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Скачать или смотреть देवशयनी एकादशी -जानिए न जानि हुई बातें-चातुर्मास क्या है

  • પ્રેરક વાર્તાઓ - Gujarati Moral Stories
  • 2023-06-28
  • 187
देवशयनी एकादशी -जानिए न जानि हुई बातें-चातुर्मास क्या है
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Описание к видео देवशयनी एकादशी -जानिए न जानि हुई बातें-चातुर्मास क्या है

देवशयनी एकादशी - जानिए न जानि हुई बातें- चातुर्मास क्या है- मांगलिक कार्य बंद क्यों? सृष्टि का भार कोनसे देव के हाथमें?
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मैं हरकिशन प्रजापति . . ट्रेनर और मोटिवेशनल स्पीकर . .मेरा उद्देश्य कहानी द्वारा किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण प्रदान करना तथा सभी प्रशिक्षण विषयों को आध्यात्मिक कथाओं एवं भगवद गीता के श्लोकों से जोड़ना है . . ताकि शिक्षार्थी तेजी से, आसानी से सीख सके और जीवन भर याद रख सके .
कृपया मेरे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें:
   / @gujaiarti.moral.stories  

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है।
सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है।
इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है।
देवशयनी एकादशी दिन से देवोत्थानी एकादशी बीच के अंतराल को चातुर्मास कहा गया है।
इस साल २०२३ में अधिक मास भी हैं। ऐसे में इस एकादशी के बाद ५ महीने तक भगवान विष्णु योग निद्रा में रहेंगे।
चातुर्मास के चार महीने में बादल और वर्षा के कारण सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि देवशयन हो गया है।
इस समय में पित्त अग्नि की गति शांत हो जाने से शरीरगत शक्ति क्षीण हो जाती है।
चातुर्मास में (वर्षा ऋतु में) विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न होते हैं। जल की बहुलता और सूर्य - तेज का भूमि पर कम होना इनका कारण है।
शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर, किए गए कार्यों के परिणाम भी शुभ नहीं होते।
इसीलिए चातुर्मास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। विवाह संस्कार, मुंडन, गृह प्रवेश और मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार चातुर्मास में १६ संस्कारों का आदेश नहीं है।
इस अवधि में पूजा, अनुष्ठान, घर या कार्यालय की मरम्मत, गृह प्रवेश, ऑटोमोबाइल खरीद और आभूषण की खरीद की जा सकती है।
पुराणोके अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग जमीन दान के रूप में मांगी थी। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया।
दुसरे पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर बलि को पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो।
बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें।
इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता ४ - ४ माह पाताल लोक में निवास करते हैं।
देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक भगवान विष्णु, देवउठानी एकादशी से महा शिवरात्रि तक भगवान शिवजी, और महा शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक भगवान ब्रह्मा जी, पाताल लोक में निवास करते हैं।

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