गाजर घास पशु और मानव शरीर को भी नुकसान पहुंचाती है (Carrot grass also harms animals and human bodies)
गाजर घास न केवल फसलों में बल्कि मनुष्यों और पशुओं के लिए भी एक गम्भीर समस्या का कारण बनी हुई है. इस खरपतवार के लगातार सम्पर्क में आने से मनुष्य को डरमेटाईटिस एल्जिमा (Dermatitis eczema), ऐलर्जी (Allergy), बुखार, दमा (Asthma) जैसी गंभीर रोग हो जाती हैं. पशुओं के लिए यह खरपतवार (Weed) बहुत ही अधिक विषाक्त है. इसके खाने से पशुओं में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं, और दुधारू पशुओं (Milch animals) के दुग्ध में कड़वाहट भी आने लगती है.
गाजर घास से रोकथाम कैसे करें (How to Prevent Congress grass)
इसकी रोकथाम या नियंत्रण यांत्रिक विधि (Mechanical method) द्वारा की जा सकती है. नम जमीन में इस खरपतवार को फूल आने से पहले हाथ से उखाड़कर या खुरपी से हटाकर इकट्ठा करके जला देने से काफी हद तक इसका नियंत्रण किया जा सकता है.
रासायनिक विधि से कैसे करें नियंत्रण (How to control with chemical method)
गाजर घास के रोकथाम के लिए बाजार में उपलब्ध शाकनाशियों का प्रयोग आसानी से किया जा सकता है. इन खरपतवारनाशी रसायनों में सिमाजिन, एट्राजिन, एलाक्लोर, डाइयूरोन सल्फेट तथा सोडियम क्लोराइड (Salt) प्रमुख है.
मक्का, ज्वार, बाजरा, गेहूं, धान, गन्ना, इत्यादि फसलों में प्रभावी नियंत्रण हेतु एट्राजिन (Atrazine) 1.0-1.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर बुवाई के तुरन्त बाद तथा अंकुरण से पूर्व (Before germination) 500 लीटर साफ पानी में घोल कर छिड़काव करें.
2, 4-डी एक किलो प्रति हेक्टेयर बुवाई के 25-30 दिन बाद प्रयोग करें.
मेट्रीब्युजिन 500-750 ग्राम को प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी के साथ छिड़काव करके प्रयोग किया जा सकता है.
खाली जमीन में में गाजरघास की किसी भी अवस्था में ग्लाइफोसेट (Glyphosate) 1.0-1.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी के साथ स्प्रे करें.
सोडियम क्लोराइड 15% तथा अमोनियम सल्फेट 20% का घोल घास के फूल आने तक कभी भी 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर खेतों में एक समान रूप से छिड़काव (Spray) कर देना चाहिए.
जैविक नियंत्रण द्वारा कांग्रेस घास का सफाया (Control of Congress grass by biological method)
इसके सफाए के लिए ऐसे कीटों को रखा जाता है जो गाजर घास को अच्छी तरह नष्ट करने में सक्षम होते हैं, और अन्य उपयोगी फसल या वनस्पतियों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं डालते. जून से अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में बीटल (Beetle) कीट अधिक सक्रिय रहता है और 1 एकड़ के लिए लगभग 3 से 4 लाख कीटों की आवश्यकता होती है.
केशिया टोरा (Cassia Tora), गेंदा (Marigold), टेफ्रोशिया पर्पूरिया, जंगली चैलाई जैसे कुछ पौधों की बुवाई मानसून से पहले अप्रैल-मई में करने से गाजर घास ग्रसित क्षेत्र का प्रसारण कम होने लगता है.
गाजर घास का उपयोग (Use also Carrot grass)
वैसे तो यह अधिक हानिकारक घास या खरपतवार है, मगर सही प्रबंधन से इसका नियंत्रण और उपयोग किया जा सकता है.
जैसे- गाजर घास के पौधे में अनेक प्रकार के औषधिय गुण भी पाये जाते हैं जिनका प्रयोग कीटनाशकों (Insecticides), जीवाणुनाशक एवं खरपतवारनाशक दवाइयों के निर्माण में किया जा सकता है.
बायोगैस (Biogas) निर्माण में भी गोबर के साथ इसका प्रयोग किया जा सकता है. पलवार के रूप में इसका जमीन पर आवरण बनाकर प्रयोग करने से दूसरे खरपतवार की वृद्धि में कमी आती है. साथ ही मिट्टी में अपरदन (Soil erosion) एवं पोषक तत्व खत्म होने को भी नियंत्रित किया जा सकता है.
गाजर घास या 'चटक चांदनी' (Parthenium hysterophorus) एक घास है जो बड़े आक्रामक तरीके से फैलती है। यह एकवर्षीय शाकीय पौधा है जो हर तरह के वातावरण में तेजी से उगकर फसलों के साथ-साथ मनुष्य और पशुओं के लिए भी गंभीर समस्या बन जाता है।
गाजर घास का उपयोग अनेक प्रकार के कीटनाशक, जीवाणुनाशक और खरपतवार नाशक दवाइयों के र्निमाण में किया सकता है।
अल्पकाल में ही लगभग पांच मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में इसका भीषण प्रकोप हो गया। यह खरपतवार जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर-प्रदेश, मध्यप्रदेश, उडीसा, पश्चिमी बंगाल, आन्ध्रप्रदेश, र्कनाटक, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश और नागालैण्ड के विभिन्न भागों में फैली हुई है।
यह पौधा 3-4 माह में ही अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है और र्वष भर उगता और फलता फूलता है। यह हर प्रकार के वातावरण में तेजी से वृद्धि करता है। इसका प्रकोप खाद्यान्न, फसलों जैसे धान, ज्वार, मक्का, सोयाबीन, मटर तिल, अरंडी, गन्ना, बाजरा, मूंगफली, सब्जियों एवं उद्यान फसलों में भी देखा गया है।
इसके बीज अत्यधिक सूक्ष्म होते हैं, जो अपनी दो स्पंजी गद्दि्यों की मदद से हवा तथा पानी द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से पहुंच जाते हैं।
गाजर घास मनुष्य और पशुओं के लिए भी एक गंभीर समस्या है। इससे खाद्यान्न फसल की पैदावार में लगभग 4॰ प्रतिशत तक की कमी आंकी गई है। इस पौधे में पाये जाने वाले एक विषाक्त पर्दाथ के कारण फसलों के अंकुरण एवं वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इस खरपतवार के लगातार संर्पक में आने से मनुष्यों में डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एर्लजी, बुखार, दमा आदि की बीमारियां हो जाती हैं। पशुओं के लिए भी यह खतरनाक है। इससे उनमें कई प्रकार के रोग हो जाते हैं एवं दुधारू पशुओं के दूध में कडवाहट आने लगती है। पशुओं द्वारा अधिक मात्रा में इसे चर लेने से उनकी मृत्यु भी हो सकती है।
#जंगल_की_जड़ी_बूटी #पेड़_पौधे #आयुर्वेदिक #भू_प्रकृति_World
#Bhu _Prakriti_World
#flowers #plant #खोज #ज्ञान #जंगली #beautiful #knowledge #surching #discovery #discover #earth #virul #virulvideo #jangligyan #india #nature #green_world #desi_plant
#जड़ #तना #पत्तियां #फल #leaf #root #fruit# #Trunk
#सब्जी #झाड़ी
Информация по комментариям в разработке