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Скачать или смотреть प्राचीन भारत के दो महान विश्वविद्यालयों - तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास.

  • RK Knowledge Channel
  • 2025-08-24
  • 73
प्राचीन भारत के दो महान विश्वविद्यालयों - तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास.
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Описание к видео प्राचीन भारत के दो महान विश्वविद्यालयों - तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास.

प्राचीन भारत के दो महान विश्वविद्यालय - तक्षशिला और नालंदा का संक्षिप्त परिचय।
1. तक्षशिला विश्वविद्यालय
तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना लगभग 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व या इससे पहले यानि कुछ स्रोत के अनुसार 7वीं शताब्दी ईसा में हुई थी।
यह वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिडी से 18 मील उत्तर की ओर स्थित था।
इस विश्वविद्यालय के जानकारी के स्त्रोत - बौद्ध ग्रंथों, जातक कथाओं और ह्वेनसांग (ह्वेन त्सांग) और कौटिल्य (चाणक्य) जैसे प्राचीन इतिहासकारों द्वारा उपलब्ध जानकारी।
इस यूनिवर्सिटी के प्रसिद्ध छात्र:
पाणिनी - महान संस्कृत व्याकरणविद
चरक - आयुर्वेद के संस्थापक
कौटिल्य (चाणक्य) - अर्थशास्त्र के लेखक, चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु
जीवक - भगवान बुद्ध के चिकित्सक
पढ़ाए जाने वाले विषय:
वेद, व्याकरण, तर्कशास्त्र
गणित, खगोल विज्ञान
चिकित्सा (आयुर्वेद), शल्य चिकित्सा
राजनीति, सैन्य विज्ञान
कला, वास्तुकला और दर्शन
शिक्षण शैली:
आधुनिक विश्वविद्यालयों की तरह कोई केंद्रीय परिसर नहीं था।
छात्र शहर भर में अलग-अलग शिक्षकों (गुरुकुलों) के साथ रहते थे।
इसका पतन:
धीरे-धीरे गिरावट: लगभग 5वीं शताब्दी ई. तक, बदलती राजनीतिक उदासीनता और कम शाही संरक्षण के कारण इस संस्था का पतन होने लगा।
अंततः 5वीं-6वीं शताब्दी ई. में तोरमण और मिहिरकुल के अधीन हूणों द्वारा भारत पर आक्रमण जो बौद्ध विरोधी और विनाशकारी आक्रमणकारी थे इसके नष्ट होने के प्रमुख कारण थे।
धरोहर : दुनिया में उच्च शिक्षा के पहले संगठित केंद्रों में से एक माना जाता है।

2. नालंदा विश्वविद्यालय
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी ई.पू. (कुछ स्रोत 427 ई.पू. में वर्त्तमान बिहार के नालंदा जिला में हुई थी।
इसकी संस्थापक गुप्त साम्राज्य के कुमारगुप्त प्रथम द्वारा की गई थी।
इसका स्वर्णिम काल गुप्त साम्राज्य के दौरान और हर्षवर्धन तथा पाल वंश जैसे सम्राटों के अधीन था।
यूनिवर्सिटी कैंपस
मंदिर, कक्षाएँ, पुस्तकालय, छात्रावास (लगभग 10,000 छात्रों के लिए) और विशाल इमारतें थीं।
इसके पुस्तकालय, धर्मगंज में 9 मिलियन पांडुलिपियाँ होने की बात कही गई है , जिसमें रत्नसागर (रत्नों का सागर) जैसे खंड थे।
प्रसिद्ध विद्वान:
नागार्जुन (दार्शनिक, महायान बौद्ध धर्म)
आर्यभट्ट (खगोलशास्त्री/गणितज्ञ, संभवतः जुड़े हुए)
ज़ुआनज़ांग और यिजिंग (चीनी यात्री जिन्होंने नालंदा का अध्ययन किया और उसके बारे में लिखा है।
पढ़ाए जाने वाले विषय:
बौद्ध दर्शन, तर्कशास्त्र, व्याकरण, खगोल विज्ञान, गणित, चिकित्सा
हिंदू धर्मग्रंथों और दर्शन का भी अध्ययन किया जाता था।
यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था। इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब दस हजार एवं अध्यापकों की संख्या दो हजार थी। सातवीं शती में जब ह्वेनसाङ आया था उस समय दस हजार विद्यार्थी और १५१० आचार्य नालंदा विश्वविद्यालय में थे। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं, बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। इस विश्वविद्यालय को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी।
पतन और विनाश:
आक्रमण: 1193 ई. में बख्तियार खिलजी, एक तुर्क मुस्लिम आक्रमणकारी द्वारा इसका विनाश हुआ।
पुस्तकालय का जलना: ऐसा कहा जाता है कि पांडुलिपियों की विशाल मात्रा के कारण पुस्तकालय कई महीनों तक जलता रहा।
हज़ारों भिक्षु और छात्र मारे गए; बौद्धिक परंपरा तबाह हो गई।
प्रभाव: यह घटना क्लासिकल भारतीय शिक्षा के पतन का प्रतीक था और भारतीय बौद्धिक परंपराओं के लिए एक बड़ा झटका था।
नालंदा पुनरुद्धार: 2010 में, भारत ने कई एशियाई देशों के समर्थन से मूल स्थल के पास नालंदा विश्वविद्यालय परियोजना शुरू की।
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल: नालंदा के खंडहरों को 2016 में यूनेस्को स्थल घोषित किया गया था।
नालंदा और तक्षशिला दोनों ही भारत की प्राचीन बौद्धिक उत्कृष्टता के प्रतीक थे।

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