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• रायपुर चातुर्मास प्रवचन 2022
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प्रस्तुति : अंतर्राष्ट्रीय साधना तीर्थ, संबोधि धाम, जोधपुर (राजस्थान)
‘‘जरा सोचें, सालभर में सबसे अच्छा दिन कौन सा है। तो वह है आज का दिन। आज के दिन का जितना सदुपयोग कर सकें कर लें। क्योंकि आज का दिन प्रभु का दिया प्रसाद है। जो दिन बीत गया वो अतीत है, जो दिन आने वाला है, वह भविष्य का स्वप्न है। सिर्फ और सिर्फ आज का दिन ही आपका अपना है। एक बात मान कर चलना जो कर्मशील है, जिसे परमात्मा पर विश्वास है उसके लिए सप्ताह के सातों दिन अच्छे हैं। कभी कोई अच्छा काम कल पर मत छोड़ें, उसे आज ही कर लें। अपने जीवन के हर पल का सार्थक उपयोग करें। रात को जब सोएं तो यह चिंतन करें कि आज के दिन का मैंने कितना सार्थक और सकारात्मक उपयोग किया। असल में आदमी की उम्र वह नहीं होती, जितने दिन वह जीता है, आदमी की उम्र वह होती है जितने दिनों को वह सार्थक बनाकर जीता है।’’
आदमी यदि अपने जीवन का सही मैनेजमेंट करना सीख लेता है तो वह एक ही जीवन में सौ-सौ जीवन के बराबर कार्य करने में सक्षम हो सकता है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड में अगर सबसे बेशकीमती यदि कोई चीज है तो वह है आदमी की अपनी जिंदगी। जिसके सामने दुनिया का कोई वैभव नहीं टिक सकता। अगर जिंदगी है तो इस पूरी दुनिया का महत्व है। इस पूरी दुनिया की कीमत कितनी-आंख बंद करो जितनी। रात को सोते हुए देखे सपने सुबह आंख खुलते ही टूट जाया करते हैं और दिन के उजाले में देखे हुए सपने तब टूटते हैं जब आंख सदा के लिए बंद हो जाया करती है। ‘जिंदगी जीने का मकसद खास होना चाहिए। अपने आप-पर हमें विश्वास होना चाहिए। जीवन में खुशियों की कमी नहीं है, बस उन्हें मनाने का अपना अंदाज होना चाहिए।’
यह जीवन परम पिता का दिया वरदान है-
आदमी अगर जीवन को बेहतरीन तरीके से जीना सीख ले तो इससे बड़ा कोई स्वर्ग नहीं हो सकता। हमारा जीवन परम पिता परमेश्वर का दिया वरदान है। हम इसे अभिशाप बनाते हैं या विशाद बनाते हैं या इसे प्रसाद मानकर स्वीकार करते हैं, तय हमें करना है। कोई आपको बुरा कह रहा है, आप पर टिप्पणी कर रहा है तो बुरा मत मानिए। क्योंकि जिसकी जिंदगी कुछ खास होती है, उसी पर लोग टिप्पणी करते हैं। लोग फलों से लदे हुए पेड़ पर पत्थर मानते हैं, सूखे ढूंढ पेड़ पर नहीं मारते। याद रखना, टेढ़ा बोलने से आदमी के रिश्ते टूटते हैं और आदमी का दिल भी टूटता है।
सफलता के लिए ही नहीं सार्थकता के लिए भी जिएं
जीवन के हर दिन को सार्थक करना यही जीवन की सबसे बड़ी सफलता है। रोज हम दो तरह का जीवन जीते हैं- एक सफल और दूसरा सार्थक जीवन। रोजमर्रा की उदरपूर्ति, परिवार के पालन-पोषण, रहन-सहन के लिए जीना सफल जीवन है और अपनी आत्मा के लिए, जीव के कल्याण के लिए, भव-भव के निस्तार के लिए जीना, भलाई व नैतिकता का कार्य करना यह सार्थक जीवन है। आपको क्या लगता है सफलता वाली जिंदगी ज्यादा काम की लगती है या सार्थकता वाली। चिंतन करें, अंतत: मन यही कहता है- जीव तेरी सफलता यहीं रह जाएगी, केवल सार्थकता ही साथ जाएगी। आज से अपने-आपको मोटिवेट कीजिए कि मैं अपनी जिंदगी में केवल सफलता के लिए ही नहीं जीऊंगा, सार्थकता के लिए भी जीऊंगा। जीवन में पहला मंत्र यह जोड़ लें- आज का दिन ही सबसे अच्छा दिन है। जैसे आप अपने बही-खाते में शुभ-लाभ लिखते हैं वैसे ही दूसरा मंत्र अपने जीवन के खाते में लिख लें- ‘शुभ कर्म। ’
हमारी भारतीय संस्कृति में विद्वत मनीषियों ने जीवन को सफल-सार्थक बनाने चार भागों अर्थात् आश्रमों में विभक्त करने की शिक्षा दी। पहले भाग को शिक्षा-संस्कार के लिए रखा, जिसे ब्रह्मचर्य आश्रम कहा। दूसरा भाग पत्नी-बच्चों, परिवार के लिए रखा जिसे गृहस्थ आश्रम कहा, तीसरा भाग रखा अध्यात्म साधना के लिए, जिसे वानप्रस्थ आश्रम कहा और चौथा जीवन का भाग आत्म कल्याण व मुक्ति के लिए रखा, जिसे कहा गया संन्यास आश्रम। इन चारों आश्रमों का सही ढंग से अनुकरण करना यही जीवन का प्रबंधन है, लाइफ मैनेजमेंट है। कहा गया है कि बचपन में जमकर पढ़ाई करो तो जवानी सुख से जीओगे, जवानी में जम के कमाई करो तो बुढ़ापा सुख से जीओगे और बुढ़ापे में जमकर पुण्याई करो तो , अगला जन्म भी सुख से जियोगे।
हर व्यक्ति को अपने कमाए हुए धन का भी मैनेजमेंट चार भागों में विभक्त करके करना चाहिए। धन का पहला भाग बच्चों के लिए, दूसरा भाग धर्मपत्नी के लिए, तीसरा हिस्सा जीवन के आवश्यक संसाधनों के लिए और चौथा हिस्सा मानवता के कल्याण-जीव दया के लिए। जीते जी रक्तदान और मरने के बाद नेत्रदान कर दो। लाइफ मैनेजमेंट कर रहे हैं तो हम अपने जीवन का उपयोग स्वास्थ्य के लिए, समृद्धि-धनार्जन के लिए, धर्म आराधना के लिए और आत्मिक आनंद के लिए इन चार के लिए करें। लाइफ मैनेजमेंट की पहली शर्त है- सुबह जल्दी जागने आदत बना लीजिए। दूसरा कार्य सुबह-सवेरे चेहरे पर मुस्कान लाइए, तीसरा- बड़ों को प्रणाम करें, चौथा- स्नान के बाद टहलें या योग-प्राणायाम करें या स्वाध्याय अथवा ईश आराधना करें। चौथा- दिनचर्या को व्यवस्थित करने दिनभर के कार्यों को धैर्यपूर्वक नोट कर लें। पांचवा- स्वावलम्बी बनने की आदत बनाने खाना खाने के बाद अपनी थाली अपने हाथों से धोएं, छठवा- कमाने के साथ-साथ सत्कार्यों के लिए लगाना भी सीखें।
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