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Скачать или смотреть है किसी में हिम्मत दुर्वाषा ऋषि को अतिथि बनाने की ? | Krishna Katha | Sant Asharamji Bapu Satsang

  • Sant Shri Asharamji Ashram
  • 2012-08-06
  • 8199
है किसी में हिम्मत दुर्वाषा ऋषि को अतिथि बनाने की ? | Krishna Katha | Sant Asharamji Bapu Satsang
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Описание к видео है किसी में हिम्मत दुर्वाषा ऋषि को अतिथि बनाने की ? | Krishna Katha | Sant Asharamji Bapu Satsang

भगवान श्री कृष्ण और दुर्वासा जी ( खीर का प्रसंग )

संत श्री आशारामजी बापू की अमृतवाणी

सत्संग के मुख्य अंश :

एक बार दुर्वासा ऋषि ने लीला की कि है कोई जो मुझे अपना अतिथि रखे, जब आऊँ, जब जाऊं, जो खाऊँ, जितने दिन रहूँ और अगर कुछ बोला तो शाप दे कर चला जाऊंगा | देव-लोक, भू-लोक में किसी की हिम्मत नहीं हुई | श्री कृष्ण ने कहा महाराज, हमारा आतिथ्य स्वीकार करो |

आतिथ्य कुछ दिन तक चला, दुर्वासा जी उनके तकिये आदि जलाए तो भी शिकन नहीं | दुर्वासा जी ने कहा मैं जा रहा हूँ, आकर खीर खाऊंगा | कृष्ण जी ने खीर की कढ़ाईआ रख दी | अपनी जूठी थाली में से खीर ले के दुर्वासा ऋषि ने कृष्ण जी के मुंह, बालों, पीताम्बर पर लगा दी, पर कृष्ण जी के मन में शिकन नहीं, रुक्मणि जी भी देख के हंस रही कि क्या समता है | रुक्मणि का हास्य देख कर दुर्वासा जी ने बुलाया, चोटा पकड़ा और जूठी खीर चेहरे पर लगा दी, पर कृष्ण जी को कुछ नहीं हुआ |

दुर्वासा जी ने कहा कि कृष्ण जैसे हो ऐसे ही रथ ले आओ, घोड़े की जगह पर तुम और रुक्मणि लगो और चाबुक मेरे को दे दो | रुक्मणि और कृष्ण रथ खींच रहे है | चौराहे पर रथ खड़ा रखा, पर दुर्वासा जी देखें कि ये दोनों दुखी नहीं होते हर हाल में मस्त है |

दुर्वासा जी प्रसन्न होकर बोले कि कुछ मांग लो, कृष्ण कहते है कि गुरु महाराज आप प्रसन्न हो, बस मुझे यही चाहिए | दुर्वासा जी ने कहा कि एक बात का ख्याल रखना मैंने जूठी खीर मल कर तुम्हारी सारी काया वज्रकाया बना दी, लेकिन पैरों के तलवों का ख्याल रखना वहां पर खीर नहीं लगी | इतिहास साक्षी है कि शिकारी ने मृग समझ के कृष्ण जी के पैरों के तलवे पर तीर मारा तब श्री कृष्ण ने संसार से विदाई ली, देखने में तो जूठी खीर लगे पर गुरु के संकल्प ने वज्रकाया बना दिया |

"गुरु कृपा ही केवलम्, शिष्यस्य परं मंगलम् |"

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