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गौतम बुद्ध की जीवन बदल देने वाली कहानी –
एक बार बुद्ध अपने भिक्षु के साथ भिक्षाटन के लिए किसी गाँव की तरफ जा रहे थे, तभी अचानक बुद्ध के पैरों में काटा लग गया. काटा इतना तीक्ष्ण था की चुभते ही रक्त की धार निकलने लगी. बुद्ध के भिक्षु ने रक्त को रोकने के लिए एक कपडा फाड़कर बुद्ध के पैर पर बांध दिया. इस घटना को कुछ लोग देख रहे थे, जो कि बुद्ध से इर्ष्या करते थे. उन्होंने बुद्ध से कहा कि – हमें तो तुम्हे परमज्ञानी समझते थे, लेकिन दर्द को तुम भी सहन नहीं कर सकते हो.
तुम पाखंडी हो, और ये हमने सिद्ध कर दिया हैं. ये कांटे हमने ही बिछाये हैं. इस गाँव में तुम्हारा स्वागत नहीं, तिरस्कार होगा. इस गाँव में तुमको कोई भिक्षा नहीं मिलेगी. बुद्ध ने उन लोगो से अनुरोध किया की कृपया करके मुझे इस गाँव से भिक्षा लेने दो. बुद्ध के इर्ष्यालुओं ने बुद्ध का उपहास बनाते हुए कहा कि अगर तुम्हे भिक्षाटन के लिए इस गाँव में आना हैं तो तुम्हे अपने रक्त की बलिदानी देनी होगी. तुमको इस काँटों के रास्ते से गुजरना होगा.
भगवान् बुद्ध ने उनकी चुनौती को स्वीकार कर लिया. और काँटों के रास्ते पर चलने के लिए अपने कदम बढ़ाने लगे. बुद्ध मुस्कराते हुए काँटों पर चलने लगे. बुद्ध के साहस को देख कर गाँव वाले चकित रह गए, कुछ लोगो की आँखे फटी की फटी रह गयी. गाँव वाले सोचने लगे की बुद्ध भिक्षा के लिए दुसरे गाँव भी जा सकते थे, तो फिर काँटों पर चल कर क्या साबित करना चाहते हैं.
गाँव वाले बुद्ध के सन्देश को इतनी जल्दी नहीं समझ पाए. यहाँ पर बात भिक्षा की नहीं बल्कि जीवन को बदलने की थी. गाँव वालो की भीड़ में एक सुमित नाम का युवक था जो बुद्ध पर हो रहे अत्याचार को देख कर द्रवित हो गया. सुमित दौड़कर गया और बुद्ध के पैरो के सामने से कांटे को हटाने लगा. बुद्ध के इर्ष्यालू सुमित को रोकने लगे और गाँव से दाना पानी न देनें की धमकी देने लगे.
सुमित ने किसी की न सुनी और काँटों को हटाते हुए बोला हे भगवन आप इन मुठी भर लोगो के अपने आपको कष्ट मत दीजिये. आप गाँव में प्रवेश कीजिये बहुत सारे लोग आपको भिक्षा देने के लिए आतुर हैं. बुद्ध ने सुमित को अपने आस बुलाया और आशीवार्द देने लगे, सुमित पीछे हट गया. हे भगवान् आप मुझे छु कर अपने आपको अपवित्र और दूषित न करे.
महात्मा बुद्ध ने कहा – तुम अपने आपको दूषित क्यों कहते हों? स्पर्श से कभी कोई भी दूषित नहीं होता हैं. मनुष्य तो लोभ, लालच, घृणा, इर्ष्या से दूषित होता हैं. तुम्हारे अन्दर तो प्रेम भरा हैं, तुम दुसरो का सुख चाहते हो. तुम तो पवित्र हो. बुद्ध के बोल सुनकर कुछ लोग बोले, तुम तो अपने आपको बड़े ज्ञानी कहते हो तुमको जाति का कोई ज्ञान ही नहीं हैं, तुम पाखंडी हो.
बुद्ध बड़े ही शांत स्वभाव से कहते हैं – मानव से मानव की मानवता छिनना पाखंडी की निशानी हैं. मुझे पाखंडी बोलकर यदि आपको संतोष मिलता हैं, तो मेरे लिए दुःख का कोई विषय नहीं हैं. कुछ लोग बुद्ध पर बरस पड़े – परन्तु यह तो धर्म शास्त्र हैं, फिर यह पाखंड कैसे हुआ.
बुद्ध कहते हैं – हमरी उत्पति इस सृष्टी में हुई हैं, नदियों का पानी सभी की समान रूप से प्यास बुझाता हैं, खुले जंगलो की हवा भी भेदभाव नहीं करती हैं, खुला आसमान हमारे पिता के समान हमारी परवरिश करता हैं. सृष्टीकर्ता ने भी कोई भेदभाव नहीं किया हैं, फिर हम इंसान कौन होते हैं भेद भाव करने वाले.
मानव मानव में भेद करके अपने संबंधों को बिगाड़ता हैं. बुद्ध के वचन के बाद कुछ लोग कहते हैं अगर आप इतना ही कहते हैं तो सुमित को अपना भिक्षु क्यों नहीं बना लेते हैं. बुद्ध ने कहा की अच्छा सुझाव हैं. अगर सुमित तुम चाहते हो तो तुम मेरा भिक्षु बन सकते हो. बुद्ध के आमंत्रण पर सुमित पहला नीच जाति का बौद्ध भिक्षु बनता हैं. इस पूरे विवरण में केवल सुमित का जीवन बदला, शेष सभी लोगो का जीवन रूपांतरित हुआ.

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