वैष्णो देवी और भैरव | Vaishno Devi Aur Bhairav | Movie | Tilak

Описание к видео वैष्णो देवी और भैरव | Vaishno Devi Aur Bhairav | Movie | Tilak

   • बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुम...  
बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏 भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद।

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राजा रत्नाकर ने असुर राज दुर्जय का वध करने के प्रण लिया हुआ था। दुर्जय के घर में एक बालक का जन्म होता है जिसका नाम भैरव रखा जाता है। दूसरी और राजा रत्नाकर के कोई भी संतान नहीं होती वो माता से रोज़ विनती करते थे की उनके घर भी कोई बालक जन्मे। एक दिन राजा रत्नाकर को माता लक्ष्मी के दर्शन होते हैं जिस से वह देख कर आस लगा लेता है की जल्द ही उनके घर भी बच्चा पैदा होगा। देवी लक्ष्मी के रूप से वैष्णो माता का आह्वान करते हैं और उनसे कहते हैं की आपको जल्दी ही राजा रत्नाकर के घर जनम लेना है। राजा रत्नाकर अपने घर में हवन पूजन करते हैं और अपने घर में 9 कन्याओं को इंतज़ार कर रह थे तो माता स्वयं अपने नौ रूपों में उनके घर प्रकट हो कर राजा रत्नाकर और उनकी पत्नी के पास आती हैं। राजा रत्नाकर उनका आदर सत्कार करते हैं और उन्हें भोजन कराते हैं। वो सभी कन्याएँ वहाँ से चली जाती है।

राजा रत्नाकर और उनकी पत्नी उन्हें रोकने की कोशिश करती है लेकिन वो चली जाती हैं जिस पर राजा रत्नाकर माता से पुनः दर्शन देने के लिए प्रार्थना कारते हैं जिस पर माता उन्हें कन्या रूप में दर्शन देकर उन्हें कहती हैं की संतान प्राप्ति के लिए महा यज्ञ करे। राजा रत्नाकर अपने महायज्ञ करते हैं। राजा दुर्जय अपनी सेना के साथ राजा रत्नाकर पर आक्रमण करने के लिए आता है जिसे माता लक्ष्मी रस्ते में ही रोक देती हैं। दुर्जय अपनी सेना के साथ माता लक्ष्मी पर हमला करता है। माता लक्ष्मी उसे हरा देती हैं और उसे बताती हैं कि राजा रत्नाकर के घर में एक पुत्री जनम लेगी और तुम्हारा वध भी वही करेगी। राजा रत्नाकर का यज्ञ पूर्ण हो जाता है और रत्नाकर की पत्नी प्रसाद खाती हैं जिस से उनके घर में माता वैष्णो जनम लेती हैं। दुर्जय को पता चलता है की माता वैष्णो ने जनम ले लिया है तो वह क्रोधित हो जाता है। राजा रत्नाकर अपनी पुत्री का लालन पोषण करते हैं।

असुर राज दुर्जय अपने तीन राक्षसों को राजा रत्नाकर के राज्य में कोहराम मचाने के लिए भेजता है। तीनों राक्षस राजा रत्नाकर के राज्य में लोगों पर अत्याचार करने लगते हैं और वहाँ की सभी कन्याओं को उठा कर ले जाते हैं। वैष्णवी अपने पिता से कहती है की वह दुर्जय से सभी कन्याओं को मुक्त कर कर ले आएगी।

राजा उसे जाने से मना करता है लेकिन वैष्णवी चली जाती है। दुर्जय अपने तीनों राक्षसों को वैष्णवी को रस्ते में ही मारने के लिए भेजता है। वैष्णवी तीनों राक्षसों को मार देती हैं। वैष्णवी दुर्जय के पास पहुँच कर उसे कन्याओं को मुक्त करने के लिए कहती है। दुर्जय वैष्णवी को मारने के लिए अस्त्र चलाता है लेकिन वैष्णवी दुर्जय पर अपने चक्र से हमला कर देती हैं और उसका वध कर देती हैं। दुर्जय का पुत्र अपन पिता का अंतिम संस्कार करता है और अपने पिता की चिता पर वचन लेता है की वह राजा रत्नाकर और वैष्णवी दोनों को मार देगा। भैरव असुर गुरु के पास जाता है और उनसे राजा रत्नाकर के राज्य पर आक्रमण करने की आज्ञा माँगता है तो गुरु देव उसे मना कर देते हैं और उसे कहते हैं की पहले जाओ और तपस्या करके अपनी शक्तियों को बढ़ाओ।

भैरव अपने गुर की आज्ञा से तप करने चला जाता है और वर्षों तक तप करने के बाद वापस लौट आता है। गुर शुक्राचार्य राजा रत्नाकर पर आक्रमण करने की तैयारी करने की कहते हैं लेकिन वह इस कार्य को युद्ध करने के बजाए वैष्णवी से विवाह करके उसे सदा के लिए अपना बनी बना कर प्रताड़ित करना चाहता था। वह एक पत्र में राजा रत्नाकर से वैष्णवी का हाथ माँगता है। दुर्जय रत्नाकर के राज्य में भेष बदल आकर आता है वहाँ उसे वैष्णवी लोगों को प्रवचन देते हुए देखता है। भैरव वैष्णवी को अपने साथ ले जाने की बात कारता है तो प्रजा उसके सामने खड़ी हो जाती है जिसे भैरव अपनी शक्तियों से अचेत कर देता है। राजा रत्नाकर अपनी पुत्री की रक्षा के लिए वहाँ आते हैं और भैरव पर आक्रमण कर देते हैं भैरव राजा रत्नाकर को शक्ति से अचेत कर देता है।

वैष्णवी भैरव को अपनी शक्तियों से उसके राज्य में वापस फेंक देती हैं। राजा रत्नाकर अपना राज पाठ छोड़ने की बात करते हैं तो राज सभा में सभी मंत्री वैष्णवी को राज सिंहासन पर बैठने के लिए कहते हैं लेकिन वैष्णवी मना कर देती है और वन में जाकर तप करने जाने की बात करती हैं। भैरव को जब यह बात पता चलती है की राजा रत्नाकर ने राज पाठ छोड़ दिया है और वैष्णवी और अपने पत्नी को लेकर वन जा रहा है तो वह अपनी सेना के साथ उन्हें पकड़ने के लिए आता है। भैरव अपनी सेना को आगे भेजता है तो राजा रत्नाकर और उनकी पत्नी अपने अंदर से जल प्रलय को निकलते हैं जिसमें वो असुर बह जाते हैं। माता वैष्णो असुर राज भैरव को ज़ंजीरों में बांध कर जल में डूबा देती हैं।

वैष्णवी वन में तप करने चली जाती हैं। भैरव की माता देवी लक्ष्मी से अपने पुत्र को मुक्त करने के लिए प्रार्थना करती हैं जिस पर माता भैरव को मुक्त कर देती हैं। भैरव जल से निकलने के बाद सभी धर्म के काम करने वाले लोगों पर अत्याचार करता है। सभी ऋषि मुनि माता वैष्णवी के पास आते हैं और उनसे रक्षा कई गुहार लगते हैं।

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