"कर्म योग"

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भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने कर्म योग के सिद्धांत का वर्णन किया है। कर्म योग का अर्थ है "कर्म का योग" या "कार्य का मार्ग"। इसमें यह बताया गया है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों और कार्यों को निष्काम भाव से, बिना किसी फल की इच्छा के, ईश्वर को अर्पित करते हुए करना चाहिए।

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