जब सारे मार्ग बन्द हो जाएं तो प्रायश्चित का तप कठोर कर्म बन्धन भस्म करता है,ऋषियों का कथन_नीचे पढ़ो

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जब अनजाने कारण बार बार जीवन में सफलता और उपलब्धि को हाथ से छिटकाते चले जाएँ, जब न चाहते हुए भी तुम्हारें स्वयं के निर्णय ही तुम्हारे विरुद्ध होते चले जाएं और कोई विशेष कारण समझ ही नहीं आए, जब तुम्हारे भीतर का संशय और भी स्वभाव बन कर लम्बें समय तक पीछे ही न छोड़े; तब आवश्यकता होती है अपने गहरे अस्तित्व के परिष्कार की। तब तुम्हें तप का ही सहारा मात्र निदान दे सकेगा। पुनर्जन्म और कर्म फल प्राचीन भारतीय मनीषा के अकाट्य आधार हैं, जिन्हें नकारा तो जा सकता है पर मिटाया नहीं जा सकता।
तप की अग्नि के द्वारा कर्म बंधनों की पकड़ ढीली और समाप्त हो जाती है। और तप की विधा में इन परिस्थितियों में आवश्यकता जन्म लेती है 'तथ्य प्रायश्चित' की। क्या है तथ्य प्रायश्चित, इसका रहस्य क्या है, कैसे इसके विधान द्वारा स्वयं के जीवन में परिष्कार लाया जा सकता है। कर्म बंधनों की पकड़ ढीली बनाते हुए आगे कैसे बड़ा जा सकता है।

एक बात आपको गहराई से जान लेनी चाहिए की अगर प्रायश्चित का विषय हमारे भविष्य के घटना क्रमों से जुड़ा नहीं होता तो उसे हम कभी भी नहीं उठाते। और दूसरी बात यह की अगर इसका सम्बन्ध हमारे जीवन की सफलता असफलता से लेना देना नहीं होता तो भी हम इस विषय को नहीं उठाते। तीसरे यह की अगर प्रायश्चित का लेना हमारी पर्सनालिटी से नहीं होता तो भी हम उसे नहीं उठाते। यह विषय मनुष्य के वास्तविक हितों तक किस गहराई तक जा कर गुँथा है इसका अनुमान सामान्यता लोगो को नहीं है।

प्रायश्चित केवल एक अपनी बुराई पर किया गया पश्चाताप मात्र नहीं है. यह वह प्रक्रिया जिसके द्वारा आंतरिक वायरस पूरी तरह से स्कैन करते हुए जड़ मूल से उखाड़ कर बाहर फ़ेंक दिए जाते हैं। आईये इस विषय के मर्म को जान कर हम वह सारे अनजाने कारणों को समाप्त कर डालें जो रह रह कर हमे हमारे जीवन सफलताओं से दूर बनाये रहते हैं। अपनी असफलताओं के अज्ञात कारणों से मुक्ति चाहते हो तो इस विषय को अवश्य जान लो तुम्हारा भला होगा। दिनेश कुमार https://dineshji.com/e-books/
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