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Скачать или смотреть चन्द्र ग्रहण व मंत्र सिद्धि।इस बार पितृ पक्ष है कष्ट मुक्ति का दिव्य काल।

  • गृहस्थ तंत्र
  • 2025-09-04
  • 15014
चन्द्र ग्रहण व मंत्र सिद्धि।इस बार पितृ पक्ष है कष्ट मुक्ति का दिव्य काल।
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Описание к видео चन्द्र ग्रहण व मंत्र सिद्धि।इस बार पितृ पक्ष है कष्ट मुक्ति का दिव्य काल।

मंत्र का बल चन्द्रमा से संबंधित है। चन्द्र ग्रहण के समय मंत्र जप , स्तोत्र कवच जप का फल अनेक गुणा अधिक प्राप्त होता है। ठीक वैसे ही देवी से संबंधित अति विशिष्ट यंत्रों का निर्माण पूर्ण विधि से युक्त होकर नियम अनुसार ग्रहण में किया जाये तो निर्माण पूर्ण होते ही वह यंत्र अकीलित श्रापमुक्त अर्थात् श्राप विमोचन से मुक्त अपनी कलाओं के साथ पूर्ण चैतन्य व प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो जाता है। उसके साथ ही अगर इन विधानों को कर भी लिया जाए तो निर्मित यंत्र की क्षमता अपने आप में अत्यंत प्रबल हो जाती है। गृहस्थ तंत्र परिवार के श्री विद्या दीक्षित साधकों द्वारा भगवती ललिता त्रिपुर सुंदरी के चौंसठ योगिनियों का दिव्य कवचात्मक यंत्र का सीमित संख्या में निर्माण चन्द्र ग्रहण के दिव्य काल में किया जायेगा। भगवती त्रिपुर सुंदरी के चौंसठ योगिनियों का नामावली विशेष पाठ उनके स्वरूप के छायाचित्र सहित पूर्व प्रकाशित है चैनल पर (पुनः शेयर कर दिया जा रहा है)। अगर कोई भी स्त्री पुरुष इस चन्द्र ग्रहण के समय उन नामावली का पाठ करे व उसके उपरांत नित्य पाठ करते रहे व साथ में इस चन्द्र ग्रहण में निर्मित दिव्य चौंसठ योगिनी कवच को धारण करके रखे तो संभवतः आध्यात्मिक व भौतिक उन्नति हेतु मार्ग के अनेक विकल्प तीव्रता से प्रशस्त हो जायेंगे।
चौंसठ योगिनी मातृकाओं की कृपा से जीवन में क्या संभव नहीं है। तथा उनके नामावली का पाठ मात्र हेतु किसी दीक्षा की भी अनिवार्यता नहीं।
जो साधनाएं करते हों , कार्यक्षेत्र में विशेष संघर्ष रत हों तथा समाज अथवा अपने समुह में वर्चस्व सहित हर तंत्र अभिचार से सुरक्षण की इच्छा रखतें हों उन्हें यह कवच नित्य धारण करना चाहिए।
चन्द्र ग्रहण में निर्मित यह कवच शारदीय पूर्णिमा तक लगातार विभिन्न अनुष्ठानों में अनेकों अनेक दिव्य मंत्रों द्वारा अभिषिक्त होता रहेगा। शारदीय पूर्णिमा जो 7 अक्टूबर 2025 को है, के उपरांत आपको यह कवच भेजा जायेगा।

संबंधित विषय हेतु आप अपना विवरण https://www.grihasthpujansamagri.com पर पधारकर दे सकतें हैं।




तांम्र अथवा रजत किसी भी आवरण में वेष्टित भोजपत्र जिसे कवच का स्वरूप दिया जाता है उसका निर्माण विधान कैसे रहता है।

सर्वप्रथम देवता के रक्षौघ व पुष्टिकारण धारण यंत्र का चुनाव किया जाता है इस संभावना के साथ की जिसमें आहार आदि का प्रतिबंध गृहस्थ के अनुकुल हो। तत्पश्चात उसमें वर्णित स्याही व कलम के निमार्ण हेतु वनस्पति व औषधीय सामग्री का एकत्रीकरण हेतु काल स्थान का व्यवस्था तत्पश्चात दिव्य पर्वकाल के अमृत सर्वार्थ सिद्धि योग/ चन्द्र ग्रहण/ सूर्य ग्रहण आदि में भोजपत्र पर मंत्र पुरश्चरण पूर्ण किये साधक द्वारा निर्माण।
निर्माण उपरांत उनका शोधन व शाप विमोचन (यह सभी के लिए नहीं होता) तत्पश्चात उत्कीलन(यह भी सभी के लिए नहीं होता)
व अगले चरण में आवाहन अवगाहन प्रतिष्ठा व मूल तंत्रोक्त आवरण पूजन। तत्पश्चात तंत्रोक्त कलश पीठ पर यंत्र स्थापन।
अब रजत व ताम्र कवच का अग्नयुत्तारण व देवी रहस्य अनुसार धातु शोधन (लघु अथवा वृहद अनुष्ठान अनुसार)
तदुपरांत मुख्य अनुष्ठान उपरांत उचित समय पर ऊर्जित दोनों का एकीकरण। इसके पश्चात् तंत्रोक्त देवी सुक्त व ....शीर्ष द्वारा अभिषेक व बाहृय आवरण वृहद वा लघु पूजनं।
तत्पश्चात देवता अनुसार मुद्रा प्रदर्शन उपरांत उनको पूजन‌ स्थान से बलि पीठ के पास स्थापित करके लौंग कपूर, जम्बीर, जायफल, नारियल आदि उपयुक्त पदार्थ का बलि। पुनः लघु पूजन ।

जो मुख्य पूजन है उसका वर्णन नहीं है इसमें। इतना कुछ किया हुआ कवच जब आपके पास जाता है और महात्म्य ना जानकर आप उसकी उपेक्षा करतें हैं या भीतर के भोजपत्र को निकालते हैं तो देव हत्या का दोष लगता है। अतः ऐसे कर्म ना करें जिससे पुण्य क्षय हो।


देश काल परिस्थिति व संदर्भ विशेष देखते हुये आप पूर्व के चौंसठ योगिनी कवच की दक्षिणा से तुलना करके देख सकतें हैं। अधिक जन लाभ ले सकें इस कारण इतने लंबे अनुष्ठान आदि के पश्चात भी आधा राशि कर दिया गया है। कारण केवल व केवल अधिक जनों के लाभ हेतु है। इसमें जो भी व्यय व श्रम है कुछ धनकुबेर भक्तों के द्वारा वहन किया जा रहा है। जो धन से सबल हैं वो धन‌ से सेवा दे रहें ताकी लाभ उनके धर्म युद्ध को मिले। बाकी आपका विवेक।

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