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  • stude
  • 2025-09-22
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Ministry of Culture Song
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Описание к видео Ministry of Culture Song

#currentaffairsमहाकाव्य काव्य का एक प्रकार है। कवि का कर्म ही काव्य होता है जिसे साहित्यकारों ने दो भागों में विभक्त किया है- (1) श्रव्य काव्य तथा (2) दृश्य काव्य। जिस काव्य को देखकर रसास्वादन किया जाये, वह दृश्य काव्य की कोटि में आता है। श्रव्य काव्य वह है जिसका सुनकर रसास्वादन किया जाता है। इस श्रव्य काव्य के मुरुक, गीतिकाव्य, गद्य, पद्य, चम्पूकाव्य, स्तुतिपरक काव्य, सन्देश काव्य, महाकाव्य आदि विविध प्रकार होते हैं। छन्दों में निबद्ध काव्य को पद्य कहते हैं। पद्यों के सुगठित, सुसंयोजित समूह रूप में प्रबन्धता को प्रबन्ध काव्य के नाम से जाना जाता है। महाकाव्य गठन के प्रमुख तत्त्व-आख्यान वर्णन, - संवाद, रस, नेता आदि से सुसम्बद्ध होता है। इसमें जीवन की अनेकानेक घटनाओं का विस्तृत वर्णन सहित सम्वर्द्धन होता है। अतः महाकाव्य काव्य की महत्त्वपूर्ण विधा है।

५ संस्कृत काव्यों की उत्पत्ति के बीज वेदों में मिलते हैं। प्राचीन परम्पराओं से परिलक्षित र होता है कि मनुष्य उत्सवप्रिय होते थे और समय-समय पर सामूहिक गीत नृत्यादि से कर मनोरंजन किया करते थे। कालान्तर में ये ही गीत नृत्यादि आख्यानों के रूप में परिणत हो गये और विकसित तथा परिवर्द्धित होते-होते महाकाव्यों के रूप में परिवर्तित हो गये।#painting #कला #डिजाइनdrawing#shorts#oilpastel#painting#art#easy#kidsdrawing#viral#trending

संस्कृत काव्यों की प्रथम किरण ऋग्वेद में दिखायी देती है। अतः महाकाव्यों का उद्भव वऋग्वेद के आख्यान सूक्तों, इन्द्र, वरुण, विष्णु और उषा आदि के स्तुति मन्त्रों तथा नाराशंसी क वोगाथाओं से हुआ है। ब्राह्मणादि ग्रन्थों में इन आख्यानों आदि का बृहद् रूप मिलता है। यह स्वरूप आगे चलकर महाकाव्य के रूप में परिवर्तित हो गया है। रामायण तथा महाभारत त आगे चलकर उपजीव्य काव्य के रूप में संसार में प्रसिद्ध ही हैं। रामायण को इतिहास ग्रन - माना जाता है। इन्हीं बृहद् आकृति रचनाओं से प्रेरणा लेकर भास, कालिदास, अश्वघो भारवि, माघ आदि असाधारण कवि हुए।

महाकाव्यों की विकासपरक परंपरा में महर्षि पाणिनि (450 ई.पू.) का नाम आता है, जिन्होंने जाम्बवती जया या पाताल-विजय नामक महाकाव्य लिखा, जिसमें 18 श्लोकों में कृष्ण द्वारा पाताल जाकर जाम्बवती की विजय और विवाह का वर्णन है। वररुचि के पास अनेक सुंदर कमलों का संग्रह, लोकोक्तियों के विविध संग्रह भी हैं, जिनमें 'सदुक्तिकर्णामृत', 'सुभाषितावली', 'शार्ङ्गधर-पद्धति' आदि स्मरणीय हैं। इन विवाहोक्तियों के संबंध में विवाद भी है। ये भाष्यकार कात्यायन वन निरुक्त-समुच्चय के रचयिता या प्राकृत प्रकाश के रचयिताओं में से एक हैं। ईसा. हृ. 1000 ई. के आसपास जन्मे महर्षि पतंजलि न केवल वैयाकरण महाभाष्य के रूप में प्रसिद्ध हैं, अपितु वे कंस वध और बलिबंध नामक नाट्य-ग्रंथों के भी कवि थे। इन रचनावली काव्यों का सुंदर चित्रण दर्शनीय है। यहाँ उनके उल्लेख का अर्थ है कि 150 ईस्वी तक काव्य साहित्य की अनेक विधाएँ प्रकट हो चुकी थीं। पहली शताब्दी ईस्वी और उसके बाद के कई शिलालेख मिलते हैं। रुद्रदाम गरनार का शिलालेख 150 ईस्वी का है। निस्संदेह, यह एक अलंकृत काव्य शैली का उदाहरण

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