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Скачать или смотреть गरीब बूढी मां नारायण की सच्ची भक्त होने के बावजूद क्यों उन्हें मिला श्राप 😭 नारद मुनि क्यों हुआ दुखी

  • Bhakti Gyan Vaani
  • 2025-09-20
  • 8
गरीब बूढी मां नारायण की सच्ची भक्त होने के बावजूद क्यों उन्हें मिला श्राप 😭 नारद मुनि क्यों हुआ दुखी
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गरीब बूढी मां नारायण की सच्ची भक्त होने के बावजूद क्यों उन्हें मिला श्राप 😭 नारद मुनि क्यों हुआ दुखी

namaskar doston 🙏
bhakti gyan vaani channel per aapka swagat hai
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एक बार एक दिन नारद जी ने भगवान विष्णु से प्रश्न किया कि हे प्रभु आपके भक्त प्राय गरीब क्यों होते हैं.? बे जीवन में हमेशा इतने कष्ट में क्यों रहते हैं? जबकि आपके निंदक या अधर्मी व्यक्ति खुश रहता है एवं धन संपत्ति से पूर्ण रेहता है। ऐसा क्यों है प्रभु ?

भगवान श्री हरि थोड़ा मुस्कुराए और बोले नारद मेरी कृपा और लीला को समझना बहुत कठिन है इसे समझने के लिए तुम्हें मेरे साथ पृथ्वी पर चलना होगा। इतना कहके भगवान श्री हरी और नारद मुनि साधु वेश में पृथ्वी पर आते हे। वे दोनों एक नगर पहुंचे और वहां के धनवान सेठ के घर जाकर भिक्षा मांगने के लिए दरवाजा खटखटाए। सेठ जी गुस्से में दरवाजा की ओर आए और देखा कि 2 साधु खरे हे। बागबान ने उन्हें प्रेम से कहा : भैया बहुत भूख लगी है कृपया थोड़ा भोजन दे दीजिए। सेठ जी यह सुनकर ओर ज्यादा गुस्सा हो गए और बोले तुम लोगों को शर्म नहीं आती मेहनत करके खाने में क्या दिक्कत होता है ? जाओ यहां से जाकर किसी ओर से मांगलो यहां दोबारा भीख मांगने मत आओ ।
सेठ का ये व्यवहार देखकर नारद जी को बहुत दुख हुआ । बे भगवान से बोले प्रभु देखिए जारा ये व्यक्ति कितना अहंकारी और पत्थर दिल का हे। यो ना केवल आपको पहचान ने में असफल रहा बलकि आपको आपमान भी कर रहा था। ऐसे व्यक्ति को तो आवश्य दंड मिलना चाहिए। कृपया इसे कोई अभिशाप दीजिए। भगवान श्री हरि हंसते हुए बोले नारद मेरी लीला अपरम्पार हे। मैं इसे अभिशाप नहीं आशीर्वाद दे सकता हु ईए कहकर भगवान ने सेठ को ओर अधिक धन संपत्ति बढ़ने का आशीर्वाद दे दिए। नारद जी ये देखकर आश्चर्य रह गए। उन्होंने सोचा कि जो व्यक्ति भगवान की निंदा कर रहा था उसे तो अधिक धन संपति बढ़ने का वरदान मिल गया, लेकिन आगे जो हुआ वो और भी रहस्यमय था।
इसके बाद भगवान और नारद मुनि नगर के बाहर एक बड़ी मां की छोटे से झोपरे के पास पहुंचे। बोह बूढ़ी मां बहुत ही गरीब थी और उसकी संपत्ति केबल एक गाय थी। जिससे वो अपना जीवन जापान करती थी। भगवान ने वहा भी भिक्षा मांगी कि माता हमें बहुत भूख लगी हे, क्या हमे कुछ खाने के लिए मिल सकता हे ? बूढ़ी मां अपने झोपड़े से बाहर आकर आनंदित होकर बोली प्रभु मेरे पास आपके लिए देने के लिए बहुत कुछ तो नहीं हे पड़ जो भी हे, वह आपका ही दिया हुआ हे, कृपया इसे स्वीकार कीजिए। यह कहके बुरी मां झटपट अंदर गई और अपने गाय का ताजा दूध निकाल कर दो कटोरे में लेके आई। उसने बड़े प्रेम और श्रद्धा से भगवान ओर नारद जी को वो दूध अर्पित किया। बागबान ने भी प्रेमपूर्वक दूध ग्रहण किए और वृद्धा को आशीर्वाद दिया।
नारद जी ये देखकर प्रसन्न होकर बोले प्रभु ये देखिए ये भक्त आपको कितनी प्रेम से भोग अर्पित कर रही हे। इसने उसके पास जो भी था वो सब कुछ आपको समर्पित कर दिया। कृपया इसे कोई बड़ा बरदार दीजिए जिससे इसका जीवन सुख से भर जाए।
भगवान ने थोड़ा देर सोचे और बुरी मां के गाय को मरने का अभिशाप दे दिया। ये सुनकर नारद जी उत्यंत व्याकुल हो गए। उन्होंने कहा प्रभु ये अपने क्या किया ? ये तो आपकी सच्ची भक्त हे। इसकी गाय ही इसकी एकमात्र सहारा थी और आपने उसे ही छीन लिया। यह अन्याय क्यों ?
भगवान ने नारद जी की ओर देखा और बड़े प्रेम से समझाया नारद तुम्हे मेरी लीला समझ में नहीं आही। ये बूढ़ी म मेरी परम भक्त हे और इसे शीघ्र ही ये संसार त्याग करके मेरे धाम आना था परंतु इसके गाय प्रति अत्यधिक मोह था। जब इसका अंतिम समय आता ये भगवान का स्वरण करने के बजाए अपने गाय के चिंता में ही लीन रहती। इससे इसका अगला जन्म गो योनि में हो जाता और इसे अनेक दुख भोगने पड़ते इसलिए मैने इसकी गाय को पहले ही छीन लिया ता की जब इसका अंतिम समय आए तब इसका मन केवल मुझमें ही लगा रहे ओर ईए सीधा मेरे धाम को प्राप्त कर सके। वहीं दूसरी ओर वो सेठ धन संपत्ति से इतना मोह में पर जाएगा कि जब उसकी मृत्यु होगी तब उसका ध्यान केबल अपनी तिजोरी ओर सोने चांदी पर होगा। इसके कारण वो अगले जनम तिजोरी की रक्षा करने के लिए सांप के रूप से जन्म लेगा।
भगवान ने आगे कहा, ये प्रकृति का नियम हे कि जिस चीज से जीव को अत्यधिक लगाओ होता हे। मृत्यु के समय उसका अंतिम विचार उसी में होता हे और अगले जनम में उसे वही जीवन मिलता हे, जिसमें वह सबसे अधिक आसक्त रहता हे। इसलिए मनुष्य को हमेशा मोह माया को त्याग करके ईश्वर की स्वरण करना चाहिए।

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