत में द्रौपदी चीरहरण की घटना ऐसी है, जिसका आज भी उल्लेख होता है, तो मानवता शर्मसार हो उठती है। जब सभा में उपस्थित सभी वरिष्ठजनों ने इस घटना पर मौन धारण कर लिया था, तो श्रीकृष्ण ने स्वयं को बचाने के लिए श्रीकृष्ण से प्रार्थना की। द्रौपदी की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण ने तुंरत ही अपनी सखी की मदद की लेकिन सवाल उठता है कि आखिर श्रीकृष्ण ने खुद को पुकारे जाने का इंतजार क्यों किया। आइए, जानते हैं उद्धव गीता के अनुसार इसकी वजह जानते हैं
श्रीकृष्ण उद्धव के सवालों पर मुस्कुराते हुए बोले- "इस सृष्टि का नियम है कि विवेकवान व्यक्ति ही जीतता है। जो जीतने के लिए बुद्धि का प्रयोग करता है। दुर्योधन के पास द्युतक्रीड़ा खेलने के लिए असीम धन था लेकिन उसे द्युतक्रीड़ा खेलने का विवेक नहीं था, इसलिए उसने अपने मामा शकुनि पर विश्वास करके उन्हें अपनी तरफ से द्युतक्रीड़ा खेलने के लिए कहा। यह उसका विवेक से लिया गया निर्णय था जबकि युधिष्ठिर सहित पांचों पांडवों को यह खेल खेलना नहीं आता था लेकिन उन्होंने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया और मुझे अपनी तरफ से खेलने के लिए एक बार भी नहीं कहा। धर्मराज युधिष्ठिर को यह बात पता थी कि द्युतक्रीड़ा सामाजिक बुराई को बढ़ावा देने वाला खेल है लेकिन फिर भी उन्होंने इस खेल को खेलना जारी रखा। युधिष्ठिर मुझसे इस खेल को छुपाकर रखना चाहते थे। उन्हें लगता था कि उस कमरे में उपस्थित न होने पर मुझे कभी पता नहीं चलेगा कि राज्य को वापस प्राप्त करने के लिए उन्होंने बुराई के मार्ग को चुना है, इसलिए उन्होंने मुझे सभा में न बुलाए जाने तक वहां आने के लिए मना किया। युधिष्ठिर ने मुझसे वचन लिया कि मैं पांडव परिवार के बुलाए जाने पर ही सभा में आऊंगा। इस कारण मैं सभा में नहीं गया। युधिष्ठिर ने अपने दुर्भाग्य को स्वयं ही बुलावा दिया ।
Mahabharat Katha : द्रौपदी का चीरहरण होता रहा लेकिन भगवान श्रीकृष्ण करते रहे बुलावे का इंतजार, जानें क्या थी वजह
mahabharat draupadi cheer haran story in hindi : महाभारत में द्रौपदी चीरहरण की घटना ऐसी है, जिसका आज भी उल्लेख होता है, तो मानवता शर्मसार हो उठती है। जब सभा में उपस्थित सभी वरिष्ठजनों ने इस घटना पर मौन धारण कर लिया था, तो श्रीकृष्ण ने स्वयं को बचाने के लिए श्रीकृष्ण से प्रार्थना की। द्रौपदी की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण ने तुंरत ही अपनी सखी की मदद की लेकिन सवाल उठता है कि आखिर श्रीकृष्ण ने खुद को पुकारे जाने का इंतजार क्यों किया। आइए, जानते हैं उद्धव गीता के अनुसार इसकी वजह जानते हैं।
महाभारत को न्याय और अन्याय के बीच रक्तरंजित युद्ध भी माना जाता है। कौरवों ने पांडव बंधुओं पर अनगिनत अत्याचार किए लेकिन इन अत्याचारों की पराकाष्ठा थी, द्रौपदी का चीरहरण। जब भी द्रौपदी के चीरहरण का उल्लेख किया जाता है, तो इसे नारी के विरुद्ध सबसे क्रूर अपराधों में से एक माना जाता है। द्रौपदी के चीरहरण की निंदनीय घटना के बाद श्रीकृष्ण ने पांडवों को न्याय प्राप्त करने के लिए युद्ध का मार्ग दिखाया। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव को युद्ध की अनिवार्यता समझाते हुए कहा था कि 'अब युद्ध का प्रश्न केवल सम्पति, राज्य या फिर अधिकारों तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि अब प्रश्न नारी अस्मिता और मनुष्य के प्रति हिंसक व्यवहार का भी है। इस अपमान का प्रतिशोध युगों-युगों तक एक सबक की तरह स्मरण किया जाएगा, इसलिए युद्ध करो पार्थ!" श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन के बाद पांडव द्रौपदी के चीरहरण का प्रतिशोध लेने के लिए कुरुक्षेत्र की रणभूमि में पहुंचे थे लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था, तो श्रीकृष्ण शुरुआत में ही क्यों नहीं आए थे। आइए, जानते हैं श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के बुलाने का इंतजार क्यों किया था।
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