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Скачать или смотреть LIVE🛑 सूर्य ग्रहण में होगी पितरों की विदाई,भूलकर न करें ये गलती पितृ होगे नाराज,पितृ विसर्जन कब ?

  • Aacharya Guruji
  • 2023-10-13
  • 18509
LIVE🛑 सूर्य ग्रहण में होगी पितरों की विदाई,भूलकर न करें ये गलती पितृ होगे नाराज,पितृ विसर्जन कब ?
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LIVE🛑 सूर्य ग्रहण में होगी पितरों की विदाई,भूलकर न करें ये गलती पितृ होगे नाराज,पितृ विसर्जन कब ?
पितृ एकादशी-इंदिरा एकादशी व्रत कथा सुनने से भयंकर पितृ दोष होगा समाप्त,सभी कष्ट व संकट का होगा अंत💐💐
पितृ एकादशी-इंदिरा एकादशी व्रत कथा सुनने से भयंकर पितृ दोष होगा समाप्त,सभी कष्ट व संकट का होगा अंत💐💐 #EkadashiVratKatha | #इंदिराएकादशीव्रतकथा ekadashi Vrat Katha Gyaras | #पितृएकादशीव्रतकथा #ekadashi
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10अक्टूबर 2023-पितृ एकादशी के दिन न करें ये गलतियाँ भगवान को होगा कष्ट,Pitru Ekadashi 10 October 2023#पितृएकादशी/#इंदिराएकादशी/#श्राद्धएकादशी शुभ मुहूर्त पूजा एवं श्राद्ध विधि,क्या करें क्या न करें
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pitra dosh katha,शास्त्र कहते हैं कि पितृ अत्यंत दयालु तथा कृपालु होते हैं। वह अपने पुत्र-पौत्रों से पिण्डदान व तर्पण की आकांक्षा भी इसलिए रखते हैं ताकि उन्हें मन भर कर आशीर्वाद दे सके,श्राद्ध-तर्पण से पितृ को संतुष्टि मिलती है। पितृगण प्रसन्न होकर संतान सुख, धन-धान्य, विद्या, राजसुख, यश-कीर्ति, पुष्टि, शक्ति, स्वर्ग एवं मोक्ष तक प्रदान करते हैं। लेकिन वे इतने नाजुक होते हैं कि छोटी सी गलती उन्हें आहत कर देती हैऔर शाप देकर जाते हैं। अत: ध्यान रखें कि ऐसा कोई काम ना करें जो उन्हें दुखी करें। भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से आश्विन अमावस्या तिथि तक 16 दिन श्राद्धकर्म किए जाते हैं।श्राद्ध विधि: गाय के दूध में पकाए हुए चावल में शक्कर, इलायची, केसर व शहद मिलाकर खीर बनाएं। गाय के गोबर के कंडे को जलाकर पूर्ण प्रज्वलित करें। प्रज्वलित कंडे को किसी बर्तन में रखकर दक्षिणमुखी होकर खीर से तीन आहुति दें। सर्वप्रथम गाय, काले कुत्ते व कौए हेतु ग्रास अलग से निकालकर उन्हे खिलाएं,महाभारत के दौरान, कर्ण की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया, वह तो आहार तलाश रहे थे।उन्होंने देवता इंद्र से पूछा किउन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया। तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया। तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें। इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया। तर्पण किया, इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा गया।पितृ पक्ष की लोककथा के अनुसार जोगे तथा भोगे दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किंतु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी।पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की चेष्टा करने लगा, किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा।अतः वह बोली- 'आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी। दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी।' फिर उसने जोगे को अपने पीहर न्यौता देने के लिए भेज दिया।दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह-सवेरे आकर काम में जुट गई। उसने रसोई तैयार की। अनेक पकवान बनाए फिर सभी काम निपटाकर अपने घर आ गई। आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था।इस अवसर पर न जोगे की पत्नी ने उसे रोका, न वह रुकी। शीघ्र ही दोपहर हो गई। पितर भूमि पर उतरे। जोगे-भोगे के पितर पहले जोगे के यहां गए तो क्या देखते हैं कि उसके ससुराल वाले वहां भोजन पर जुटे हुए हैं। निराश होकर वे भोगे के यहां गए। वहां क्या था? मात्र पितरों के नाम पर 'अगियारी' दे दी गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे।थोड़ी देर में सारे पितर इकट्ठे हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे। जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई। फिर वे सोचने लगे- अगर भोगे समर्थ होता तो शायद उन्हें भूखा न रहना पड़ता, मगर भोगे के घर में तो दो जून की रोटी भी खाने को नहीं थी। यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई। अचानक वे नाच-नाचकर गाने लगे- 'भोगे के घर धन हो जाए।

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