किन्नरों का अंतिम संस्कार रात में ही क्यों होता है? Mysteries of Kinner Cremation
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किन्नेरों की शव यात्रा को नहीं देखना चाहिए | क्यों ? Kinnar ki shav yatra ko kyu nhi dekhna chaiye
किन्नरों की शव यात्रा – ‘थर्ड जेंडर’ यानी किन्नर…किन्नरों को हमारे समाज में तीसरे लिंग का दर्जा प्राप्त है.
किन्नरों की जिंदगी साधारण लोगों से काफी अलग होती है, इस बात को ना केवल हमने जाना है बल्कि कई दफा देखा भी है.
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इनका जीवन बसर करने का तरीका महिलाओं और पुरुषों दोनों से ही अलग होता है. लेकिन इनमें और हम में एक चीज बेहद सामान्य है और वो है अपने-अपने रीति-रिवाजों का पालन करना. शायद आप में से कई लोग इनकी रहस्मयी दुनिया के बारे में जानते भी ना हों, इसलिए आज हम आपको इनकी दुनिया से रूबरू कराएंगे जहाँ बहुत से रिवाज़ हैं.
किसी भी किन्नर के लिए जन्म से लेकर मृत्यु तक उनके नियम आम लोगोंसे अलग होते हैं. आपने किन्नरों के जन्म की खबरें तो सुनी होंगी या इन घटनाओं से वाकिफ होंगे लेकिन क्या कभी आपने किसी किन्नर की शव यात्रा देखी है..?
शायद बाकी सभी की तरह आपने भी कभी किसी किन्नर की शव यात्रा ना देखी हो, इसके पीछे एक छुपा हुआ रहस्य है, जिसके बारे में हर कोई नहीं जानता. लेकिन आज हम आपको इसके पीछे छुपी वजह के बारे में बताने जा रहे हैं.
किन्नरों में शव को सभी से छुपा कर रखा जाता है. शव को वैसे तो सभी धर्मों में छुपा कर ही ले जाया जाता है लेकिन किन्नरों और आम लोगों की शव यात्रा में अंतर ये है कि उनकी शव यात्रा दिन की बजाय रात में निकाली जाती है. ऐसा इसलिए है ताकि किन्नरों की शव यात्रा कोई इंसान ना देख सके. दरअसल, किन्नरों की शव यात्रा रात में इसलिए निकाली जाती है ताकि कोई इंसान इनकी शव यात्रा ना देख सके. ऐसा क्यों किया जाता है
किन्नरों का मानना है कि किसी भी किन्नर की मृत्यु के बाद मातम मनाने की बजाय जश्न मनाना चाहिए क्योँकि उनके साथी को इस नर्क समान जीवन से मुक्ति प्राप्त हुई होती है.
यही कारण है कि ये लोग अपने किसी के चले जाने के बाद भी रोते नहीं बल्कि ख़ुशियां मनाते हैं. इनके यहां अपनों की मृत्यु के बाद दान देने का भी रिवाज़ है, साथ ही ये भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उनके जाने वाले साथी को अच्छा जन्म मिले. किन्नर समाज का सबसे अजीब रिवाज़ है कि वो मृत्यु के बाद शव को जूते-चप्पलों से पीटते हैं, उनका मानना है कि ऐसा करने से मरने वाले के सभी पाप और बुरे कर्म का प्रायश्चित हो जाता है. किन्नर वैसे तो हिंदू धर्म का पालन करते हैं लेकिन किन्नरों की शव यात्रा के बाद वह शव को जलाने की बजाय उसे इस्लामिक धर्म के तहत दफना देते हैं.
किन्नरों की शव यात्रा – देखा जाए तो समाज में हर किसी को जीने का और सामन्य अधिकार मिलने का हक है लेकिन किन्नरों के साथ भारत और अन्य देशों में काफी दूर्व्यवहार किया जाता है जिस कारण ही इन्होंने अपना खुद का एक समाज बना लिया है.
डेस्क-किन्नरों को तो हम सब ने देखा है। हम ये भी जानते हैं कि इनकी जिंदगी हमारी तरह सामान्य नहीं होती। इनके जीवन जीने के तरीके, रहन-सहन सब कुछ अलग होता है। हमारे समाज में इन्हें तीसरे लिंग यानी कि थर्ड जेंडर का दर्जा दिया गया है। इनका अपना एक अलग समाज होता है और ये लोग उसी समाज में रहते हैं। जैसे हर समाज के अपने अलग- अलग रीति- रिवाज होते हैं, वैसे ही किन्नरों के समाज में भी उनका अपना रिवाज है। जन्म से लेकर मरने तक इनके अलग- अलग नियम है। कभी आपने किसी किन्नर की शव यात्रा देखी है, नहीं ना। ऐसा क्यों है ये हम आपको बताते हैं। किन्नरों के शव यात्रा में भी छुपे हैं कई राज।
किसी के घर में नई शादी हुई हो या फिर किसी बच्चे का जन्म हुआ हो। वहां किन्नरों को नाचते- गाते नेक मांगते हुए आपने देखा होगा। कुछ पैसे लेकर आपको ढेर सारा आशीर्वाद दे जाते हैं ये किन्नर। लेकिन क्या आपको मालूम है कि जब इन किन्नरों की जब मौत होती है, तब इनके शव को सभी से छुपा कर रखा जाता है। जी हां, जहां ज्यादातर शव यात्रा दिन में निकाली जाती है, वहीं किन्नरों की शव यात्रा रात में निकाली जाती है।
शव के जुटे चप्पल से मरते है
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