महाकाली कौन है? उनका स्वरूप कैसा है? और उनके और उनकी साधना की कुछ बाते।
जानिए महाविद्या महाकाली के बारे में। दस महाविद्या की पहली और सबसे विध्वंसक शक्ति महाकाली.
अब हम महाकाली के बारे में आपको बताएंगे। महाकाली नाम कौन नही जानता। कोई इन्हें काली माता कहता है तो कोई काली मां कोई कालका मैया तो कोई चामुंडा कहता है। दुर्गा माँ के मुख्य तीन रूपो महाकाली, महालक्ष्मी महासरस्वती में से एक है महाकाली। उग्र स्वभाव के होने के कारण इनका रूप भी भयवह है। गले मे मुंड माला हाथ मे खड्ग और रक्त से भरा खप्पर लिए जिह्वा बाहर निकली और रक्तरंजित ,काले कज्जल के समान रंग वाली उलझे हुए खुले से केश,आंखे लाल बड़ी बड़ी सी मुख क्रोध से भरा और हुंकार करती हुई दानवो का वध करने वाली ये देवी महाकाली है। शक्ति का वह स्वरूप जो कि अनियन्त्रित हो जाए तो अति विध्वंसकारी और स्वयम साक्षात शिव को इन्हें शांत करने के लिए इनके पांव के नीचे आना पड़े। जैसे शिव का दूसरा नाम है महाकाल वैसे ही दुर्गा माँ का भी रूप है महाकाली। महाकाली जितनी विध्वंसक है उतनी ही वात्सल्य भरी भोली और प्रेम से भरी है। साधक को पुत्रवत सम्हालने वाली ये महाकाली जिस पर कृपा करती है उस पर कष्ट नही आता। इनका साधक तीनो लोको में विजय प्राप्त कर उच्च पदासीन होता है। ऐसे साधक से शत्रु तो क्या भूत प्रेत यक्ष गंधर्व आदि सभी भय खाते है और इसके आस पास भी नही फटकते। ऐसा साधक निर्भय वीर और ऊर्जा से भरा होता है। जैसे कि दुर्गा सप्तशती में भी लिखा है
निर्भयो जायते मर्त्य:, संग्रामेष्वपराजित:।
त्रैलोक्ये च भवेत् पूज्य:, कवचेनावृत: पुमान्।।
इदं तु देव्या: कवचं, देवानामपि दुर्लभम्।
य: पठेत् प्रयतो नित्यं, त्रि-सन्ध्यं श्रद्धयान्वित:।।
देवी वश्या भवेत् तस्य, त्रैलोक्ये चापराजित:।
जीवेद् वर्ष-शतं साग्रमप-मृत्यु-विवर्जित:।।
नश्यन्ति व्याधय: सर्वे, लूता-विस्फोटकादय:।
स्थावरं जंगमं वापि, कृत्रिमं वापि यद् विषम्।।
अभिचाराणि सर्वाणि, मन्त्र-यन्त्राणि भू-तले।
भूचरा: खेचराश्चैव, कुलजाश्चोपदेशजा:।।
सहजा: कुलिका नागा, डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरीक्ष-चरा घोरा, डाकिन्यश्च महा-रवा:।।
ग्रह-भूत-पिशाचाश्च, यक्ष-गन्धर्व-राक्षसा:।
ब्रह्म-राक्षस-वेताला:, कूष्माण्डा भैरवादय:।।।
अतः देवी दुर्गा के चंडी रूप महाकाली का साधक किसी आभिचार कर्म मन्त्र तन्त्र के प्रभाव में न आने वाला होता है।सभी प्रकार की शक्तियां भूत पिशाच यक्ष गन्धर्व डाकिनी आदि उसे अपना प्रभाव
नही डाल पाती और उससे दूर रहती है। ब्रह्म राक्षस तक साधक पर प्रभावहीन होता है। निर्भयता का प्रतीक महाकाली स्वयं साधक की रक्षा करती है।
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