मोहम्मद रफी पुण्यतिथी पर विशेष.... वो जब याद आये | REPORTING NAVEEN NAYAK |

Описание к видео मोहम्मद रफी पुण्यतिथी पर विशेष.... वो जब याद आये | REPORTING NAVEEN NAYAK |

मोहम्मद रफी पुण्यतिथी पर विशेष .....वो जब याद आये

“न फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मो. रफी तू बहुत याद आया”  बेशक ये पक्तियां हिन्दी फिल्मो के अमर गायक मोहम्मद ऱफी को सर्मपित हो, लेकिन फिल्मो की इस आबाज के लोग आज भी कायल है। लगभग 26 हजार गीतो को अपनी मौसुकी से रुबरु कराने वाले रफी को लोग आज भी अपने आसपास ही महसूस करते है।

मोहम्मद रफी एक ऐसी शख्सियत जिसे कभी न भुलाया जा सकेगा। हिन्दी के अलावा कई अन्य भाषाओ में गीत गाकर रफी नें दिखा दिया कि गायकी के वे सम्राट थे। स्वभाव से शर्मीले, भावुक और मिलनसार मोहम्मद रफी का जन्म पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुआ था और पहला गीत उन्होने पंजाबी फिल्म ‘गिल बलोच” के लिये गाया। उनकी गायकी देख के. एल सहगल उन्हे मुम्बई ले आये और फिर शुरु हुआ रफी की अमर गायकी का सफर। चालीस साल की रफी की गायकी के लोग आज भी दिवाने है।

1980 तक फिल्मो की गायकी के इस मसीहा की आबाज नें शम्मीकपूर, देवानंद, धर्मेद्र जैसे अभिनेताओ को बुलन्दी पर पहुचाया। आज के बदलते संगीत के दौर में भी मो. रफी की गायकी को लोग आज भी सुनना चाहते है।

रफी नें अपना आखिरी गीत चार पक्तियों के रुप में फिल्म ‘आसपास’ के लिये गाया तथा आखिरी स्टेज कार्यक्रम कलकत्ते में दिया। आश्चर्य की बात यह है कि रफी नें कभी किसी को कोई इन्टरव्यू नही दिया उनका कहना था कि मै गा सकता हूँ बोल नही सकता। यह उनकी सादगी थी।

“तुम मुझे युँ भुला न पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे....जैसी अमर रचना हो या मन रे तू काहे न धीर-धरे या मधुबन में राधिका जैसा दीत हो रफी ने हर जगह अपनी छाप छोडी। आखिर में 31 जुलाई 1980 को मो. रफी हमसे सदा के लिये जुदा हो गये। मौत रफी साहब व उनके चाहने वालो से छल कर गई। रफी की मौसुकी थम गई लेकिन उनके द्वारा छोडी गई रचनाये आज भी उन्हे हमारे आसपास रहने का अहसास कराती है।

‪@naveengwl‬ ‪@shemroo‬ #mohmmedrafi #songs #mohmadrafisongs #oldisgold

Комментарии

Информация по комментариям в разработке