विवाह की विधि मंत्र सहित पार्ट 1

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विवाह करवाओ सबसे आसान तरीके से । पद प्रक्षालन की क्रिया के साथ यह मन्त्र बोला जाए। ॐ विराजो दोहोऽसि, विराजो दोहमशीय मयि, पाद्यायै विराजो दोहः। - पार०गृ०सू० १.३.१२

अर्घ्य- स्वागतकत्तार् चन्दन युक्त सुगन्धित जल पात्र में लेकर भावना करे कि सत्पुरुषाथर् में लगने का संस्कार वर के हाथों में जाग्रत् करने हेतु अघ्यर् दे रहे हैं। कन्यादाता कहे- ॐ अर्घो, अर्घो, अर्घः प्रतिगृह्यताम्। - पार०गृ०सू०१.३.६

जल पात्र स्वीकार करते हुए वर कहे- ॐ प्रतिगृह्णामि। - पार०गृ०सू०१.३.७ भावना करें कि सुगन्धित जल सत्पुरुषार्थ के संस्कार दे रहा है। जल से हाथ धोएँ। क्रिया के साथ निम्न मन्त्र बोला जाए।

ॐ आपःस्थ युष्माभिः, सवार्न्कामानवाप्नवानि। ॐ समुद्रं वः प्रहिणोमि, स्वां योनिमभिगच्छत। अरिष्टाअस्माकं वीरा, मा परासेचि मत्पयः। - पार०गृ०सू० १.३.१३-१४

आचमन- स्वागतकत्तार् आचमन के लिए जल पात्र प्रस्तुत करें। भावना करें कि वर-श्रेष्ठ अतिथि का मुख उज्ज्वल रहे, उसकी वाणी उसका व्यक्तित्व तदनुरूप बने। कन्यादाता कहे- ॐ आचमनीयम्, आचमीयनम्, आचमीनयम्, प्रतिगृह्यताम्॥ ॐ प्रतिगृह्णामि। (वर कहे) -पार०गृ०सू० १.३.६ भावना करें कि मन, बुद्धि और अन्तःकरण तक यह भाव बिठाने का प्रयास कर रहे हैं। तीन बार आचमन करें। यह मन्त्र बोला जाए। ॐ आमागन् यशसा, स सृज वचर्सा। तं मा कुरु प्रियं प्रजानामधिपतिं, पशूनामरिष्टिं तनूनाम्। - पार०गृ०सू० १.३.१५

नैवेद्य- एक पात्र में दूध, दही, शकर्रा (मधु) और तुलसीदल डाल कर रखें। स्वागतकर्त्ता वह पात्र हाथ में लें। भावना करें कि वर की श्रेष्ठता बनाये रखने योग्य सात्विक, सुसंस्कारी और स्वास्थ्यवर्धक आहार उन्हें सतत प्राप्त होता रहे। कन्यादाता कहे- ॐ मधुपकोर्, मधुपकोर्, मधुपर्कः प्रतिगृह्यताम्। - पार०गृ०सू० १.३.६ वर पात्र स्वीकार करते हुए कहे- ॐ प्रतिगृह्णामि। वर मधुपर्क का पान करे। भावना करें कि अभक्ष्य के कुसंस्कारों से बचने, सत्पदार्थों से सुसंस्कार अर्जित करते रहने का उत्तरदायित्व स्वीकार रहे हैं। पान करते समय यह मन्त्र बोला जाए। ॐ यन्मधुनो मधव्यं परम रूपमन्नाद्यम्। तेनाहं मधुनो मधव्येन परमेण, रूपेणान्नाद्येन परमो मधव्योऽन्नादोऽसानि।- पार०गृ०सू० १.३.२०

तत्पश्चात् जल से वर हाथ-मुख धोए। स्वच्छ होकर अगले क्रम के लिए बैठे। इसके बाद चन्दन धारण कराएँ। यदि यज्ञोपवीत धारण पहले नहीं कराया गया है, तो यज्ञोपवीत प्रकरण के आधार पर संक्षेप में उसे सम्पन्न कराया जाए। इसके बाद क्रमशः कलशपूजन, नमस्कार, षोडशोपचार पूजन, स्वस्तिवाचन, रक्षाविधान आदि सामान्य क्रम करा लिए जाएँ। रक्षा-विधान के बाद संस्कार का विशेष प्रकरण चालू किया जाए।

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