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Скачать или смотреть how grenade works,ग्रेनेड काम कैसे करता है?

  • 💻 𝒯𝐸𝒞𝐻𝒩𝐼𝒞𝒜𝐿 𝒮𝐻𝒜𝑅𝑀𝒜 𝒥𝐼
  • 2020-08-12
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Описание к видео how grenade works,ग्रेनेड काम कैसे करता है?

समें कोई शक नहीं है कि जैसे जैसे विज्ञान का विकास हुआ है, हमारे आस पास मौजूद चीजों में काफी बड़ा परिवर्तन भी हुआ है।

बात करें युद्ध में इस्तेमाल होने वाले हथियारों की तो विज्ञान का प्रभाव इधर भी काफी हुआ है और नई नई तकनीकों का इस्तेमाल करके हथियारों का रूप और काम करने का तरीका भी काफी बदल चुका है।

पर कुछ हथियार ऐसे हैं, जिनकी बात आम लोग हमेशा करते ही हैं और शायद ही वे उन्हें भुला पाएंगे । जैसे कि GRENADE !

दोस्तों आपने ये grenade आमतौर पर movies या films में देखे ही होंगे और इनका धमाका भी जरूर देखा होगा पर हम में शायद ही किसीको इस grenade के बनने और फटने के विज्ञान के बारे में पता होगा। तो आज हम जानेंगे इस grenade के बारे में और पता करेंगे कि आखिर ये grenade फटता कैसे है ?

लगभग 15वी और 16वी शताब्दी में यूरोपियन्स द्वारा , gunpowder पर आधारित grenades का इस्तेमाल किया गया था जिसमें एक मेटल के hollow यानी खोखले कंटेनर में गनपाउडर भरा जाता था और एक बाती की मदद से उसमें आग लगाकर फेंका जाता था । पर इंक grenades ऐसा कोई भी mechanism नहीं था जो इसे इस्तेमाल करने में आसान बना सके और इसके फटने का भी कोई समय नियंत्रित नहीं होता था । इसीलिए इसे थोड़े समय के बाद बन्द कर दिया गया और लगभग 20वी शताब्दी में इसका, एक अलग तरीके से विकास हुआ ।आमतौर पर grenades कई तरह की shapes और size में आते हैं पर सबका function या काम करने का तरीका लगभग एक जैसा ही होता है ।

बात करें hand grenades की जो अक्सर युद्ध में इस्तेमाल किये जाते हैं तो इन्हें Time Delay Fragmentation Grenades कहा जाता है क्योंकि ये , एक निर्धारित और नियंत्रित समय पर ही धमाके के कारण फटते हैं और fragmentation का मतलब ये है कि designing के दौरान इनमें मेटल या स्टील के छोटे छोटे fragments यानी टुकड़ों का इस्तेमाल होता है जो फटने पर अपना काम करते हैं।

बात की जाए आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले hand grenades के बनावट की, तो सबसे पहले इनका बाहरी ढांचा या body जिसे outer shell भी कहा जाता है बनाया जाता है steel या cast iron और कुछ मजबूत पॉलीमर्स से , जो कई fragments में divide कर दिए जाते हैं, जिससे ये काफी प्रभावशाली बन जाता है।

अब जैसा कि हर bomb में explosion या धमाके के लिए कोई न कोई explosive का इस्तेमाल किया जाता है और इन fragmentation hand grenades में ammonium nitrate fuel oil या nitro glycerin नामके explosive का इस्तेमाल किया जाता है।

इन grenades में एक filling hole भी होता है जिसकी मदद से इसमें explosive डाला जाता है।

अब बात करें इन grenades के firing mechanism की, तो वो कुछ इस प्रकार है –
सबसे पहले grenades में एक safety पिन होता है जिसके खोलने पर ही ये active हो जाता है यानी कि इसके बाद ही grenade में धमाका हो सकता है । जैसे ही safety pin हटाया जाता है , तो उससे बंधा हुआ एक striker lever खुल जाता है जोकि एक striker से जुड़ा होता है। striker के ठीक नीचे ही striker spring होती है जो जो striker lever के खुलने के बाद rotate करती हुई नीचे आती है और फिर striker वहां मौजूद primer या percussion cap से टकराता है । ये primer pentolite या cyclotol नामके chemical से बना होता है जो टकराने पर एक चिंगारी या स्पार्क गेनेरते करता है । primer के ठीक नीचे ही एक slow burning chemical fuse होता है जो चिंगारी की वजह से धीरे धीरे जलन शुरू लर देता है। आमतौर पर इस fuse को जलने में लगभग 4 से 5 सेकंड का समय लगता है।

Fuse के साथ ही एक capsule के तरह दिखने वाला detonator होता है जो एक ज्वलनशील पदार्थ से भरा होता है । जैसे ही fuse पूरा जल जाता है वो detonator में मौजूद पदार्थ में आग लगने के कारण एक काफी बड़ा धमाका होता है जो कि हैंड grenades में भरे हुए explosive के फटने की वजह से होता है।

इस भयंकर धमाके की वजह से grenades में मौजूद metal fragments कई हिस्सों में इधर उधर bullet की स्पीड से बाहर की तरफ निकलते हैं जो उसकी range में स्थित किसी भी इंसान के शरीर में आसानी से घुस सकते हैं।

अक्सर इस्तेमाल किये जाने वाले hand grenades जैसे कि M67 grenade , 5 meter के radius में मौजूद इंसान की जान लेने में सक्षम होते हैं और लगभग 15 meter के दायरे में मौजूद इंसान को घायल भी कर सकते हैं।

ये hand grenades इस्तेमाल करने में काफी असरदार साबित होते हैं पर इनके timing mechanism में होने वाली कमियों के कारण इन्हें कई जगह इस्तेमाल नहीं किया जाता और इनके बदले में अलग तरह के advanced grenades का इस्तेमाल अक्सर armed forces करती हैं।

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