जानिए, ईश्वर आपके साथ होने के संकेत

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   • जानिए, किस वस्तु का दान होता है फलदाय...  
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बोद्ध धर्म की बात की जाए तो इसमे काफी जटीलताएं होती है... इसमे कहा गया है कि अगर आप कुशल कर्म करेंगे तो सुख की प्राप्ति होती है औऱ हिंसात्मक कर्म करेंगे तो दुख की प्राप्ति होती है... फिर इसमे इस बारे में भी बात की जाती है कि अगर हम इस जन्म में अच्छे कर्म करेंगे तो हमें दूसरे जन्म में किस प्रकार से लाभ की प्राप्ति होती है... तो कर्म फल को करने के बाद दूसरे क्षण में उसका जो कर्म है वो नष्ट हो जाता है फिर भी उसका बार बार परिक्षण करने के दौरान उसको सिद्ध करने के लिए काफी बुद्धि की आवश्यकता होती है... इसके लिए कारणों या प्रमाण की आवश्यकता होती है... भगवान बुद्ध का जो दर्शन है वो वास्तविकता पर आधारित है... नालंदा के जो विद्वान थे हम लोग उनके शिष्य है तो उनके शिष्य होने के नाते हमें परिक्षण करना चाहिए।... तो आजकल की जो नई विद्याएं है उनके अनुसार किस प्रकार से उनका परिक्षण करना चाहिए अगर वास्तव में बोद्ध धर्म को श्रद्धा के अनुसार मान लिया जाए तो उसका विकास नहीं हो सकता... परिक्षण को करना चाहिए, सामान्य तौर पर ऐसा कहा जाता है कि हमारे शरीर में 100 वर्ष तक रहने की शक्ति होती है लेकिन आज के समय में बहुत सी बीमारियां या बहुत सी रसायनिक पदार्थ है उसके कारण इतने लंबे समय तक नहीं रह सकते... बहुत सारी ऐसी बीमारियां होती है जिससे हमारी उम्र कम हो जाती है... जैसे ग्रहस्त लोगों की बात की जाए तो जब वो जवान होते है तो पढ़ाई लिखाई में व्यस्त होते है औऱ फिर नौकरी में अपना समय बीताते है फिर उसके बाद शादी इत्यादि और फिर बच्चे पैदा नहीं होते तो परेशानी होती है और जब बच्चे ज्यादा पैदा हो जाए तो उसकी भी परेशानी बढ़ जाती है... फिर उसके बाद पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था फिर उनकी देखभाल करने की समस्या, फिर उनकी पढ़ाई कराने का दुख और फिर जब उन्हे नौकरी न मिले उसका दुख होता है फिर उसके बाद अपने बच्चों के बच्चों के बारे में चिंता समेत इत्यादि चिंताएं होती है... इसलिए अगर ग्रहस्त से हटकर प्रवृज्जित लोगों की बात की जाए तो ज्यादा अच्छी बात होती है... जैसे सूत्रों में भी कहा गया है कि धर्म का अध्ययन करने वाला जो धर्म है उसका रोज अभ्यास करने की बात होती है ऐसा नहीं है कि कहीं पहाड़ या गुफा में जाकर अभ्यास किया जाए ऐसा नहीं होता... जैसे हमारे जो भिक्षुक लोग है उनका अगर उदाहरण दें तो भगवान बुद्ध ने भी अपने क्लेश को नष्ट किया वो भी एक ग्रहस्त के रुप में पैदा हुए थे... फिर बुद्धत्व बने... तो उन्होने जो मार्ग जो रास्ते हमें दिए अगर हम उनका अभ्यास करें तो अच्छा हो सकता है...

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