Maharishi Patanjali’s Yogdarshan - Adhyay 1 - Samadhipad - Swami Adgadanandji

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।। ॐ श्री सद्गुरुदेव भगवान् की जय ।।

महर्षि पतञ्जलिकृतं योगदर्शन - समाधिपद - प्रथम अध्याय

पूज्य स्वामी अड़गड़ानंदजी द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता के भाष्य ‘यथार्थ गीता’ का विश्व जनमानस में समादर की भावना देखकर भक्तों और साधकों ने निवेदन किया कि पातञ्जल योगदर्शन पर भी पूज्यश्री कुछ कहने की कृपा करें क्योंकि योग स्वानुभूति है जिसे मात्र भौतिक स्तर पर समझा नहीं जा सकता | पूज्य – चरण एक महापुरुष हैं, योग के स्तर से स्वयं गुजरें हैं | भक्तों के आग्रह पर महाराजजी ने कृपा कर जो प्रवचन दिये, प्रस्तुत कृति उसी का संकलन है | योगदर्शन की इस टीका से, योग क्या है ? इतना तो समझ में आ सकता है किन्तु योग की स्थितियाँ साधना में प्रवृत होने के पश्चात् ही समझ में आती हैं | तप, स्वाध्याय, ईश्वर – प्रणिधान और ओम् के जप से आरम्भ हो जाती हैं जिससे अविधादि क्लेशों के क्षीण होने पर द्रष्टा आत्मा जागृत होकर कल्याणकारी दृश्य प्रसारित करने लगता है | उसी के आलोक में चलकर समझा जा सकता है कि महर्षि पतञ्जलिकृत योगसूत्रों का अभिप्राय क्या है ? योग प्रत्यक्ष दर्शन है, यह लिखने या कहने से नहीं आता | क्रियात्मक चलकर ही साधक समझ पाता है कि जो कुछ महर्षि ने लिखा है उसका वास्तविक आशय क्या है |

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Maharishi Patanjali’s Yogdarshan After the publication of Yatharth Geeta, which is a commentary on “Srimad Bhagavad Gita”, the devotees requested the revered Swami Adgadanandji to throw light on Patanjali’s Yog Darshan too because yog is related with self – realisation. It cannot be perceived on material grounds. The revered Maharaj Shree is a Mahapurush who has passed through all the stages of Yog. The present work is the collection of what Maharaj Shree delivered in his preaching. By going through this commentary one can understand what Yog is but the real perception of Yog is possible only after practical pursuit of Yogic – Sadhana. With Tap, Swadhyaya, Ishwar – Pranidhan and chanting of Om, the real Sadhana starts. By their practice, the Avidhya and Kleshas got removed and the self starts transmitting beneficial vistas. In their light alone the Yogic – maxims written by Maharishi Patanjali can be truly comprehended. Yog is direct perception, no oral or written words can explain it. Practical pursuits alone can make the comprehension of Yog – Darshan possible.

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