क्या श्रीकृष्ण भगवान के अवतार थे ? 'यदा-यदा हि धर्मस्य' श्लोक का अर्थ।

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प्रश्न- ईश्वर अवतार लेता है, वा नहीं ?
उत्तर- नहीं, क्योंकि-
'अ॒ज एक॑पात्' ॥ 'सपर्य्यगाच्छुक्रम॑काय॒म् ' - ये दोनों यजुर्वेद [ ३४।५३ और ४०।८] के वचन है।
इत्यादि वचनों से परमेश्वर न जन्म लेता और न कभी शरीरवाला होता है।

प्रश्न- यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥- भगवद् गीता [४।७] ॥

श्रीकृष्णजी कहते हैं कि जब-जब धर्म का लोप होता है तब-तब मैं शरीर धारण करता हूँ।

उत्तर - यह बात वेदविरुद्ध होने से प्रमाण नहीं। और ऐसा हो सकता है कि श्रीकृष्ण धर्मात्मा और धर्म की रक्षा करना चाहते थे कि मैं युग-युग में जन्म लेके श्रेष्ठों की रक्षा और दुष्टों का नाश करूँ तो कुछ दोष नहीं । क्योंकि 'परोपकाराय सतां विभूतयः' परोपकार के लिये सत्पुरुषों का तन, मन, धन होता है, तथापि इससे श्रीकृष्ण ईश्वर नहीं हो सकते।

प्रश्न- जो ऐसा है तो संसार में चौबीस ईश्वर के अवतार होते हैं, और इनको अवतार क्यों मानते हैं ?
उत्तर- वेदार्थ के न जानने, सम्प्रदायी लोगों के बहकाने और अपने आप अविद्वान् होने से भ्रमजाल में फसते हैं और मानते हैं। प्रश्न- जो ईश्वर अवतार न लेवे तो कंस-रावणादि द���ष्टों का नाश कैसे हो सके ?

उत्तर- प्रथम तो जो जन्मा है, वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त होता है। जो ईश्वर अवतार शरीर धारण किये विना जगत् की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय करता है, उसके सामने कंस और रावणादि एक कीड़ी के समान भी नहीं । वह सर्वव्यापक होने से कंस- रावणादि के शरीरों में भी परिपूर्ण हो रहा है, जब चाहै उसी समय मर्मच्छेदन कर नाश कर सकता है। इस अनन्त-गुण-कर्म-स्वभावयुक्त परमात्मा को एक क्षुद्र जीव के मारने के लिये जन्म-मरणयुक्त कहना महामूर्खता का काम है। और जो कोई कहे कि भक्तों के उद्धार के लिये जन्म लेता है तो भी सत्य नहीं, क्योंकि जो भक्तजन ईश्वर की आज्ञानुकूल चलते हैं, उनके उद्धार करने का पूरा सामर्थ्य ईश्वर में है। क्या ईश्वर के पृथिवी, सूर्य, चन्द्रादि जगत् का बनाने, धारण और प्रलय करने रूप कर्मों से पुत्रोत्पत्ति, कंस-रावणादि का वध और गोवर्धनादि उठाना बड़े कर्म हैं ? जो कोई इस सृष्टि में परमेश्वर के कर्मों का विचार करे तो 'न भूतो न भविष्यति' ईश्वर के सदृश न कोई हुआ, न है और न होगा। और युक्ति से भी ईश्वर का जन्म सिद्ध नहीं होता जैसे कोई अनन्त आकाश को कहै कि गर्भ में आया वा मूठी में धर लिया, यह सच कभी नहीं हो सकता, क्योंकि आकाश सब में व्यापक है। न वह बाहर आता, न भीतर जाता, वैसे परमेश्वर के सर्वव्यापक होने से उसका आना-जाना सिद्ध नहीं होता, क्योंकि जाना वा आना वहां हो सकता है, जब वहां वह न हो। और आना भी वहां हो सकता है, जहाँ परमेश्वर न हो। क्या वह गर्भ में व्यापक नहीं था, जो कहीं से आया ? और बाहर नहीं है, जो भीतर से बाहर निकले ? इसलिये परमेश्वर का जन्म कभी नहीं हो सकता। इसी प्रकार 'ईसा' के भी ईश्वर का जन्म होना समझ लेना चाहिये।


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