हिंदू कलैंडर के अनुसार पौष माह के बाद वर्ष का 11वां महीना माघ मास प्रारंभ होता है। पौष पूर्णिमा के बाद यह माह प्रारंभ होता है।
माघ मास में दान करने का बहुत महत्व है। पुराणों में अनेकों दानों का उल्लेख मिलता है जिसमें अन्नदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान को ही श्रेष्ठ माना गया है, यही पुण्य भी है। दान से इंद्रिय भोगों के प्रति आसक्ति छूटती है। मन की ग्रथियां खुलती है जिससे मृत्युकाल में लाभ मिलता। माघ मास में खिचड़ी, घृत, नमक, हल्दी, गुड़, तिल का दान करने से महाफल प्राप्त होता है।
माघ मास या माघ पूर्णिमा को संगम में स्नान का बहुत महत्व है। संगम नहीं तो गंगा, गोदावरी, कावेरी, नर्मदा, कृष्णा, क्षिप्रा, सिंधु, सरस्वती, ब्रह्मपुत्र आदि पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। प्रयाग में माघ मास के अन्दर तीन बार स्नान करने से जो फल होता है वह फल पृथ्वी में दस हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता है। निर्णय सिंधु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें लेकिन एक दिन के स्नान से श्रद्धालु स्वर्ग लोक का उत्तराधिकारी बन सकता है।
माघ माह में द्वारा आए किसी भी व्यक्ति को खाली हाथ नहीं लौटाया जाता है। दान पुण्य किया जाता है।
इस माह में किसी भी तरह का व्यवसन नहीं करना चाहिए।
इस माह में तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।
यह माह पुण्य कमाने और साधना करने का माह होता है। अत: इस माह में झूठ बोलना, कटुवचन, ईर्ष्या, मोह, लोभ, कुसंगत आदि का त्याग कर देना चाहिए।
इस माह में अच्छे से स्नान करना चाहिए और खुद को शुद्ध एवं पवित्र बनाए रखना चाहिए। इस माह सुबह जल्दी उठकर स्नान करना लाभकारी होता है।
माघ माह में तिल गुड़ का सेवन करना लाभकारी होता है।
इस माह में यदि एक समय भोजन किया जाए तो आरोग्य तथा एकाग्रता की प्राप्ति होती है।
इस माह श्रीहरि के साथ ही श्रीकृष्ण की पूजा करना चाहिए। ऐसा करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
माघ माह में कल्पवास करने का सबसे बड़ा पुण्य है। कल्पवास अर्थात कुछ काल के लिए या संपूर्ण माघ माह तक के लिए नदी के तट पर ही कुटिया बनाकर रहना और साधुओं के साथ व्रत, तप, उपवास, संत्संग आदि करना ही कल्पवास है। कल्पवास पौष माह के 11वें दिन से माघ माह के 12वें दिन तक रहता है। कुछ लोग माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं। कल्पवास से शरीर के सभी रोग और मन के सभी शोक समाप्त हो जाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, रुद्र, आदित्य तथा मरूद्गण माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं।
सदियों से माघ माह की विशेषता को लेकर भारत वर्ष में नर्मदा, गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी सहित कई पवित्र नदियों के तट पर माघ मेला भी लगता हैं।
पुराणों में वर्णित है कि इस माह में पूजन-अर्चन व स्नान करने से नारायण को प्राप्त किया जा सकता है तथा स्वर्ग की प्राप्ति का मार्ग भी खुलता है।
महाभारत के एक दृष्टांत में उल्लेख है कि माघ माह के दिनों में अनेक तीर्थों का समागम होता है। वहीं पद्मपुराण में बताया गया है कि अन्य मास में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि माघ मास में नदी तथा तीर्थस्थलों पर स्नान करने से होते हैं। मान्यता यह भी है कि माघ मास की पूर्णिमा को नदी स्नान और दान देने से सूर्य और चंद्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है।
माघ मास में कुछ महत्त्वपूर्ण व्रत होते हैं, यथा– षटतिला एकादशी, तिल चतुर्थी, रथसप्तमी, भीष्माष्टमी, मौनी अमास्या, जया एकादशी, संकष्टी चतुर्थी आदि। इनका पालन करना चाहिए।
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