१ - सौन्दर्यलहरी का अर्थ । श्लोक-१ । उसकी साधना और फायदे ।

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सौन्दर्यलहरी का अर्थ। श्लोक-१। उसकी साधना और फायदे।

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श्लोक का अर्थ।
यदि परम शिव , शक्ति से युक्त होकर ही सृष्टी करने को शक्तिमान होता है। यदि ऐसा ना होता तो वो ईश्वर भी स्पन्दित होने को योग्य नहीं था। इसलिए हरी, हर और ब्रह्मा की आराध्य देवता महात्रिपुरसुन्दरी को, किसीभी पुण्य हिन् मानुष में ,प्रणाम करने अथवा स्तुति करने की प्रवृति कैसे हो सकती है।

सौन्दर्यलहरी पाहिले श्लोक के बारेमे और जानकारी ।
१) सृष्टि के पहले निर्गुण ब्रह्मा तत्त्व विराजमान रहता है। वो पुरुष हे या स्त्री है आजतक किसीको पत्ता नहीं। उस तत्त्व को हम आत्मा ,परम आत्मा ,परम शिव या महात्रिपुर सुंदरी कहते है।
२) वो जो निर्गुण परम शिव तत्त्व है। अगर उसे सृष्टि उत्पन्न करनी हो ,अगर उसे इस दुनियामे कोईभी कार्य करना हो, तो वो शक्ति के बिना याने त्रिपुरसुन्दरी के बिना नहीं कर सकते। क्युकी सगुण रूप लेने केलिए शक्ति की आवश्कता होती है।
३) विरिंचि याने ब्रह्मा देव अपनि शक्ति ब्राह्मी ,जो महात्रिपुरसुन्दरी माता से उत्त्पन्न होई है ,उस शक्ति के सहारे सृष्टि को उत्त्पन्न करने को योग्य हो जाते है।
४) हरी याने भगवन विष्णु अपनी शक्ति वैष्णवी ,जो महात्रिपुरसुन्दरी माता से उत्त्पन्न हुई है ,उस शक्ति के सहारे सृष्टि का पालन पोषण करने को योग्य हो जाते है।
५) हर याने भगवन रूद्र अपनी शक्ति शंकरी ,जो महात्रिपुरसुन्दरी माता से उत्त्पन्न हुई है ,उस शक्ति के सहारे सृष्टि का सौहार करने को योग्य हो जाते है।
६) इसीलिए हरी ,हर और ब्रह्मदेव हमेशा श्रीविद्या याने ब्रह्मविद्या की उपासना करते रहते है। मतलब वो हमेशा उनके आत्मा स्वरुप महात्रिपुर सुंदरी और परमशिव का ध्यान करते रहते है।
७) इसी लिए अगर किसीभी मानुष के पास,जबतक ज्यादा पुण्य नहीं होंगे ,तबतक वो श्रीविद्या के बारेमे ,या महात्रिपुर सुंदरी की साधना और पूजा करने केलिए ,उसे कभी बी विचार नहीं आएगा।
जब उसके पुण्य बढ़ने लगेंगे ,तब उसे माता के बारेमे पता लगेगा। और वो ब्रह्मविद्या का साधक बनेगा ,याने श्रीविद्या का साधक बनेगा। क्युकी इस दुनियामे एक भी चीज या प्राणी ,या मानुष ,देवी देवता कोईभी हो ,उसको माता कुण्डलिनी ही संभालती है ,उसको बड़ा करती है उसके लिए सबकुछ करती है। उसके पुण्य बढ़नेके बाद ही उसे माता के बारेमे पता लगता है।

पहिले श्लोक की साधना कैसे करे।
१) सबसे पहिले ये श्लोक पाठ करे।
२) पूर्व दिशा की और मुँह करके माता के फोटो के सामने बैठिये।
३) जो चाहिए उसका संकल्प करे।
४) श्लोक का यन्त्र रंगीत आटा लेके सपेद कपड़ेपर ड्रा करे। या सोनेके प्लेट पर अंकित करके उसे सामने स्तापित करे।
५) १२ दिन लगातार ,हररोज १००० बार इस श्लोक का आपको पाठ करना है। और हररोज साधना ख़तम होनेतक ,माता को ,नारियल की गिरी ,गुड़ और घी मिक्स करके ,नैवेद्य अर्पण करना है।

पहिले श्लोक की साधना करनेसे फायदे।
१) इस श्लोक की साधना से आपकी कोईभी एक इच्छा पूरी हो सकती है।
२) आपके सरीर के अंदर के जो भी पञ्चा महाभूत के तत्त्व है वो बैलेंस होजाते है।
३) आपके हार्मोनल जो इम्बैलेंस है, वो बैलेंस होजाते है।
४) हसबंड - वाइफ के बिच, जो भी प्रोब्लेम्स है, वो सोल्व होजाते है।
५) इस श्लोक का हररोज पाठ करनेसे ,घरमे शांति बनी रहती है।
६) ऑफिस में ,महिलाओंको जोभी परेशानी होती है, वो सोल्व होजाती है।

तो येथी कुछ जानकारी ,सौंदर्य लहरी के पहिले श्लोक की। अब कुछ बाते ध्यानमे रखियेगा। अगर आपने कोंसेभी गुरु से दीक्षा ली है ,और आप ये साधना करना चाहते हो, तो ,अपने गुरुसे पाहिले पुछले ,की ,ये साधना आप करने जा रहे हो। फिर आपके गुरूजी जो कहे उसके अनुसार करे।
अगर अपने कोंसेभी, अभीतक दीक्षा नहीं ली है ,तो ये साधना करनेसे पाहिले सौंदर्य लहरी की दीक्षा जरूर ले। और गुरूजी ने जैसे बतया है वैसी साधना करे। अगर आपको किसीभी हालत में इस श्लोक का पाठ करना है। तो कमसे कम ११ बार ,ज्यादा से ज्यादा १०८ बार इसका जाप करे। या मैने बताया उस तरह साधना करे । मैने बताई हुयी साधना की प्रोसेस ,जो ग्रंथ में दी गयी है ,उस हिसाबसे हे।
अगले सौंदर्य लहरी के सत्संग में हम ,दूसरे श्लोक के बारेमे जानेगे।
आप सभी साधकोंका धन्यवाद् ,
श्री मात्रे नमः।

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