अखण्ड दीप को कैसे बिना बुझे नवरात्र में रख सकते हैं, बुझे तो क्या करना होता हैं, दीपक स्थापना विधि

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अखण्ड दीपक केसे और क्यों स्थापित करना चाहिए , क्या सच में एक बार स्थापित करने पर हर साल या पांच से नो साल तक करना जरुरी होता हैं ? अगर बुझ जाएँ तो क्या कुछ बुरा या अशुभ हैं ? किस उपाय से अखण्ड दीपक को लम्बे समय तक बिना बुझे आराम से रख सकते हैं , घी और तेल का दीपक किस दिशा में स्थापित कर सकते हैं आदि प्रश्नों के उत्तर व सभी आवश्यक जानकारी पूजा के दीपक हेतु।
मन्त्र -

१- साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहं ||
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने |
त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ||

२- ॐ भो दीप देव रूपस्त्वं कर्म साक्षी ह्यविघ्नकृत् |
यावत् कर्म समाप्ति स्यात् तावत् त्वं सुस्थिरो भव ||

३- ॐ दीपज्योतिर् परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं दिप ज्योतिर नमोऽस्तु ते ।।
शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं सुखसम्पदाम् ।
(मम बुद्धिप्रकाशं / द्वेष बुद्धि / शत्रु बुद्धि विनाशाय) च दीपज्योतिर्नऽस्तु ते ।।

अंतिम लिखे गए को मन्त्र तीन प्रकार की प्रार्थना के साथ बोला जाता हैं जो / के साथ लिखा हैं । आप अपने अनुसार चुन कर इनमें से किसी एक या क्रमशः तीनों को भी बोल सकते हैं।

मन्त्र अर्थ - दीप-ज्योति शुभ करे, कल्याण करे, आरोग्य करे, सुख-सम्पदा प्रदान करे, मेरी बुद्धि को प्रकाशित करे- दीप-ज्योति-रूपा आप भगवती को नमस्कार। शुभ कल्याण और आरोग्य हो तथा पुष्टि की वृद्धि हो। आत्म-तत्त्व को प्रबुद्ध करने के लिए दीप-ज्योति है। आपको नमस्कार। हे देवेश्वरि! मेरे द्वारा अर्पित दीप-पंक्ति को आप स्वीकार करें और इस दीप-दान से आप मुझे ज्ञान-दृष्टि-दायिनी हों।

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