श्रीयादे माता, प्रजापति समाज की आराध्य देवी हैं, और उन्हें भक्त शिरोमणि के रूप में भी जाना जाता है। उनका जन्म सतयुग के प्रथम चरण में पाटण में हुआ था। वे लायइजी जलान्धरा की पुत्री थीं और बचपन से ही धार्मिक थीं। उनके गुरु उड़न ऋषि थे। श्रीयादे माता का विवाह गढ़ मुलतान के सावंतजी के साथ हुआ था, और उनके दो पुत्र और एक पुत्री थी। गढ़ मुलतान हिरण्यकश्यप की राजधानी थी।
श्रीयादे माता की जीवनी:
जन्म: सतयुग के प्रथम चरण में पाटण में, लायइजी जलान्धरा की पुत्री के रूप में।
गुरु: उड़न ऋषि।
विवाह: गढ़ मुलतान के सावंतजी के साथ।
पुत्र: दो।
पुत्री: एक।
गढ़ मुलतान: हिरण्यकश्यप की राजधानी।
श्रीयादे माता को भक्त प्रहलाद की आध्यात्मिक गुरु और भक्ति की प्रेरणा स्रोत माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्होंने भक्त प्रहलाद को हरि नाम का उपदेश दिया, जिससे प्रहलाद ने हिरण्यकश्यप के प्रकोप से जगत की रक्षा की। एक कथा के अनुसार, श्रीयादे माता ने एक बार बिल्ली के बच्चों को दहकते हुए मटकों से जीवित निकाला, जिससे प्रहलाद ने उनसे हरि नाम का उपदेश लिया। प्रजापति समाज में श्रीयादे माता की जयंती (माघ सुदी दूज) बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है।
श्रीयादे जयंती 2025 कब है?
जय श्रीयादे माता जय जय श्रीयादे माता माघ द्वितीया दिनांक 31 जनवरी 2025 को मां श्रीयादे जयंती है पूरे राजस्थान में पूरे भारत भर में यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा जयंती उत्सव के पांच दिवसीय कार्यक्रम शुरू हो चुके हैं आदरणीय श्री #मदन_राठौड़ जी प्रदेश अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी राजस्थान का श्रीयादे माता मंदिर झालामंड
lso ask
श्री श्रीयादे माता का इतिहास क्या है?
श्रीयादे माता का गांव कौन सा है?
श्रीयादे के पति का नाम क्या था?
श्रीयादे माता किसकी कुलदेवी थी?
श्री श्रीयादे माता के गुरु कौन थे?
ब्राह्मणों की कुलदेवी माता कौन थी?
श्रीयादे जयंती 2025 कब है?
17 जनवरी 2025 को किसकी जयंती है?
श्री यादे मां जयंती कब है?
6 जनवरी 2025 को कौन सी जयंती मनाई जाती है?
पुराणों के अनुसार, समय-काल की गणना में त्रेता युग के प्रथम चरण में हिरण्यकशिपु नामक एक दुष्ट प्रवृति का राक्षस राजा हुआ जिसका राज्य मूल स्थान (मुल्तान) पंजाब पाकिस्तान में स्थित था | उसके समय में अधर्म के नाश एवं भक्ति की महिमा एवं उसके उद्भव के लिए नरहरि खण्ड के अझांर नगर में भगवान शंकर ने कुम्हार उडनकेसरी व माता उमा ने श्रीयादे देवी के रूप में असोज (आश्विन) मास की शरद-पूर्णिमा के दिन दिव्य रूप में इस धरती पर अवतरित हुए।
राजा हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्मा जी की घोर तपस्काया कर के ये वरदान प्राप्त किया था कि न वह आकाश में मरेगा, ना जमीन पर, ना घर में, ना बाहर, ना दिन में, ना रात में, ना नर से, ना पशु से, ना अस्त्र से, ना शस्त्र से | ऐसा वरदान पाकर हिरण्यकश्यप अहंकारी हो गया और निरंकुश होकर अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा । उसने स्वयं को भगवान् घोषित कर दिया और भगवान का नाम लेने वाले पर पाबंदी और धर्म-कार्यों पर रोक लगा दी।
अधर्म बढता देखकर, मन में मां अकुलाया ।
सत्य का आभास करा, लीना धर्म बचाया।।
दोनों पति-पत्नी ने उस दुष्ट की राजाज्ञा की परवाह ना करते हुए ,संयम एवं नियम से अपने इष्ट भगवान की उपासना व भक्ति करते हुए गांव कोल्या मेंअपना कुम्हारी (मिट्टी के बर्तन बनाना) करने लगे। हमेशा की तरह एक दिन मिट्टी के कच्चे बर्तन को पकाने के लिए उन्हे भट्टी (आवा) में लगा दिया और भट्टी में अग्नि प्रवेश भी करा दी ।
आवा खिडकों दो जनों, घुसे बिलौटे चार।
उठती लपटे देखकर, कियो हरि विचार ।।
दोनों डूबे सोच में जलता आवा देख।
जो भी आया आग में, बच पाया ना ऐक।
इतने में थोड़ी देर के बाद एक बिल्ली चिल्लाती हुई वहाँ आयी और अपने बच्चों को इधर-उधर ढूंढने लगी। बिल्ली की करूणामय आवाज सुनकर व उसकी घबराहट देखकर श्रीयादे माता ने अपनी पति श्री उडनकेसरी जी से पूछा कि वह कच्चा कलश (घड़ा) कहां है, जिसमें बिल्ली ने अपने बच्चे दिए थे। तब श्री उडनकेशरी जी ने कहा कि प्रिये ! वह मटका तो मैनें भूल से भट्ठी में पकाने के लिए रख दिया और उसमें अग्नि भी प्रज्जवलित कर दी है तथा बर्तन तो बस पकने ही वाले हैं।
अगन प्रभु शीतल करो, क्षीर सागर से आर।
हाथ जोड विनती करें, लेवो आप उबार।।
उसी समय प्रभु भक्त प्रह्लाद घूमते हुए वहाँ आये और उस कुम्हार पति-पत्नी को राजा हिरण्यकशिपु की जगह भगवान विष्णु का भजन और कीर्तन करते देख प्रहलाद व उनके साथियों को बडा आश्चर्य हुआ। राजकुमार प्रहलाद के साथ रहने वाले सिपाहियों ने उन्हें डांटते हुए कहा कि तुम राजा की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए ईश-भक्ति क्यों कर रहे हो ? हमारे राजा के सामने तो देवता व इन्द्र भी अपना सर झुकाते है।
आ धमका प्रहलाद जब, पूछे बारम्बार ।
राम नाम वर्जित यहां, तुम क्यों रहे पुकार ।।
तब श्रीयादे माता ने राजकुमार प्रहलाद को समझाया कि हे राजकुमार ! आपके राजा से कई गुना शक्ति व अनंत शक्ति के भण्डार हमारे भगवान विष्णु है। हमारे भगवान विष्णु आग में बाग लगाने की शक्ति व सामर्थ्य रखते है। ऐसी शक्ति आपके स्वामी के पास नहीं है। तब श्रीयादे माता ने भक्त प्रहलाद के सामने, प्रज्जवलित भट्ठी (आवा) में से बिल्ली के बच्चों को भगवान विष्णु से जीवन-दान दिला कर भक्त प्रह्लाद की भगवान विष्णु से प्रीति करवाई।
श्री हरि सुमिरन मात्र से, जावे किस्मत जाग।
शीतल हो पल मात्र में, घूं-धूं करती आग।।
जब संकट में नर पडें, जपता नर हरि नाम।
नरधन की सुन टेर को, दुःख हरतें श्री राम।।
Информация по комментариям в разработке