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पौराणिक कथा के अनुसार, राजर्षि अश्वपति की पुत्री का नाम सावित्री था और वह अपने माता पिता की इकलौती संतान थी. जब सावित्री बड़ी हुई तो उसका विवाह सत्यवान से tay हुआ. तब नारद जी ने अश्वपति को सत्यवान के अल्पायु होने के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि वह विवाह के एक साल बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा.
यह सुनकर राजर्षि अश्वपति डर गए और बेटी सावित्री को दूसरा वर चुनने को कहा, लेकिन सावित्री नहीं मानीं. निश्चित समय पर सावित्री का विवाह सत्यवान से हो गया. वह सत्यवान और उसके माता पिता के साथ जंगल में रहने लगी.
सावित्री सत्यवान के लिए व्रत रखने लगी. भविष्यवाणी के अनुसार, जब सत्यवान के जीवन का अंतिम दिन आया तो उस दिन सावित्री भी उनके साथ लकड़ी काटने वन गईं.
सत्यवान एक पेड़ पर चढ़ने लगे, तभी सिर में तेज दर्द हुआ. वे नीचे आकर बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री की गोद में लेट गए. कुछ देर बाद सावित्री ने देखा कि यमराज उसके प्राण लेने आए हैं. वे सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे, तो सावित्री उनके साथ चल दीं. यमराज ने मना किया लेकिन वह नहीं मानीं.
तब यमराज ने सावित्री से तीन वरदान मांगने को कहा और सावित्री ने सत्यवान के 100 पुत्रों की मां बनने का वरदान मांग लिया. यमराज ने वरदान तो दे दिया लेकिन सत्यवान के दोबारा जीवित होने पर ही यह वरदान फलित हो पाता है. यमराज अपने वचन से बंधे हुए थे और उन्होंने सत्यवान के प्राण लौटा दिए. सत्यवान फिर से जीवित हो उठे. तब से सुहागन महिलाएं हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन वट पूर्णिमा व्रत रखती हैं, ताकि उनके भी पति की आयु लंबी हो और सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद प्राप्त हो.
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