बलराम और शिक्षा के चिंतित महामंत्री अक्रूर को ऋषि गर्ग बताते है कि उन्हें कृष्ण के उत्तरदायित्व का ज्ञान नहीं, उनकी मुरली की धुन में समस्त ज्ञान और विद्या छिपा हुआ है। उनकी मुरली से ही सारा संसार संचालित हो रहा है। मुरली की विशेषताओं को सुन कर अक्रूर विस्मय में पड़ जाते है, लेकिन फिर भी ऋषि गर्ग से कहते है साधारण जनता को आततायी के अत्याचार से रक्षा करने वाला कर्मयोगी चाहिए। ऋषि गर्ग कहते है कर्म तभी सफल होता है, जब ठीक समय होता है। अभी समय तो उनकी प्रेम लीला है, क्योंकि मानव को यह समझाना कि प्रेम के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा होता है। श्रीकृष्ण मनुष्य का पूर्ण अवतार है जो उन्हें पूर्ण मानव बनना सिखाएंगे, समय आने पर राजनीति करना, युद्ध करना, शत्रु का संहार करना के साथ जीना, मरना सब कुछ सिखाएंगे। ऋषि गर्ग श्री कृष्ण के गुणों की अक्रूर को विस्तार से बता रहे थे कि तभी अंधा कवि सूरदास उनके पास आता है और ऋषि से अनुरोध करता है कि उसे कृष्ण के रूप में स्वयं भगवान धरती पर विराजमान है, उसे उनके दर्शन करने हेतु थोड़ी देर के लिए आँखें प्रदान कर दे। ऋषि कहते है कि क्या उसे अंतर्मन में कृष्ण के दर्शन नहीं होते है। वह कहता है कि उसने एक अलौकिक बालक को शिशु को किशोरावस्था तक बड़े होते हुए देखा है, क्या वो ही है? ऋषि गर्ग कहते है, हाँ, लेकिन यदि तुम्हें दृष्टि दी गई, तो तुम्हें माया द्वारा निर्मित कई दृश्य दिखाई देंगे, जिससे हो सकता है कि तुम दिव्य दृष्टि से दिखने वाले भगवान के स्वरूप को भूल जाओ। अंधे कवि का समझ में आ जाता है कि उसे नयन न देकर प्रभु ने कृपा की हुई। ऋषि गर्ग कवि का भविष्य बताते हुए कहते है कि जब कलयुग में भक्ति का ह्रास होगा, तब उस जन्म में भी नयन-हीन होते हुए दिव्य दृष्टि से कृष्ण की लीलाओं को देख कर उनके गुणगान गाओगे। कवि के जाने उपरांत ऋषि गर्ग अक्रूर से कहते है कि अतिशीघ्र आपका भी मानसिक कायाकल्प होने वाला है और प्रभु की महान कृपा होने वाली है। एक दिन अपने मनवांछित वर पाने के लिए राधा के साथ ब्रज की गोपियाँ भी माता गौरी का व्रत रख कर उनकी पूजा करती है। माता गौरी प्रकट होकर राधा से कहती है कि उन्हें सभी गोपिकाओं में तुम्हारा ही रूप दिखाई दे रहा है और इन सबके हृदय में भी श्री कृष्ण को पति के रूप में पाने की कामना है। वह सभी से कहती है कि तीन मास बाद मधुमास के शुक्ल पक्ष में सभी को अपना मनवांछित फल प्राप्त होगा। सभी गोपिकाओं तीन मास के बीतने की बेसब्री से करने लगती है, यह समय उन्हें युगों से समान प्रतीत होता है। वे आपस में मिलती रहती है, लेकिन अपने हृदय की बात छिपाए रहती है क्योंकि सभी को लगता है कि कृष्ण केवल उनके संग ही रास रचाएंगे। मधुमास का शुक्ल पक्ष भी आ जाता है, कृष्ण अपनी मुरली बजाना प्रारम्भ करते है। मुरली की धुन पर सभी गोपियाँ रासमण्डल में एकत्र होकर नृत्य करने लगती है। कृष्ण अपनी माया से ऐसा भ्रम पैदा करते है कि सभी गोपिकाओं को लगता है कि कृष्ण उनके साथ ही नृत्य कर रहे है। जिससे रास महारास में परिवर्तित हो जाता है, जिसकी गूंज पूरे ब्रह्माण्ड में सुनाई देती है।
सम्पूर्ण जगत में भगवान विष्णु के आठवें अवतार एवं सोलह कलाओं के स्वामी भगवान श्री कृष्ण काजीवन धर्म, भक्ति, प्रेम, और नीति का अद्भुत संगम है। वसुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में कारागार में जन्म लेकर गोकुल की गलियों में यशोदा और नंदबाबा के यहाँ पलने वाले, अपनी लीलाओं, जैसे पूतना वध, माखन चोरी, राधा के संग प्रेम, गोपियों के साथ रासलीला और कालिया नाग के दमन के लिए प्रसिद्ध श्री कृष्ण ने युवावस्था में मथुरा कंस का वध करके जनमानस को उसके अत्याचार से मुक्त कराया एवं स्वयं के लिए द्वारका नगरी स्थापना भी की। उनका जीवन केवल लीलाओं तक सीमित नहीं था। उन्होंने समाज को धर्म और कर्म का गूढ़ संदेश देने के लिए महाभारत के युद्ध में पांडवों का मार्गदर्शन किया और अर्जुन के सारथी बनकर उसे "श्रीमद्भगवद्गीता" का उपदेश दिया, जो आज भी जीवन की समस्याओं का समाधान बताने वाला महान ग्रंथ माना जाता है। श्री कृष्ण का जीवन प्रेम, त्याग, और नीति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। आपका प्रिय चैनल "तिलक" श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ा यह विशेष संस्करण "श्री कृष्ण जीवनी" आपके समक्ष प्रस्तुत है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी कथाओं का संकलन किया गया है। भक्ति भाव से इनका आनन्द लीजिए और तिलक से जुड़े रहिए।
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