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Скачать или смотреть अभिमन्यु को मारने के लिए कौरवों ने रचा चक्रव्यूह | सूर्यपुत्र कर्ण | Mahabharat Story @balaji15-m8j

  • BALA JI
  • 2025-04-16
  • 2149
अभिमन्यु को मारने के लिए कौरवों ने रचा चक्रव्यूह | सूर्यपुत्र कर्ण | Mahabharat Story @balaji15-m8j
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Описание к видео अभिमन्यु को मारने के लिए कौरवों ने रचा चक्रव्यूह | सूर्यपुत्र कर्ण | Mahabharat Story @balaji15-m8j

अभिमन्यु को मारने के लिए कौरवों ने रचा चक्रव्यूह | सूर्यपुत्र कर्ण | Mahabharat Story @balaji15-m8j

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"महाभारत के युद्ध में लाखों वीरों ने वीरगति पाई... पर एक योद्धा की शहादत आज भी हर दिल को झकझोर देती है। सिर्फ 16 वर्ष का था वो... पर शौर्य, पराक्रम और बलिदान में देवताओं को भी मात दे गया।
वो था अर्जुन पुत्र... सुभद्रा और श्रीकृष्ण का भांजा... अभिमन्यु।
पर क्या आपने कभी सोचा है... कि उस चक्रव्यूह को क्यों रचा गया?
क्यों उसे अकेले उसमें प्रवेश करने दिया गया?
और आखिर क्यों... उसके साथ विश्वासघात हुआ?
आज हम जानेंगे – ‘अभिमन्यु को मारने के लिए कौरवों ने रचा चक्रव्यूह’।"
13वां दिन... महाभारत के सबसे निर्णायक और दर्दनाक दिनों में से एक।
दुर्योधन, भीष्म पितामह के जाने के बाद अब पूरी तरह कर्ण और द्रोणाचार्य पर निर्भर था।
द्रोणाचार्य सेनापति बन चुके थे और उनका लक्ष्य था - युधिष्ठिर को बंदी बनाना।

पर युधिष्ठिर तक पहुंचना आसान नहीं था।
द्रोण ने रचा एक ऐसा माया-जाल जिसे भेदना असंभव था —
चक्रव्यूह एक घातक सैन्य संरचना है, जिसमें सात परतें होती हैं।
हर परत पहले से अधिक खतरनाक होती है... और भीतर जाते ही बाहर निकलना लगभग असंभव होता है।
इसका ज्ञान सिर्फ कुछ ही योद्धाओं को होता था — जैसे अर्जुन, कृष्ण, भीष्म और द्रोण।
लेकिन उस दिन... अर्जुन और श्रीकृष्ण युद्धभूमि में नहीं थे। उन्हें कौरवों ने एक रणनीति के तहत दूर भेज दिया था।
जब युधिष्ठिर को खबर मिली कि द्रोण ने चक्रव्यूह रच दिया है, तो चिंता बढ़ गई।
कोई योद्धा नहीं था जो चक्रव्यूह तोड़ सके।
तभी... आगे आया एक तेजस्वी युवक — अभिमन्यु।

"मैं चक्रव्यूह में प्रवेश कर सकता हूँ," उसने कहा।
"मेरी माँ सुभद्रा के गर्भ में ही मैंने इसका भेदन सीखा है।"

पर ये सत्य था कि उसने सिर्फ प्रवेश करना सीखा था... बाहर निकलना नहीं।

युधिष्ठिर ने पूछा:
"यदि तुम अन्दर चले गए... और कोई तुम्हारे पीछे नहीं आया तो?"

अभिमन्यु बोला:
"यदि कोई न आए, तो मैं अकेला लड़ूँगा... और मरते दम तक लड़ूँगा।"
कौरवों को ज्ञात था कि अर्जुन नहीं है... यही मौका है।

द्रोण, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, जयद्रथ — सभी ने मिलकर एक षड्यंत्र रचा।
जयद्रथ ने शपथ ली थी कि वह पांडवों को चक्रव्यूह में प्रवेश नहीं करने देगा।
और ऐसा ही हुआ।

अभिमन्यु चक्रव्यूह तोड़ कर अंदर घुस गया... पर उसके पीछे कोई न आ सका।
अब अभिमन्यु अकेला था... और सामने थे कुरु वंश के सबसे घातक योद्धा।
उसने अकेले रथों को तोड़ा, सेनापतियों को पछाड़ा, असंख्य सैनिकों को मार गिराया।
पर धीरे-धीरे उसके रथ के घोड़े मारे गए, सारथी मारा गया, धनुष टूटा... पर साहस न टूटा।

यह कोई सामान्य युद्ध नहीं था... यह एक वीरगति की ओर बढ़ता बलिदान था।
जब अभिमन्यु थक गया, निःशस्त्र हो गया, तब कौरवों ने मिलकर हमला किया।

सात महारथी मिलकर एक निहत्थे योद्धा पर टूट पड़े।

यह युद्ध का नियम नहीं था... यह अधर्म था।
कर्ण ने उसकी पीठ पर वार किया। द्रोणाचार्य मौन रहे।
और अंततः... अभिमन्यु धरती पर गिर पड़ा।
अभिमन्यु का बलिदान महाभारत के युद्ध को एक निर्णायक मोड़ पर ले आया।
अर्जुन का क्रोध — अग्नि बन गया।
घटना ने पांडवों को हिला कर रख दिया।
और फिर... जन्म हुआ प्रतिशोध की अग्नि का।

क्योंकि एक अभिमन्यु... सिर्फ योद्धा नहीं था, वो युग का प्रतीक था।
"क्या आपको लगता है कि कौरवों का ये षड्यंत्र सही था?
क्या अभिमन्यु को अकेला भेजना उचित था?
कमेंट करके हमें ज़रूर बताएं।

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मिलते हैं अगले एपिसोड में... एक और अनकही कथा के साथ।
जय श्री कृष्ण।"

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