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Скачать или смотреть बैगन की उन्नत खेती।।बैंगन की वैज्ञानिक खेती कैसे करें।Eggplant farming.

  • Farming Bihar
  • 2021-05-30
  • 339
बैगन की उन्नत खेती।।बैंगन की वैज्ञानिक खेती कैसे करें।Eggplant farming.
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Описание к видео बैगन की उन्नत खेती।।बैंगन की वैज्ञानिक खेती कैसे करें।Eggplant farming.

बैगन की उन्नत खेती कैसे करें।
बैगन की वैज्ञानिक खेती कैसे करें।

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   / gautamb  

बैंगन की खेती अधिक ऊंचाई वाले स्थानों को छोड़कर भारत में लगभग सभी क्षेत्रों में प्रमुख सब्जी की फसल के रूप में की जाती है। पौष्टिकता की दृष्टि से इसे टमाटर के समकक्ष समझा जाता है। बैंगन की हरी पत्तियों में विटामिन ‘सी’ पाया गया है।  इसके बीज क्षुधावर्द्धक होते हैं तथा पत्तियां मन्दाग्नि व कब्ज में फायदा पहुंचाती हैं।  बैंगन के प्रति 100 ग्राम खाने योग्य भाग में पाए जाने वाले विभिन्न तत्वों को निम्न सारणी में दर्शया गया है।


भेजना चाहिए।

कीट एवं रोग नियंत्रण

तना एवं फल बेधक

यह कीट फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है। इसके पिल्लू (लार्वा) शीर्ष पर पत्ती के जुड़े होने के स्थान पर छेद बनाकर घुस जाते हैं तथा उसे अंदर से खाते हैं जिससे टहनी का विकास रुक जाता है बाद में आगे का भाग मुरझा कर सुख जाता है। फल आने पर पिल्लू इनमें छेद का गुदे व बीज को खाते हैं। इसकी रोकथाम हेतु समेकित कीट प्रबन्धन उपाय कारगर पाए गये हैं इनमें प्रभावित शाखाओं को कीट सहित तोड़कर नष्ट करते है। फसल में फेरोमोन पाश लगाकर इस कीट के प्रभाव को कम किया जा सकत है। फलों पर कीट पर प्रकोप दिखाई देने पर नीम के बीच के रस  का 4% की दर से घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर फसल पे छिडकें। पूर्ण नियंत्रण न होने की दशा में कीटनाशी दवा जैसे-इंडोसल्फान 700 ग्रा.स.त./हे. हेक्टेयर अथवा साइपरमेथ्रिन 50 ग्रा. स. त./हे, की दर से उप्रोक नीम के बीज के घोल में मिलाकर प्रयोग करें।

जैसिड्स

ये हरे रंग के कीट पत्तियोंकी निचली सतह से लगकर रस चूसते हैं। जिसके फलस्वरूप पत्तियां पीली पद जाती हैं और पौधे कमजोर हो जाते हैं। इनके नियंत्रण हेतु रोपाई से पूर्व पौधों की जड़ों को काँनफीडर दवा के 1.25 मि.ली./ली. की दर से बने घोल में 2 घंटे तक डूबोयें ।

एपीलेकना बीटल

ये कीट पौधों की प्रारंभिक अवस्था में बहतु हानि पहुंचाते हैं। ये पत्तियों को खार छलनी सदृश बना देते हैं। अधिक प्रकोप की दशा  में पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। इनकी रोकतम के लिए कार्बराइल (2.0 ग्रा./ली.) अथवा पडान (1.0 ग्रा. ली.) का 10 दिन के अंतर पर प्रयोग करें।

डैम्पिंग ऑफ़ या आर्द्र गलन

यह पौधशाला का प्रमुख फुफुदं जनित रोग है इसका प्रकोप दो अवस्थाओं में देखा गया है। प्रथम अवस्था में, पौधे जमीन की सतह से बाहर निकलने के पहले ही मर जाते हैं एवं द्वितीय अवस्था में, अंकुरण के बाद पौधे जमीन की सतह के पास गल कर मर जाए हैं। इसकी रोकथाम के लिए बाविस्टिन (2 ग्रा./कि.ग्रा. बीज) नामक फफुन्दनाशी दवा से बीजों का उपचार करें। साथ ही अंकुरण के बाद ब्लूकॉपर-50 (३ ग्रा./ली.) या रिडोमिल एम् जेड अथवा इंडोफिल एम्-45(2 ग्रा./ली.) से क्यारी की मिट्टी को भिगो दें।

फल सड़न (फोमोप्सिस ब्लाईट)

यह फफून्द के कारण होने वाला एक बीज जनित रोग है। प्रभावित पत्तियों पर प्रारंभ में छोटे-छोटे गोल भूरे धब्बे बन जाते हैं तथा बाद में अनियमित आकार के काले धब्बे पत्तियों के किनारों पर दिखाई देते हैं। रोगी पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है। फलों पर धूल कणों के समान भूरी रचनाएं दिखाई पड़ती हैं जो बाद में बढ़कर काले धब्बों के रूप में दिखाई देने लगती है। इस रोग के नियंत्रण के लिए बाविस्टिन (2 ग्रा./कि.ग्रा. बीज) से बीजोपचार के बाद बुआई करें तथा फसल पर 0.1% बाविस्टिन का घोल बनाकर 10 दिनों के अंतर पर पौधों की प्रारंभिक अवस्था में 2-3 बार छिड़कें।

जीवाणु –जनित मुरझा रोग

यह सोलेनेसी परिवार की सब्जियों की प्रमुख बीमारी है। इसके प्रकोप से पौधे मर जाते हैं। इसके बचाव हेतु प्रतिरोधी किस्में जैसे-स्वर्ण प्रतिभा, स्वर्ण श्यामली लगाएं। लगातार बैंगन, टमाटर, मिर्च एक स्थान पर न लगा कर अन्य सब्जियों का फसल चक्र में समावेश करें। खेत में 10 क्वि./हे. की दर से करंज  की खली का प्रयोग रोपाई से 15 दिन पूर्व करने से रोग के प्रभाव में कमी आती है। रोपाई के पूर्व पौधों की जड़ों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (500 मि.ग्रा./ली.) के घोल में आधे घंटे तक डुबोएं।


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